रांची: झारखंड से हर साल बड़ी संख्या में मजदूरों का पलायन होता है. यहां के भोले-भाले लोग दूसरे राज्यों में जाकर शिद्दत से मेहनत कर दो पैसे कमाते हैं. लेकिन इनका भोलापन ही इनके शोषण का कारण बन जाता है. यही वजह है कि अलग-अलग राज्यों से झारखंड के मजदूरों के शोषण की खबरें अक्सर सामने आती रहती हैं. जब बात राहत पहुंचाने की होती है तो अधिकारी इंटर स्टेट का हवाला देकर पल्ला झाड़ते रहे हैं. शुक्र है कि साल 2020 में कोविड की वजह से लगे लॉकडाउन ने पूरे देश को मजदूरों के जख्म से रूबरू करा दिया. इसमें कोई शक नहीं कि मजदूरों की तकलीफ को झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने शिद्दत से महसूस किया. इसी का नतीजा था कि मजदूरों को लेकर देश की पहली ट्रेन झारखंड आई थी. पहली बार ऐसा हुआ कि लेह लद्दाख में फंसे मजदूरों को हवाई जहाज से वापस लाया गया.
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अब झारखंड के मजदूरों के साथ दूसरे राज्यों में शोषण न हो, इसपर सरकार काम कर रही है. उनके को पलायन के सुरक्षित और जवाबदेह बनाने की पहल की जा रही है. इस दिशा में 16 दिसंबर को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन एक अभियान का शुभारंभ करने जा रहे हैं. इसके लिए एक कार्यक्रम का आयोजन होगा, जिसको नाम दिया गया है...“ SAFE AND RESPONSIBLE MIGRATION INITIATIVE”. कार्यक्रम के दौरान INTER STATE MIGRATION : LEARNING FROM COVID-19 PANDEMIC और MAPPING THE INVISIBLE : TECHNOLOGY AND ROLE OF STATE IN MAPPING MIGRATION विषय पर चर्चा होगी. इसमें सीएम के सचिव बिनय कुमार चौबे, श्रम आयुक्त ए. मुथु कुमार, मनरेगा आयुक्त राजेश्वरी बी, सीमीड के निदेशक बिनॉय पीटर, फिया फाउंडेशन के जॉनसन टोपनो समेत पीडैग और बीआईपीपी के प्रतिनिधि अपनी राय साझा करेंगे. कार्यक्रम में श्रम मंत्री सत्यानंद भोक्ता, मुख्य सचिव सुखदेव सिंह, नीति आयोग के विशेष सचिव के राजेश्वर राव मौजूद रहेंगे.
मजदूरों को कैसे मिलेगा फायदा
फिलहाल इस पायलट प्रोजेक्ट को दुमका, गुमला और चाईबासा के मजदूरों के पलायन को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया है. इन तीन जिलों से दिल्ली, केरल और लेह-लद्दाख में गए मजदूरों का डाटा बेस तैयार किया जाएगा. फिर संबंधित राज्यों से समन्वय स्थापित कर मजदूरों के सामाजिक, आर्थिक और कानूनी हक सुनिश्चित किए जाएंगे. ताकि कोई भी कामगार उनका शोषण ना कर सके. इसके लिए रांची में टेक्निकल सपोर्ट यूनिट स्थापित की जाएगी. मजदूरों को किसी भी तरह की दिक्कत होगी तो वे सीधा संपर्क कर अपनी समस्या बता सकेंगे. पायलट प्रोजेक्ट की सफलता के बाद इस व्यवस्था का दायरा बढ़ाया जाएगा.
फिया फाउंडेशन ने निभायी थी अहम भूमिका
साल 2020 में कोविड के दौरान फिया फाउंडेशन ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पहल पर श्रम विभाग से समन्वय स्थापित कर कॉल सेंटर की स्थापना की थी. इसका व्यापक असर दिखा था. दूसरे राज्यों में फंसे लाखों मजदूरों को इसके जरिए मदद पहुंचाई गई थी.