रांची: ठोस साक्ष्य के अभाव में अक्सर अपराधी सजा से बच जाते हैं. साक्ष्यों को बेहद मजबूत और प्रभावी बनाने में फॉरेंसिक एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. अगर वारदात की फॉरेंसिक जांच सही तरीके से हो तो कनविक्शन रेट भी बेहतर होगा. गुजरात पुलिस के पूर्व डीजीपी केशव कुमार जो अपने बेहतर अनुसंधान के लिए प्रसिद्ध हैं, वह झारखंड पुलिस के तेजतर्रार अफसरों को फॉरेंसिक जांच के गुर सिखा रहे हैं. झारखंड पुलिस के चुनिंदा पुलिस अफसरों के अलावा रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय के कुछ चुनिंदा छात्र भी पूर्व डीजीपी केशव कुमार से फॉरेंसिक जांच का ज्ञान ले रहे हैं. गुजरात पुलिस के लिए कई बेहतर अनुसंधान करने वाले पूर्व डीजीपी केशव कुमार 2 दिनों से रांची में हैं.
फॉरेंसिक के जरिये कनविक्शन केसेज को दिखाया गया: फॉरेंसिक साइंस के जरिए किस तरह अपराधियों को सजा दिलाया जा सकता है. कौन-कौन से ऐसे सबूत हैं जो मौके पर पड़े रहते हैं लेकिन नजर नहीं आते हैं. लेकिन फॉरेंसिक साइंस के जरिए वैसे तमाम सबूतों को एकत्र कर अपराधियों को सजा दिलाई जा सकती है. बस जरूरत है कि फॉरेंसिक साइंस की जानकारी की. फॉरेन्सिक के जरिये किस तरह अपराधियों के खिलाफ सबूत जुटाए जाएं, घटनास्थल पर सबसे पहले पहुंचने के बाद क्या-क्या करना है, किस तरह से सबूतों को सहेजना है, कौन से सबूत किस काम आएंगे इन सब की जानकारी केशव कुमार के द्वारा दी गई. बकायदा फॉरेंसिक साइंस के द्वारा हल किए गए वैसे मामले जो बेहद चर्चित रहे उसके वीडियो को दिखा कर भी पुलिसकर्मियों और छात्रों को पढ़ाया गया.
1986 बैच के थे आईपीएस: 1986 बैच के आईपीएस अफसर केशव कुमार गुजरात पुलिस में अपनी 35 वर्ष की सेवा दे चुके हैं. 35 वर्षों के कार्यकाल के दौरान फॉरेंसिक विज्ञान के विभिन्न आयामों का अनुसंधान में इस्तेमाल कर उन्होंने 61 अपराधियों को सजा दिलवाने में सफलता पाई थी. गुजरात में चर्चित शेर हत्याकांड में भी उन्हीं के प्रयास से आरोपियों को सजा मिली थी. गुजरात पुलिस के लिए बेहतरीन काम करने का नतीजा ही है कि केशव कुमार को राष्ट्रपति का सराहनीय पुलिस पदक और राष्ट्रपति का विशिष्ट सेवा पुलिस पदक से सम्मानित किया जा चुका है.