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HEC के हड़ताली इंजानियरों ने गन्ने का जूस निकाल कर बयां किया अपना दर्द, कहा- प्रबंधन ने हमे वेस्टेज बना दिया

हेवी इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन (Heavy Engineering Corporation) के हड़ताली इंजानियरों (HEC workers strike) ने गन्ने का जूस निकाल कर अपना दर्द बयां किया. इंजीनियरों ने गन्ने को रॉ मेटेलियल बताया और गन्ना निकालने वाली मशीन को एचईसी. जूस पीने वाले को सीएमडी के रूप में दिखाया तो वहीं गन्ने के सिट्टे को कर्मचारी. उन्होंने कहा कि प्रबंधन ने हमे वेस्टेज बना दिया है.

HEC workers protest
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Published : Dec 13, 2022, 7:00 PM IST

रांची: हेवी इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन (Heavy Engineering Corporation) यानी एचईसी की हालत किसी से छिपी नहीं है. अपने बकाया वेतन और अन्य मांगों को लेकर इंजीनियरों का आंदोलन पिछले 41 दिन से जारी है (HEC workers strike). हर दिन अलग-अलग तरीके से विरोध कर सिस्टम को जगाने की कोशिश किया जा रहा है. 13 दिसंबर को एचईसी के मेन गेट पर हड़ताली इंजीनियरों ने गन्ने का रस निकालने वाली मशीन चलाकर अपनी तकलीफ बयां की. इंजीनियरों ने गन्ने को रॉ मेटेलियल बताया और गन्ना निकालने वाली मशीन को एचईसी. जूस पीने वाले को सीएमडी के रूप में दिखाया तो वहीं गन्ने के सिट्टे को कर्मचारी. हड़ताली इंजीनियर सुभाष चंद्रा ने बताया कि एचईसी के इस हालात के लिए न सिर्फ सीएमडी और प्रबंधन बल्कि भारी उद्योग मंत्रालय और केंद्र सरकार भी उतनी ही जिम्मेदार है. इंजीनियरों के मुताबिक पिछले 2-3 सालों में कई बार एचईसी को लेकर समीक्षा की गई. संस्थान के रिवावल के लिए कई रूपरेखाएं तैयार कर मंत्रालय को दी गईं. लेकिन सारी योजनाएं फाइलों में धूल फांक रही हैं.

ये भी पढ़ें- एचईसी को बचाने के लिए कर्मचारियों ने निकाली महारैली, कहा- प्रबंधन ले निर्णय नहीं तो होगा उग्र प्रदर्शन

सुभाष चंद्रा ने ईटीवी भारत को बताया कि 15 दिसंबर को प्रभारी सीएमडी समेत अन्य अधिकारियों के साथ एक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मीटिंग बुलाई गई है. इसमें संस्थान के रिवाइवल को लेकर प्रस्ताव मांगा गया है. हड़ताल के साथ-साथ तमाम इंजीनियर मिलकर रिवाइवल प्लान भी तैयार कर रहे हैं. लेकिन वे इस बात को लेकर भी परेशान हैं कि पूर्व में भी कई बार समीक्षा हो चुकी है लेकिन जब बात उसे धरातल पर उतारतने की आती है तो मामला ठंडा पड़ जाता है.

हड़ताली इंजीनियरों HEC workers protest ने बताया कि एचईसी के आधुनिकीकरण के लिए स्मार्ट सिटी के नाम पर जमीन हस्तांतरित की गई लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ. मशीनों का आधुनिकीकरण तो दूर स्टैच्युटरी बकाये का भुगतान तक नहीं हुआ. कंपनी को गर्त में लाकर खड़ा कर दिया गया है. इंजीनियरों ने कहा कि इस संस्थान के पास असीम ताकत है. अगर रॉ मेटेरियल मिले तो कई नायाब काम हो सकते हैं. लेकिन केंद्र सरकार कान में तेल डालकर सो रही है.

आपको बता दें कि एचईसी के इंजीनियरों को पिछले 13 माह से वेतन नहीं मिला है. 400 इंजीनियरों को अपना परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है. पिछले दिनों एचईसी के प्रभारी सीएमडी नलिन सिंघल से बातचीत हुई थी लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. इसके बाद से यह आंदोलन जारी है. कभी प्रबंधन का पुतला फूंका जा रहा है तो कभी जलेबी छानकर तो कभी मशाल जुलूस निकालकर विरोध दर्ज कराया जा रहा है. इंजीनियरों ने बताया कि मेक इन इंडिया के तहत वोकल फॉर लोकर का नारा और रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने और पांच ट्रिलियन इकॉनोमी का सपना तभी इन कल-कारखानों के बगैर कभी पूरा नहीं हो सकता. आपको बता दें कि एचईसी की पहचान मदर ऑफ इंडिस्ट्री के रूप में हुआ करती थी. साल 1960 से 1990 तक इसका स्वर्णिल काल रहा. लेकिन समय के साथ इसकी स्थिति बिगड़ती रही. यह संस्थान सिर्फ राजनीतिक नारों में सिमट कर रह गया है. सेना, रेलवे के अलावा इसरो के लॉचिंग पैड स्ट्रक्चर को तैयार करने की ताकत रखने वाले इस संस्थान को खुद बैसाखी की जरूरत है. इसी संस्थान के क्षेत्र में जेएससीए, प्रोजेक्ट भवन, विधानसभा का संचालन हो रहा है. लेकिन इसकी हालत सुधरने के बजाए बिगड़ती जा रही है.

