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Governor Ramesh Bais: ECI के ओपिनियन पर ऑर्डर से अस्थिर हो जाती सरकार, राज्यपाल रमेश बैस बोले- हेमंत सोरेन हैं अच्छे नेता

झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस को महाराष्ट्र का राज्यपाल बनाया गया है. महाराष्ट्र जाने से पहले उन्होंने कहा है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अच्छे नेता हैं. उन्होंने अन्य कई मुद्दों पर अपनी बात रखी.

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Published : Feb 15, 2023, 10:01 PM IST

रांचीः झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस 18 फरवरी को महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में शपथ ग्रहण करने वाले हैं. रांची से रवानगी के पहले उन्होंने मीडिया कर्मियों से बातचीत की. उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को एक अच्छा नेता बताते हुए कहा कि उन्होंने मुझ पर आरोप लगाया कि मैं केंद्र सरकार के इशारे पर सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कर रहा हूं. अगर ऐसी मेरी मंशा होती तो चुनाव आयोग से आए ओपिनियन पर मैंने आर्डर जारी कर दिया होता. हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि चुनाव आयोग ने ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में क्या मंतव्य भेजा है. उन्होंने कहा कि यह तो राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में है कि वह इस पर कब आदेश पारित करे. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव आयोग का मंतव्य आने के बाद राज्य सरकार के कामकाज में तेजी भी आई है.

राज्यपाल रमेश बैस ने कहा कि कोई भी मसला अगर विचार के लिए उनके पास आता है तो वह उस पर सलाह ले सकते हैं ,राय मशवरा भी कर सकते हैं. निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए कोई टाइम फ्रेम नहीं होता है. उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग का मंतव्य आने के बाद कई तरह के सवाल उठाए गए. सरकार की ओर से चुनाव आयोग और राज्य के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी को पत्र लिखकर मंतव्य की कॉपी की मांग की गई. लेकिन आयोग ने स्पष्ट कर दिया कि इस पर अंतिम फैसला लेने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ राजभवन को है. इसको ध्यान में रखते हुए मैंने तय कर रखा था कि इस पर सही समय आने पर फैसला लिया जाएगा. राज्यपाल ने कहा कि इतिहास गवाह है कि झारखंड में किस तरह से सरकारें अस्थिरता के दौर से गुजरी हैं. इसको ध्यान में रखकर मैं कतई नहीं चाहता था कि सरकार को अस्थिर किया जाए. मैंने स्पष्ट कहा था कि सरकार अपना काम करें. जब मुझे लगेगा कि फैसला लेना चाहिए तो मैं जरूर लूंगा. उन्होंने कहा कि शायद यही वजह है कि चुनाव आयोग का मंतव्य आने के बाद पिछले 6 महीने में राज्य सरकार ने जितने काम किए हैं, उतने काम पिछले 2 वर्षों में नहीं किए थे.

आपको बता दें कि पिछले साल 25 अगस्त को सीएम के नाम रांची में पत्थर खदान आवंटन से जुड़े ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में चुनाव आयोग ने राजभवन को अपना मंतव्य भेजा था. उस वक्त जोर शोर से इस बात की चर्चा थी कि चुनाव आयोग ने मुख्यमंत्री को विधानसभा की सदस्यता से डिसक्वालीफाई करने का सुझाव दिया था. मीडिया में इस खबर के आने के बाद मुख्यमंत्री के आवास पर सत्ताधारी दलों की कई बैठकें हुई थी. आलम यह था कि सत्ताधारी दल के मंत्री और विधायक लतरातू डैम से लेकर रायपुर के रिसोर्ट तक सैर कर रहे थे.

मीडियाकर्मियों से बातचीत के दौरान राज्यपाल रमेश बैस ने ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल के गठन के तौर तरीके पर भी अपनी राय साझा की. उन्होंने कहा कि उनके झारखंड आने से पहले नए नियम के तहत टीएसी का गठन हुआ था. उन्होंने इससे जुड़े फाइल की मांग की थी, जो नहीं मिली. उन्होंने कहा कि टीएसी शिड्यूल 5 के दायरे में आता है. उन्होंने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि अनुसूचित क्षेत्र की समीक्षा के दौरान उन्हें पता चला कि केंद्र सरकार की तरफ से साल 2020-21 और 2021-22 में करीब 200 करोड़ों रुपए आए थे, जिसका इस्तेमाल हुआ ही नहीं . उसी का नतीजा है कि साल 2022-23 में अनुसूचित क्षेत्र को लेकर केंद्र सरकार ने फंड जारी नहीं किया.

1932 के खतियान पर आधारित स्थानीयता से जुड़े बिल को वापस लौटाए जाने के सवाल पर राज्यपाल ने कहा कि ऐसे बिल की वैधानिकता को देखना उनका उत्तरदायित्व है. पूर्व में भी इस तरह के बिल को हाईकोर्ट खारिज कर चुका है. जाहिर है जब तक चीजें स्पष्ट नहीं होंगी, तब तक सहमति कैसे दी जाएगी.

