रांचीः झारखंड के कुपोषित बच्चे अब भगवान भरोसे हैं. उनका इलाज होना बंद हो चुका है. अनुबंधित नर्सों के हड़ताल पर जाने के कारण रांची के डोरंडा स्थित स्वास्थ्य केंद्र में मौजूद कुपोषण उपचार केंद्र एमटीसी में ताला लटका दिया गया है. इस सेंटर में 15 कुपोषित बच्चों के इलाज की व्यवस्था है. लेकिन अब किसी को भी भर्ती नहीं किया जा रहा है.
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प्रभारी डॉ. मीता सिन्हा ने बताया कि एमटीसी का संचालन चार ट्रेंड नर्सें किया करती थीं. उन सभी के हड़ताल पर जाने की वजह से कोई भी ट्रेंड स्टाफ नहीं है जो एमटीसी में बच्चों की देखरेख कर पाए. इसलिए मजबूरन ताला लगाना पड़ा है. सबसे खास बात है कि नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे के 2019-21 की रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड के शून्य से 5 वर्ष के 39.4 प्रतिशत बच्चे कम वजन (अंडरवेट) के हैं. इसके बावजूद एमटीसी सेंटर के संचालन को लेकर सरकार गंभीर नहीं दिख रही है.
झारखंड के 24 जिलों के लिए कुल 103 एमटीसी सेंटर स्वीकृत हैं. जिनमें से 96 का संचालन हो रहा है. लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि सभी सेंटर पर नर्सों के हड़ताल का असर पड़ा है. रांची जिला में डोरंडा, बुंडू, बेड़ो और मांडर में एमटीसी है. सेंटर में भर्ती बच्चों को खाना खिलाने का काम करने वाली आरती ने बताया कि हम लोग हड़ताल खत्म होने की राह ताक रहे हैं ताकि कुपोषित बच्चे फिर से आएं और उनका इलाज हो पाए.
दूसरी तरफ झारखंड राज्य एनएचएम एनएम-जीएनएम अनुबंध कर्मचारी संघ और झारखंड अनुबंधित पारा चिकित्साकर्मी संघ के बैनर तल 24 जनवरी से शुरू हुई हड़ताल अब भी जारी है. यही नहीं पिछले 11 दिन से अनुबंधकर्मी अनशन पर हैं. इनमें से कई को अस्पतालों में भर्ती कराना पड़ा है. संघ के संयुक्त सचिव संतोष कुमार ने बताया कि 2 फरवरी को एनएचएम के एमडी उनसे मिलने आये थे. उन्हें मांग पत्र सौंपा गया है. उन्होंने सकारात्मक विचार का भरोसा दिलाया है. संतोष कुमार ने कहा कि वर्तमान सरकार ने पारा शिक्षकों और आंगनबाड़ी सेविकाओं के लिए बड़े फैसले लिये हैं. उन्हें उम्मीद है कि उनकी मांग को भी सरकार जरूर मानेगी.
संतोष कुमार की दलील है कि सरकार ने वर्ष 2014 में करीब 1300 पारा मेडिकलकर्मियों को नियमित कर दिया था. लेकिन उसके बाद से दरवाजा बंद कर दिया गया है. वर्तमान में 4870 एएनएम, 846 जीएनएम, 494 लैब टेक्निशियन, 137 फार्मासिस्ट, 80 एक्सरे स्टाफ, 76 ओपथॉल्मिक असिस्टेंट और 32 फिजियोथेरेपिस्ट कई वर्षों से अनुबंध पर सेवा दे रहे हैं. इनका अधिकतम मानदेय 6 हजार से 18 हजार के बीच है. इतने पैसे से घर चलाना मुश्किल हो रहा है. संघ के संयुक्त सचिव का कहना है कि उनकी मांगों का जिक्र सत्ताधारी दलों ने चुनावी घोषणा पत्र में भी कर रखा है. फिर भी कोई ध्यान नहीं दे रहा है.