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Envelope Politics in Jharkhand: झारखंड के राजभवन पर फिर टिकी निगाहें, बदल चुके हैं गवर्नर, क्या अब खुल सकता है लिफाफे का राज!

सीपी राधाकृष्णन को झारखंड का नया राज्यपाल नियुक्त किया गया है. वर्तमान राज्यपाल रमेश बैस को महाराष्ट्र का राज्यपाल बनाया गया है. ऐसे में क्या नए राज्यपाल चिपके हुए लिफाफे को खोलेंगे, या फिर लंबे समय के लिए लिफाफा चिपका ही रहेगा?

CP Radhakrishnan Jharkhand Governor
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Published : Feb 13, 2023, 8:37 PM IST

रांची: एक बार फिर झारखंड के राजभवन पर सबकी निगाहें टिक गई है. सवाल बस एक ही है कि क्या चुनाव आयोग से आया लिफाफा अब खुल सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि राज्यपाल रमेश बैस अब महाराष्ट्र जा रहे हैं और उनकी जगह पहली बार राज्यपाल बनकर सीपी राधाकृष्णन झारखंड आ रहे हैं. यह ऐसा लिफाफा है जिसमें झारखंड के सरकार की तकदीर लिखी हुई है. फिर भी राज्यपाल रमेश बैस इसका राज नहीं खोल पाए या यूं कहें कि राज खोलना नहीं चाहा. यह भी सही है कि उन्होंने अपने बयानों से लिफाफे की अहमियत बरकरार रखी. कुछ माह पहले उन्होंने कहा था कि चुनाव आयोग का लिफाफा ऐसा चिपका कि खुल नहीं रहा.

ये भी पढ़ें- Jharkhand Governor CP Radhakrishnan: सीपी राधाकृष्णन बने झारखंड के नए गवर्नर, रमेश बैस को मिली महाराष्ट्र की जिम्मेदारी

दिपावली के वक्त अपने होम टाउन रायपुर में एक निजी चैनल से बातचीत में उन्होंने यह कहकर खलबली मचा दी थी कि झारखंड में पटाखों पर प्रतिबंध नहीं है, हो सकता है कहीं एकाध एटम बम फट जाए. रायपुर से कभी नहीं हारने वाले सांसद रहे रमेश बैस ने अपने 19 माह के कार्यकाल के दौरान राजभवन को झारखंड की राजनीति के केंद्र में रखा. शायद यही वजह है कि उन्हें महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य का राज्यपाल मनोनीत किया गया है. लेकिन सवाल वही है कि क्या लिफाफा खुलेगा?

वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्रा का मानना है कि इसमें दो संभावनाएं हैं. एक तो ये कि अगर लिफाफे में सरकार के खिलाफ कोई बात होती तो अबतक लिफाफा खुल चुका होता. दूसरी संभावना इस बात की है कि लिफाफे में कोई ऐसी कानूनी बात हो सकती है, जिसको इंप्लिमेंट करने के लिए राजभवन अपनी रणनीति बना रहा हो. लेकिन यह बात भी है कि राज्यपाल को ऐसे गंभीर विषय पर पब्लिक फोरम पर बयानबाजी नहीं करनी चाहिए थी. यह उनके पद और मर्यादा के अनुकूल नहीं था. वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्रा ने कहा कि रमेश बैस जी जबतक महाराष्ट्र की जिम्मेदारी नहीं संभाल लेते या सीपी राधाकृष्णन जबतक यहां का पदभार नहीं ग्रहण कर लेते, तबतक लिफाफे वाला संकट बरकरार रहेगा.

ये भी पढ़ें- चुनाव आयोग की रिपोर्ट पर राज्यपाल का बयान, कहा- लिफाफा चिपक गया है, खुल नहीं रहा है

वरिष्ठ पत्रकार मधुकर जी ने कहा कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोग भी राजनीति करते रहे हैं. जब कहा जाएगा कि लिफाफा खोलना है तो लिफाफा खुल जाएगा. डराने की राजनीति का भी हिस्सा हो सकता है लिफाफा. अब झारखंड में इस लिफाफे का कोई मतलब नहीं रह गया है. जो लिफाफा 25 अगस्त 2022 को ही आ गया है तो अब इसकी अहमियत नहीं दिखती. उन्होंने यह भी कहा कि इस मसले को करप्शन से जोड़कर सामने लाया गया था. लिहाजा, यह भी देखा जाना चाहिए कि क्या सिर्फ एक खेमे में ही करप्शन है ?

