हंगामा है क्यों बरपा! बिना चर्चा के ग्रामीण विकास विभाग की अनुदान मांग स्वीकृत, भाजपा विधायकों ने किया वाकआउट - झारखंड विधानसभा का बजट सत्र
झारखंड विधानसभा का बजट सत्र काफी हंगामे के बीच चल रहा है. बुधवार का दिन भी काफी हंगामे भरा रहा. हंगामे की वजह से बगैर चर्चा किए ही ग्रामीण विकास विभाग के अनुदान मांग को मंजूर कर लिया गया.
रांचीः बजट सत्र के 9वें दिन की कार्यवाही हंगामे की भेंट चढ़ गयी. 15 मार्च यानी बुधवार को दूसरी पाली में ग्रामीण विकास विभाग, ग्रामीण कार्य, पंचायती राज, भवन निर्माण, पथ निर्माण, नगर विकास व आवास विभाग के बजट पर वाद विवाद के बाद सरकार का उत्तर आना था. लेकिन मुख्य विपक्षी दल भाजपा विधायकों के स्लोगन वाले प्रिंटेड टी-शर्ट का मुद्दा इस कदर गरमाया कि अनुदान मांगों पर चर्चा नहीं हो सकी.
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भोजनावकाश के बाद दो बार सदन की कार्यवाही स्थगित करने के बाद सीधे सरकार का जवाब लेकर ग्रामीण विकास विभाग के 8,166 करोड़ के अनुदान मांग को स्वीकृति दे दी गई. हो हंगामे के बीच कटौती प्रस्ताव लाने वाले भाजपा विधायक नीलकंठ सिंह मुंडा अपना पक्ष नहीं रख पाए. सीधे सरकार का जवाब आने पर भाजपा के विधायक नाराज हो गए और सदन से वाकआउट कर दिया.
अनुदान मांग पर सरकार की ओर से जवाब देते हुए ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम ने कहा कि हम घोषणा पर नहीं काम पर विश्वास करते हैं. उन्होंने कहा कि तीन सालों में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 1700 किमी सड़क को आवागमन योग्य बनाया गया है. गांव के बच्चों के हुनर को निखारने के लिए पंचायत स्तर पर खेल के मैदान तैयार कराए गये हैं. पंचायत सचिवालय का गठन किया जा रहा है. पंचायत सशक्तिकरण के लिए योजना बनाई जा रही है. उन्होंने कहा कि कनेक्टिविटी के मामले में आज झारखंड देश में पहले पायदान पर है.
खास बात है कि विभागीय मंत्री आलमगीर आलम के जवाब के बीच विधायकों ने सूचना के माध्यम से अपनी समस्याएं रखी. विधायक प्रदीप यादव, दीपिका पांडे सिंह, राजेश कच्छप, मथुरा महतो, डॉ इरफान अंसारी, विनोद सिंह, लोबिन हेंब्रम और सरफराज अहमद ने कहा कि विधायकों की अनदेखी की जा रही है. राजेश कच्छप ने कहा कि उनके विधानसभा क्षेत्र में बुधवार को सड़क का शिलान्यास हो रहा है. उनकी अनुशंसा पर ही सड़क बनने जा रही है लेकिन शिलान्यास पर उन्हें नहीं बुलाया गया. अन्य विधायकों ने भी कहा कि जनप्रतिनिधि होने के नाते पहली अनुशंसा विधायकों की होनी चाहिए. पूर्व में ऐसा ही होता था लेकिन अब सड़कों का निर्माण सीधे विभागीय स्तर से हो रहा है. सत्ताधारी दलों के ज्यादातर विधायकों की एक ही समस्या सामने आने पर मंत्री आलमगीर आलम ने भरोसा दिलाया कि वह इस मसले को गंभीरता से देखेंगे.