रांची: झारखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन और न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत में राज्य सरकार की कोर्ट फीस अमेंडमेंट एक्ट को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर गुरुवार को सुनवाई (Hearing Of Court Fee Case In High Court) हुई. इस दौरान कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा शपथ पत्र में स्पष्ट जानकारी नहीं देने पर कड़ी नाराजगी जताई. राज्य सरकार की ओर से बताया गया कि कोर्ट फी को लेकर बनाई गई तीन सदस्यीय कमेटी की अनुशंसा के आधार पर बिल बन कर तैयार हो गया है. इसे वित्त विभाग में भेजा गया है, वहां से अप्रूवल होने के बाद इसे कैबिनेट कमेटी के पास अप्रूवल के लिए भेजा जाएगा. जहां से विधानसभा में इसे पास होने के लिए भेजा जाएगा.
सरकार ने माना सुधार की है जरूरतः सरकार की ओर से यह भी माना गया कि इसमें त्रुटि है. जिसमें सुधार करने की आवश्यकता (Government Acknowledged Need For Reform) है. कोर्ट ने मामले में कुछ बिंदुओं पर राज्य सरकार को शपथ पत्र दाखिल करने के लिए समय दिया है. कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 15 दिसंबर निर्धारित की है. इस दौरान एमिकस क्यूरी वरीय अधिवक्ता वीपी सिंह उपस्थित थे.
कानून में केवल अनुसूची एक की अनुशंसाः कोर्ट को बताया गया था कि नए कोर्ट फीस कानून (New Court Fee Law)में दो अनुसूची हैं. जिसमें समिति ने केवल अनुसूची एक (निचली अदालतों में दिए जाने वाले कोर्ट फीस) के बारे में ही अनुशंसा की है. जो हाईकोर्ट की कोर्ट फीस से संबंधित है, उसके बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहा है. इस दौरान कोर्ट ने यह भी कहा था कि नए कानून के हिसाब से अगर कोर्ट फीस वसूल किया जाता है तो वह केस के अंतिम निर्णय से प्रभावित होगा. प्रार्थी की ओर से कहा गया था कि कोर्ट फीस में बेतहाशा वृद्धि सरकार द्वारा इस कानून के माध्यम से की गई है. कोर्ट फीस वृद्धि से पहले आवश्यक पहलू की जांच नहीं की गई.
कोर्ट फीस वृद्धि से लोगों को सुलभ न्याय दिलाना संभव नहींः पूर्व की सुनवाई में राजेंद्र कृष्ण ने मामले में पैरवी करते हुए कोर्ट से कहा था कि कोर्ट फीस में बेतहाशा वृद्धि से समाज के गरीब तबके के लोग कोर्ट नहीं आ पाएंगे और वकीलों को भी अतिरिक्त वित्तीय भार वहन करना पड़ेगा. काउंसिल ने यह भी कहा है कि कोर्ट फीस की वृद्धि से लोगों को सहज व सुलभ न्याय दिलाना संभव नहीं है. राज्य सरकार का कोर्ट फीस एक्ट गलत है. यह संविधान के खिलाफ है. साथ ही यह सेंट्रल कोर्ट फीस एक्ट के भी विरुद्ध है.