रांची: झारखंड की राजनीति के लिए स्थानीय नीति एक बड़ा मुद्दा रहा है. राज्य गठन के बाद से ही इसको लेकर राजनीति होती रही है. जब कभी भी राज्य में सरकारें बनी स्थानीय नीति अपने-अपने ढंग से परिभाषित करने की कोशिश की गई. एक बार फिर राज्य की स्थानीय नीति से संबंधित विधेयक हेमंत सरकार शीतकालीन सत्र के चौथे दिन यानी बुधवार 20 दिसंबर को सदन के पटल पर लाने जा रही है.
2022 में झारखंड विधानसभा से पास बिल को राजभवन से लौटाए जाने के बाद राज्य सरकार के द्वारा इसमें आंशिक संशोधन कर 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति सदन के पटल पर रखने की तैयारी की गई है. पिछले दिनों राजभवन से लौटाई गई 2022 के झारखंड स्थानीय व्यक्तियों की परिणामी, सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य लाभों का विस्तार करने के लिए विधेयक में कई तरह की त्रुटियां पाई गई थी. राज्यपाल ने इस बिल को अटॉर्नी जनरल की रिपोर्ट का हवाला देते हुए यह कहते हुए लौटा दिया था कि विधेयक की धारा संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 16 (2) का उल्लंघन करती हुई प्रतीत होती है.
सदन में स्थानीय नीति संबंधी विधेयक आने से पहले सियासत शुरू: 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति को सदन में आने से पहले इस पर सियासत शुरू हो गई है. सत्ता पक्ष जहां इस बिल को सदन से पास करा कर जनता का विश्वास जीतने की कोशिश में है. वहीं, विपक्ष सरकार की मंशा पर सवाल खड़ा करने में जुटा है. आजसू विधायक लंबोदर महतो सरकार के इस कोशिश पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहते हैं कि राज्यपाल के द्वारा जिस तरह से टिप्पणी करते हुए इस बिल को लौटा दिया गया था उसके बावजूद सरकार यदि इसमें संशोधन किए बगैर सदन में लाने की कोशिश करती है तो कहीं ना कहीं वही स्थिति फिर से पैदा होगी और यह ढाक के तीन पात के जैसा साबित हो जाएगा.
विधायक सरयू राय मानते हैं कि अपने समर्थकों का विश्वास जीतने के लिए गैर संवैधानिक कदम उठाना उचित नहीं होगा. सदन से भले ही सरकार इसे पास कराने में सफल हो जाए मगर एक बार फिर न्यायिक व्यवस्था हमें अनुमति नहीं देगा, जो अमुमन अभी तक होता रहा है. श्रम मंत्री सत्यानंद भोक्ता कहते हैं कि राज्य सरकार पूरी तैयारी के साथ स्थानीय एवं नियोजन नीति बनाकर सदन के पटल पर लाएगी, जिससे राज्य के युवाओं को उनका वाजिब हक मिल सके. बहरहाल राज्य गठन के बाद से ही झारखंड में स्थानीय नीति को लेकर सियासत जारी है. ऐसे में देखना होगा कि हेमंत सरकार का 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति इस बार संवैधानिक रुप से कितना खड़ा उतरता है.
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