रांचीः एक कॉमन नारा है कि 'बच्चे पढ़ेंगे, तभी तो आगे बढ़ेंगे'. हर मां-बाप अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं. निजी स्कूल की भारी भरकम फीस वहन नहीं करने वालों को सरकारी स्कूलों का सहारा मिलता है. लेकिन सबसे बड़ी चुनौती बच्चियों की पढ़ाई को लेकर है. क्योंकि बच्चियों को हमेशा हाशिए पर रखा गया.
ऐसी सोच को बदलने के लिए कई जागरुकता अभियान चलाए गये. ज्यादा से ज्यादा बच्चे स्कूलों में आएं, इसके लिए मिडडे मील की व्यवस्था है. मुफ्त पुस्तक के अलावा ड्रेस दिया जाता है. लड़कियों के लिए तो साइकिल देने की भी व्यवस्था है. अब सवाल है कि क्या झारखंड में बच्चियों की शिक्षा को लेकर कोई बदलाव आया है. क्योंकि 2011 की जनगणना के मुताबिक झारखंड में साक्षरता दर 66.41 प्रतिशत है. इसमें पुरूषों की साक्षरता दर 76.84 प्रतिशत और महिला साक्षरता दर 55.45 प्रतिशत है. जाहिर है कि शिक्षा के मामले में बेटियां पीछे हैं.
लेकिन आज हम आपको बताएंगे कि जिला स्तर पर छह साल से ज्यादा उम्र की कितनी प्रतिशत बच्चियां हैं, जिसने कभी भी स्कूल अटेंड किया हो. नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे-4 की रिपोर्ट की तुलना में नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे-5 की रिपोर्ट में बहुत बदलाव देखने को मिल रहा है. इस मामले में बोकारो जिला टॉप पर है. बोकारो में 2015-16 में 63.8 प्रतिशत बच्चियां ऐसी थीं जो स्कूल तक पहुंचीं. इस जिले की बच्चियों का शिक्षा के प्रति रूझान इस कदर बढ़ा कि 2019-21 के सर्वे में इनका प्रतिशत बढ़कर 71.5 हो गया. राज्य के 24 जिलों में से 21 जिले ऐसे रहे जहां 6 साल से ज्यादा उम्र की बच्चियों ने स्कूल तक कदम रखा. लेकिन आश्चर्य की बात है कि इस मामले में देवघर, गुमला और सरायकेला में प्रोग्रेस नहीं हुआ.
आंकड़ों के मुताबिक तीन जिलों को छोड़कर अन्य सभी जिलों में बच्चियों के स्कूल के प्रति रूझान में बढ़ोतरी हुई है. लेकिन इसमें गौर करने वाली बात यह है कि पूर्वी सिंहभूम में सबसे ज्यादा 74.1 प्रतिशत, रांची में 73.3 प्रतिशत और बोकारो में 71.5 प्रतिशत बच्चियां स्कूल तक पहुंच पाई हैं. साहिबगंज, चाईबासा, पाकुड़, गोड्डा, दुमका और देवघर में स्थिति अभी भी अच्छी नहीं है. इन छह जिलों में छह साल से ज्यादा उम्र की 60 प्रतिशत से भी कम बच्चियां हैं जो स्कूल गई हैं.