हालांकि राज्यपाल ने कहा कि वह व्यक्तिगत रूप से मानते हैं कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन एक अच्छे नेता हैं. लेकिन यहां के पॉलिटिकल क्लास और ब्यूरोक्रेसी में अच्छे गवर्नेंस का विजन नहीं दिखता है. अगर अच्छे विजन के साथ इस राज्य में काम होगा तो इसको देश का एक विकसित राज्य बनने से कोई नहीं रोक सकता.

रांचीः झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस 18 फरवरी को महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में शपथ ग्रहण करने वाले हैं. रांची से रवानगी के पहले उन्होंने मीडिया कर्मियों से बातचीत की. उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को एक अच्छा नेता बताते हुए कहा कि उन्होंने मुझ पर आरोप लगाया कि मैं केंद्र सरकार के इशारे पर सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कर रहा हूं. अगर ऐसी मेरी मंशा होती तो चुनाव आयोग से आए ओपिनियन पर मैंने आर्डर जारी कर दिया होता. हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि चुनाव आयोग ने ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में क्या मंतव्य भेजा है. उन्होंने कहा कि यह तो राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में है कि वह इस पर कब आदेश पारित करे. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव आयोग का मंतव्य आने के बाद राज्य सरकार के कामकाज में तेजी भी आई है.

राज्यपाल रमेश बैस ने कहा कि कोई भी मसला अगर विचार के लिए उनके पास आता है तो वह उस पर सलाह ले सकते हैं ,राय मशवरा भी कर सकते हैं. निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए कोई टाइम फ्रेम नहीं होता है. उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग का मंतव्य आने के बाद कई तरह के सवाल उठाए गए. सरकार की ओर से चुनाव आयोग और राज्य के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी को पत्र लिखकर मंतव्य की कॉपी की मांग की गई. लेकिन आयोग ने स्पष्ट कर दिया कि इस पर अंतिम फैसला लेने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ राजभवन को है. इसको ध्यान में रखते हुए मैंने तय कर रखा था कि इस पर सही समय आने पर फैसला लिया जाएगा. राज्यपाल ने कहा कि इतिहास गवाह है कि झारखंड में किस तरह से सरकारें अस्थिरता के दौर से गुजरी हैं. इसको ध्यान में रखकर मैं कतई नहीं चाहता था कि सरकार को अस्थिर किया जाए. मैंने स्पष्ट कहा था कि सरकार अपना काम करें. जब मुझे लगेगा कि फैसला लेना चाहिए तो मैं जरूर लूंगा. उन्होंने कहा कि शायद यही वजह है कि चुनाव आयोग का मंतव्य आने के बाद पिछले 6 महीने में राज्य सरकार ने जितने काम किए हैं, उतने काम पिछले 2 वर्षों में नहीं किए थे.

आपको बता दें कि पिछले साल 25 अगस्त को सीएम के नाम रांची में पत्थर खदान आवंटन से जुड़े ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में चुनाव आयोग ने राजभवन को अपना मंतव्य भेजा था. उस वक्त जोर शोर से इस बात की चर्चा थी कि चुनाव आयोग ने मुख्यमंत्री को विधानसभा की सदस्यता से डिसक्वालीफाई करने का सुझाव दिया था. मीडिया में इस खबर के आने के बाद मुख्यमंत्री के आवास पर सत्ताधारी दलों की कई बैठकें हुई थी. आलम यह था कि सत्ताधारी दल के मंत्री और विधायक लतरातू डैम से लेकर रायपुर के रिसोर्ट तक सैर कर रहे थे.

मीडियाकर्मियों से बातचीत के दौरान राज्यपाल रमेश बैस ने ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल के गठन के तौर तरीके पर भी अपनी राय साझा की. उन्होंने कहा कि उनके झारखंड आने से पहले नए नियम के तहत टीएसी का गठन हुआ था. उन्होंने इससे जुड़े फाइल की मांग की थी, जो नहीं मिली. उन्होंने कहा कि टीएसी शिड्यूल 5 के दायरे में आता है. उन्होंने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि अनुसूचित क्षेत्र की समीक्षा के दौरान उन्हें पता चला कि केंद्र सरकार की तरफ से साल 2020-21 और 2021-22 में करीब 200 करोड़ों रुपए आए थे, जिसका इस्तेमाल हुआ ही नहीं . उसी का नतीजा है कि साल 2022-23 में अनुसूचित क्षेत्र को लेकर केंद्र सरकार ने फंड जारी नहीं किया.

1932 के खतियान पर आधारित स्थानीयता से जुड़े बिल को वापस लौटाए जाने के सवाल पर राज्यपाल ने कहा कि ऐसे बिल की वैधानिकता को देखना उनका उत्तरदायित्व है. पूर्व में भी इस तरह के बिल को हाईकोर्ट खारिज कर चुका है. जाहिर है जब तक चीजें स्पष्ट नहीं होंगी, तब तक सहमति कैसे दी जाएगी.

हालांकि राज्यपाल ने कहा कि वह व्यक्तिगत रूप से मानते हैं कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन एक अच्छे नेता हैं. लेकिन यहां के पॉलिटिकल क्लास और ब्यूरोक्रेसी में अच्छे गवर्नेंस का विजन नहीं दिखता है. अगर अच्छे विजन के साथ इस राज्य में काम होगा तो इसको देश का एक विकसित राज्य बनने से कोई नहीं रोक सकता.

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