रांची: झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार खदान और खतियान के भंवर में उलझी दिख रही है. 1932 के खतियान के आधार पर शिबू सोरेन के शागिर्द लोबिन हेंब्रम अपनी ही सरकार को घेर रहे हैं. इस मसले को शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो भी जोर शोर से उठाने लगे हैं. हालाकि, बजट सत्र के दौरान कानून के जानकारों के हवाले से मुख्यमंत्री कह चुके हैं कि सिर्फ खतियान को आधार बनाकर स्थानीयता तय नहीं की जा सकती है. इसके बावजूद लोबिन हेंब्रम का आंदोलन जारी है. लेकिन उनके खिलाफ अबतक पार्टी स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है.
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दूसरी तरफ मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट की तलवार लटक रही है. इसी मामले को लेकर झारखंड हाई कोर्ट में दायर पीआईएल पर 22 अप्रैल को सुनवाई होनी है. प्रार्थी शिव शंकर शर्मा की दलील है कि मुख्यमंत्री ने अपने नाम से रांची के अनगड़ा में पत्थर खदान को लीज पर लिया है. यह ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला है. इसलिए उनकी सदस्यता रद्द की जानी चाहिए. प्रार्थी के अधिवक्ता राजीव कुमार ने बताया कि माइंस मिनिस्टर रहते हुए मुख्यमंत्री ने खुद अपने नाम से दिसंबर 2021 में पत्थर खदान को लीज पर लिया था.
उन्होंने सिया (SEIAA) यानी स्टेट लेबल एनवायरमेंट इंपैक्ट एसेसमेंट अथॉरिटी से पर्यावरण स्वीकृति भी ली थी. इसके लिए उन्होंने ऑनलाइन अप्लाई किया था. पूरा ब्यौरा MOEF यानी मिनिस्ट्री आफ इनवायरमेंट एंड फोरेस्ट पर अपलोडेड है. हालाकि 8 अप्रैल को पीआईएल पर हुई सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता राजीव रंजन ने कहा था कि यह कोड ऑफ कंडक्ट का मामला हो सकता है. लेकिन यह संविधान के उल्लंघन की कैटेगरी में नहीं आता है. इसके बावजूद मुख्यमंत्री ने इस व्यवसाय से खुद को अलग करते हुए 11 फरवरी 2022 को खदान लीज सरेंडर कर दिया था.
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आपको बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने 10 फरवरी 2022 को सीएम पर पद का दुरूपयोग कर खदान लीज अपने नाम करने की मामला उठाया था. प्रतिनिधमंडल ने 11 फरवरी को राज्यपाल से मिलकर सीएम पर जनप्रतिनिधत्व अधिनियम 1951 की धारा 9A का उल्लंघन बताते हुए कार्रवाई की मांग की थी. अब सबकी नजर 22 अप्रैल को हाईकोर्ट में होने वाली सुनवाई पर टीकी हुई है.
आपको बता दें कि झारखंड में ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का यह कोई पहला मामला नहीं है. इससे पहले शिबू सोरेन बनाम दयानंद सहाय के केस में सुप्रीम कोर्ट ने 19 जुलाई 2001 को शिबू सोरेन की राज्यसभा सदस्यता को अमान्य करार दे दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि शिबू सोरेन सांसद रहते हुए जैक यानी झारखंड एरिया अटोनॉमस काउंसिल के चेयरमैन के पद पर थे, जो ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के दायरे में था. हालांकि बाद में साल 2002 में शिबू सोरेन दोबारा चुनाव जीत गये थे.