ठीक एक साल पहले शुरू हुआ था खेल: एक साल गुजर गया. ऐसा लगता है जैसे कल की ही बात हो. जिस लिफाफे की चर्चा हो रही है, उसका बीजारोपण ठीक एक साल पहले 11 फरवरी 2022 को हुआ था. तब बाबूलाल मरांडी और रघुवर दास एक प्रतिनिमंडल के साथ राजभवन पहुंचे थे. इस प्रतिनिधिमंडल ने सीएम हेमंत सोरेन को विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य करार देने की मांग की थी. दलील थी कि सीएम ने 2008 में अपने नाम से रांची 0.88 एकड़ क्षेत्र में स्टोन माइनिंग लीज के संबंध में खनन योजना की स्वीकृति मांगी थी. उनके सीएम बनते ही जिला खनन पदाधिकारी ने 10 जुलाई 2021 को उनके पक्ष में पत्थर खनन पट्टा स्वीकृत कर दिया. इसे ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला बताते हुए लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 9 (A) के तहत अयोग्य घोषित करने की मांग की गई थी. प्रतिनिधिमंडल ने कहा था कि राज्यपाल को संविधान के अनुच्छेद 192 के तहत अयोग्यता के प्रश्न की जांच कराने का अधिकार है. इस मामले को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1998 की धारा 2(C) से भी जोड़े जाने की मांग की गई थी. इसी आधार पर राज्यपाल रमेश बैस ने पूरे मामले में चुनाव आयोग से मंतव्य मांगा था.

ये भी पढ़ें- झारखंड में फट सकता है एक आध एटम बम, सीएम से जुड़े ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले पर बोले राज्यपाल

झारखंड में लिफाफे का खौफ: राजभवन की पहल के बाद चुनाव आयोग के ट्रिब्यूनल में लंबी सुनवाई चली. सीएम की तरफ से जवाब दिया गया. दोनों पक्ष की ओर से वकीलों ने अपनी-अपनी बात रखी. फिर 25 अगस्त 2022 को चुनाव आयोग ने इस मसले पर अपना मंतव्य राजभवन को भेज दिया. आयोग से लिफाफा पहुंचते ही झारखंड की राजनीति में भूचाल आ गया. सीएम आवास पर बैठकों का दौर चलने लगा. इसका ऐसा असर हुआ कि सत्ताधारी दल के सभी मंत्री विधायक को लतरातू डैम से लेकर रायपुर के रिसार्ट तक सैर कराई गयी. ऐसा लगा मानो सरकार कभी भी गिर जाएगी. लेकिन राजभवन चुप्पी साधे बैठा रहा.

आपको स्पष्ट कर दें कि विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक आयोग ने सीएम को विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य करार देने की बात की है. लेकिन राज्यपाल यह कहते रहे कि लिफाफा चिपका हुआ है. कुछ दिन बाद जब मामला ठंडा पड़ा तो झामुमो ने चुनाव आयोग के मंतव्य को जानने के लिए दबाव भी बनाया, जिसे आयोग ने संवैधानिक मामला बताते हुए खारिज कर दिया. बाद में सीएम ने खुद मीडिया के जरूर राज्यपाल से लिफाफे का राज खोलने की गुजारिश की. उन्होंने यहां तक कहा कि अगर मैं मुजरिम हूं तो सजा सुना दी जाए. सीएम ने कहा था कि मैं देश का ऐसा पहला मुख्यमंत्री हूं जो हाथ जोड़कर सजा मांग रहा है. चुनाव आयोग के लिफाफे का खौफ अब भी बरकरार है. सरकार के तीन साल पूरे होने पर सीएम से जब इसको लेकर सवाल किया गया था तो उन्होंने कहा कि मैं तो बस इंतजार कर रहा हूं.

रांची: एक बार फिर झारखंड के राजभवन पर सबकी निगाहें टिक गई है. सवाल बस एक ही है कि क्या चुनाव आयोग से आया लिफाफा अब खुल सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि राज्यपाल रमेश बैस अब महाराष्ट्र जा रहे हैं और उनकी जगह पहली बार राज्यपाल बनकर सीपी राधाकृष्णन झारखंड आ रहे हैं. यह ऐसा लिफाफा है जिसमें झारखंड के सरकार की तकदीर लिखी हुई है. फिर भी राज्यपाल रमेश बैस इसका राज नहीं खोल पाए या यूं कहें कि राज खोलना नहीं चाहा. यह भी सही है कि उन्होंने अपने बयानों से लिफाफे की अहमियत बरकरार रखी. कुछ माह पहले उन्होंने कहा था कि चुनाव आयोग का लिफाफा ऐसा चिपका कि खुल नहीं रहा.

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दिपावली के वक्त अपने होम टाउन रायपुर में एक निजी चैनल से बातचीत में उन्होंने यह कहकर खलबली मचा दी थी कि झारखंड में पटाखों पर प्रतिबंध नहीं है, हो सकता है कहीं एकाध एटम बम फट जाए. रायपुर से कभी नहीं हारने वाले सांसद रहे रमेश बैस ने अपने 19 माह के कार्यकाल के दौरान राजभवन को झारखंड की राजनीति के केंद्र में रखा. शायद यही वजह है कि उन्हें महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य का राज्यपाल मनोनीत किया गया है. लेकिन सवाल वही है कि क्या लिफाफा खुलेगा?

वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्रा का मानना है कि इसमें दो संभावनाएं हैं. एक तो ये कि अगर लिफाफे में सरकार के खिलाफ कोई बात होती तो अबतक लिफाफा खुल चुका होता. दूसरी संभावना इस बात की है कि लिफाफे में कोई ऐसी कानूनी बात हो सकती है, जिसको इंप्लिमेंट करने के लिए राजभवन अपनी रणनीति बना रहा हो. लेकिन यह बात भी है कि राज्यपाल को ऐसे गंभीर विषय पर पब्लिक फोरम पर बयानबाजी नहीं करनी चाहिए थी. यह उनके पद और मर्यादा के अनुकूल नहीं था. वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्रा ने कहा कि रमेश बैस जी जबतक महाराष्ट्र की जिम्मेदारी नहीं संभाल लेते या सीपी राधाकृष्णन जबतक यहां का पदभार नहीं ग्रहण कर लेते, तबतक लिफाफे वाला संकट बरकरार रहेगा.

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वरिष्ठ पत्रकार मधुकर जी ने कहा कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोग भी राजनीति करते रहे हैं. जब कहा जाएगा कि लिफाफा खोलना है तो लिफाफा खुल जाएगा. डराने की राजनीति का भी हिस्सा हो सकता है लिफाफा. अब झारखंड में इस लिफाफे का कोई मतलब नहीं रह गया है. जो लिफाफा 25 अगस्त 2022 को ही आ गया है तो अब इसकी अहमियत नहीं दिखती. उन्होंने यह भी कहा कि इस मसले को करप्शन से जोड़कर सामने लाया गया था. लिहाजा, यह भी देखा जाना चाहिए कि क्या सिर्फ एक खेमे में ही करप्शन है ?

ठीक एक साल पहले शुरू हुआ था खेल: एक साल गुजर गया. ऐसा लगता है जैसे कल की ही बात हो. जिस लिफाफे की चर्चा हो रही है, उसका बीजारोपण ठीक एक साल पहले 11 फरवरी 2022 को हुआ था. तब बाबूलाल मरांडी और रघुवर दास एक प्रतिनिमंडल के साथ राजभवन पहुंचे थे. इस प्रतिनिधिमंडल ने सीएम हेमंत सोरेन को विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य करार देने की मांग की थी. दलील थी कि सीएम ने 2008 में अपने नाम से रांची 0.88 एकड़ क्षेत्र में स्टोन माइनिंग लीज के संबंध में खनन योजना की स्वीकृति मांगी थी. उनके सीएम बनते ही जिला खनन पदाधिकारी ने 10 जुलाई 2021 को उनके पक्ष में पत्थर खनन पट्टा स्वीकृत कर दिया. इसे ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला बताते हुए लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 9 (A) के तहत अयोग्य घोषित करने की मांग की गई थी. प्रतिनिधिमंडल ने कहा था कि राज्यपाल को संविधान के अनुच्छेद 192 के तहत अयोग्यता के प्रश्न की जांच कराने का अधिकार है. इस मामले को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1998 की धारा 2(C) से भी जोड़े जाने की मांग की गई थी. इसी आधार पर राज्यपाल रमेश बैस ने पूरे मामले में चुनाव आयोग से मंतव्य मांगा था.

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झारखंड में लिफाफे का खौफ: राजभवन की पहल के बाद चुनाव आयोग के ट्रिब्यूनल में लंबी सुनवाई चली. सीएम की तरफ से जवाब दिया गया. दोनों पक्ष की ओर से वकीलों ने अपनी-अपनी बात रखी. फिर 25 अगस्त 2022 को चुनाव आयोग ने इस मसले पर अपना मंतव्य राजभवन को भेज दिया. आयोग से लिफाफा पहुंचते ही झारखंड की राजनीति में भूचाल आ गया. सीएम आवास पर बैठकों का दौर चलने लगा. इसका ऐसा असर हुआ कि सत्ताधारी दल के सभी मंत्री विधायक को लतरातू डैम से लेकर रायपुर के रिसार्ट तक सैर कराई गयी. ऐसा लगा मानो सरकार कभी भी गिर जाएगी. लेकिन राजभवन चुप्पी साधे बैठा रहा.

आपको स्पष्ट कर दें कि विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक आयोग ने सीएम को विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य करार देने की बात की है. लेकिन राज्यपाल यह कहते रहे कि लिफाफा चिपका हुआ है. कुछ दिन बाद जब मामला ठंडा पड़ा तो झामुमो ने चुनाव आयोग के मंतव्य को जानने के लिए दबाव भी बनाया, जिसे आयोग ने संवैधानिक मामला बताते हुए खारिज कर दिया. बाद में सीएम ने खुद मीडिया के जरूर राज्यपाल से लिफाफे का राज खोलने की गुजारिश की. उन्होंने यहां तक कहा कि अगर मैं मुजरिम हूं तो सजा सुना दी जाए. सीएम ने कहा था कि मैं देश का ऐसा पहला मुख्यमंत्री हूं जो हाथ जोड़कर सजा मांग रहा है. चुनाव आयोग के लिफाफे का खौफ अब भी बरकरार है. सरकार के तीन साल पूरे होने पर सीएम से जब इसको लेकर सवाल किया गया था तो उन्होंने कहा कि मैं तो बस इंतजार कर रहा हूं.

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