रांची: हेवी इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन (Heavy Engineering Corporation) यानी एचईसी की हालत किसी से छिपी नहीं है. अपने बकाया वेतन और अन्य मांगों को लेकर इंजीनियरों का आंदोलन पिछले 41 दिन से जारी है (HEC workers strike). हर दिन अलग-अलग तरीके से विरोध कर सिस्टम को जगाने की कोशिश किया जा रहा है. 13 दिसंबर को एचईसी के मेन गेट पर हड़ताली इंजीनियरों ने गन्ने का रस निकालने वाली मशीन चलाकर अपनी तकलीफ बयां की. इंजीनियरों ने गन्ने को रॉ मेटेलियल बताया और गन्ना निकालने वाली मशीन को एचईसी. जूस पीने वाले को सीएमडी के रूप में दिखाया तो वहीं गन्ने के सिट्टे को कर्मचारी. हड़ताली इंजीनियर सुभाष चंद्रा ने बताया कि एचईसी के इस हालात के लिए न सिर्फ सीएमडी और प्रबंधन बल्कि भारी उद्योग मंत्रालय और केंद्र सरकार भी उतनी ही जिम्मेदार है. इंजीनियरों के मुताबिक पिछले 2-3 सालों में कई बार एचईसी को लेकर समीक्षा की गई. संस्थान के रिवावल के लिए कई रूपरेखाएं तैयार कर मंत्रालय को दी गईं. लेकिन सारी योजनाएं फाइलों में धूल फांक रही हैं.

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सुभाष चंद्रा ने ईटीवी भारत को बताया कि 15 दिसंबर को प्रभारी सीएमडी समेत अन्य अधिकारियों के साथ एक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मीटिंग बुलाई गई है. इसमें संस्थान के रिवाइवल को लेकर प्रस्ताव मांगा गया है. हड़ताल के साथ-साथ तमाम इंजीनियर मिलकर रिवाइवल प्लान भी तैयार कर रहे हैं. लेकिन वे इस बात को लेकर भी परेशान हैं कि पूर्व में भी कई बार समीक्षा हो चुकी है लेकिन जब बात उसे धरातल पर उतारतने की आती है तो मामला ठंडा पड़ जाता है.

हड़ताली इंजीनियरों HEC workers protest ने बताया कि एचईसी के आधुनिकीकरण के लिए स्मार्ट सिटी के नाम पर जमीन हस्तांतरित की गई लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ. मशीनों का आधुनिकीकरण तो दूर स्टैच्युटरी बकाये का भुगतान तक नहीं हुआ. कंपनी को गर्त में लाकर खड़ा कर दिया गया है. इंजीनियरों ने कहा कि इस संस्थान के पास असीम ताकत है. अगर रॉ मेटेरियल मिले तो कई नायाब काम हो सकते हैं. लेकिन केंद्र सरकार कान में तेल डालकर सो रही है.

आपको बता दें कि एचईसी के इंजीनियरों को पिछले 13 माह से वेतन नहीं मिला है. 400 इंजीनियरों को अपना परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है. पिछले दिनों एचईसी के प्रभारी सीएमडी नलिन सिंघल से बातचीत हुई थी लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. इसके बाद से यह आंदोलन जारी है. कभी प्रबंधन का पुतला फूंका जा रहा है तो कभी जलेबी छानकर तो कभी मशाल जुलूस निकालकर विरोध दर्ज कराया जा रहा है. इंजीनियरों ने बताया कि मेक इन इंडिया के तहत वोकल फॉर लोकर का नारा और रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने और पांच ट्रिलियन इकॉनोमी का सपना तभी इन कल-कारखानों के बगैर कभी पूरा नहीं हो सकता. आपको बता दें कि एचईसी की पहचान मदर ऑफ इंडिस्ट्री के रूप में हुआ करती थी. साल 1960 से 1990 तक इसका स्वर्णिल काल रहा. लेकिन समय के साथ इसकी स्थिति बिगड़ती रही. यह संस्थान सिर्फ राजनीतिक नारों में सिमट कर रह गया है. सेना, रेलवे के अलावा इसरो के लॉचिंग पैड स्ट्रक्चर को तैयार करने की ताकत रखने वाले इस संस्थान को खुद बैसाखी की जरूरत है. इसी संस्थान के क्षेत्र में जेएससीए, प्रोजेक्ट भवन, विधानसभा का संचालन हो रहा है. लेकिन इसकी हालत सुधरने के बजाए बिगड़ती जा रही है.

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