रांची: झारखंड विधानसभा में नमाज के लिए एक कमरा आवंटित करने को लेकर उठा विवाद अब कानूनी रूप ले चुका है. प्रार्थी अजय कुमार मोदी की जनहित याचिका पर आज (18 मई) झारखंड हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. प्रार्थी के अधिवक्ता नवीन कुमार ने बताया कि पिछली सुनवाई में हाईकोर्ट ने विधानसभा से जवाब मांगा था. आज जवाब में विधानसभा की ओर से बताया गया कि एक सात सदस्यीय कमेटी बनी है जो 31 जुलाई तक रिपोर्ट देगी. लेकिन तकनीकी कारणों से विस की रिपोर्ट खंडपीठ तक नहीं पहुंच पाई. इस वजह से मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा और जस्टिस आनंद सेन की खंडपीठ ने सुनवाई की अगली तारीख ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद 22 जून को निर्धारित की है. हालांकि आपको जानकर हैरानी होगी कि जब विस की स्पेशल कमेटी बनायी गई थी तो उसे 45 दिन के भीतर ही रिपोर्ट देना था.
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क्यों उठा था नमाज कक्ष विवाद: दरअसल, साल 2021 के मॉनसून सत्र के दौरान यह विवाद उठा था. इसकी वजह बना था स्पीकर रवींद्र नाथ महतो के हवाले से विधानसभा सचिवालय द्वारा 2 सितंबर को जारी नोटिफिकेशन, जिसमें विधानसभा के मुस्लिम विधायकों और कर्मियों के लिए कमरा संख्या TW-348 को नमाज कक्ष बना दिया गया था. यहीं से विवाद शुरू हुआ. भाजपा ने आरोप लगाया कि यह सब तुष्टिकरण के लिए हो रहा है. इसके विरोध में भाजपा ने सड़क से सदन तक जमकर हंगामा किया था. सदन की कार्यवाही बाधित हुई थी. सोशल मीडिया पर तुष्टीकरण और सांप्रदायिक सौहार्द जैसे शब्दों के खूब तीर चले थे.
बैरिकेडिंग तोड़ने पर हुआ था लाठीचार्ज: 8 सितंबर 2021 को भाजपा की ओर से रघुवर दास समेत अन्य बड़े नेताओं के नेतृत्व में विधानसभा घेराव की कोशिश की गई थी. बैरिकेडिंग तोड़े जाने के बाद पुलिस ने लाठीचार्ज भी किया था. इस मामले में भाजपा के कई नेताओं को खिलाफ गंभीर धाराएं लगाकर प्राथमिकी भी दर्ज की गई थी.
45 दिन में देना था रिपोर्ट लेकिन गुजर गये 20 माह: कार्यवाही बाधित होने की वजह से 10 सितंबर 2021 को झामुमो विधायक सरफराज अहमद ने सदन में यह कहते हुए प्रस्ताव रखा कि इस विवाद की वजह से राज्य में सांप्रदायिक माहौल बिगड़ रहा है. इसके पटाक्षेप के लिए विस की एक कमेटी बना देनी चाहिए. उन्होंने कहा कि राज्य के प्रथम स्पीकर रहे इंदर सिंह नामधारी ने भी नमाज के लिए कक्ष आवंटित किया था. उस वक्त बाबूलाल मरांडी मुख्यमंत्री थे. इस प्रस्ताव का बंधु तिर्की और प्रदीप यादव ने समर्थन किया था.
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उसी प्रस्ताव के आधार पर स्पीकर ने विधायकों की सात सदस्यीय कमेटी बनाई थी, जिसको 45 दिन के भीतर रिपोर्ट देनी थी. कमेटी को देखना था कि पड़ोसी राज्यों की विधानसभा में ऐसी व्यवस्था है या नहीं. कमेटी के संयोजक डॉ स्टीफन मरांडी बनाये गये थे. इसके अलावा विधायक डॉ सरफराज अहमद, नीलकंठ सिंह मुंडा, प्रदीप यादव, बिनोद सिंह, लंबोदर महतो और दीपिका पांडेय को सदस्य बनाया गया था. लेकिन आश्चर्य की बात है कि 20 माह गुजरने के बाद भी कमेटी अपनी रिपोर्ट तैयार नहीं कर पाई. बाद में अजय कुमार मोदी नामक शख्स ने इस मसले को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर दी. लेकिन अब विस की ओर से अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया है कि 31 जुलाई तक कमेटी की रिपोर्ट आ जाएगी. खास बात है कि साल 2021 के शीतकालीन सत्र के दौरान जब यह मामला उठा तो कमेटी के सदस्य प्रदीप यादव ने बताया था कि अबतक अन्य राज्यों से रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है. अबतक सिर्फ बंगाल विधानसभा से रिपोर्ट आई है. उन्होंने कहा था कि उन्हें जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक बंगाल विधानसभा में नमाज के लिए अलग से जगह निर्धारित है.
स्पीकर को देनी पड़ी थी सफाई: विधानसभा में नमाज कक्ष का मामला जब तूल पकड़ने लगा तो खुद स्पीकर को सामने आकर सफाई देनी पड़ी. उन्होंने कहा कि यह परिपाटी का हिस्सा है. पुराने विधानसभा में भी ऐसी व्यवस्था थी. इसको तूल नहीं दिया जाना चाहिए. जवाब में भाजपा विधायक इस बात पर अड़ गये कि अगर ऐसा है तो पुराने आदेश की कॉपी को सार्वजनिक करना चाहिए. इसके विरोध में भाजपा विधायक विस कैंपस में मंदिर बनाने की मांग करने लगे. सदन के बाहर हनुमान चालिसा पढ़ा गया. सदन के भीतर जय श्री राम के नारे लगे.
जमकर हुई थी राजनीति: खास बात है कि सदन में सरफराज अहमद की दलील को खारिज करते हुए बाबूलाल मरांडी ने कहा था कि उनके कार्यकाल में इस तरह का कोई आदेश जारी नहीं हुआ था. वहीं प्रथम स्पीकर रहे इंदर सिंह नामधारी ने कहा था कि इसको तूल देना गलत है. उन्होंने कहा था कि बिहार विधानसभा में दशकों से यह व्यवस्था चली आ रही है. उनकी दलील थी कि कार्यवाही के क्रम में मुस्लिम कर्मियों के जुम्मे की नमाज के लिए बाहर जाने की वजह से निर्धारित समय पर लौटने में विलंब होता था. इसी वजह से यह व्यवस्था की गई थी जो आज भी जारी है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा था कि अगर मेरे कार्यकाल में इस तरह का प्रस्ताव आया होता तो मैं भी सहमति देता. इसको मानवता और धार्मिक सहिष्णुता के तौर पर देखना चाहिए.