रांची: विधानसभा परिसर में पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने हेमंत सोरेन सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि सरकार की मंशा ठीक नहीं है, जिस वजह से युवाओं को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. राज्य गठन के बाद हमारी सरकार ने खतियान आधारित स्थानीयता बनाई कुछ लोग कोर्ट चले गए जिसके बाद न्यायालय के आदेश के कारण वह लागू नहीं हो पाया. फिर रघुवर सरकार में स्थानीय और नियोजन नीति 2016 में बनाई. लेकिन जब हेमंत सोरेन के नेतृत्व में इस प्रदेश में सरकार बनी तो स्थानीय और नियोजन नीति को खारिज कर दिया और वे नया नियोजन नीति लेकर आए.
ये भी पढ़ें- राज्यपाल से मिला सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल, 1932 खतियान आधारित स्थानीयता विधेयक पर जल्द साइन करने का किया आग्रह
हेमंत सरकार की नियोजन नीति और अव्यावहारिक थी, जिसका विरोध हम लोग शुरू से कर रहे थे. झारखंड हाई कोर्ट के निर्णय के बाद वही हुआ जो हम लोग कह रहे थे. सामान्य वर्ग के विद्यार्थियों के लिए 10वीं और 12वीं झारखंड से पास होना अनिवार्य और हिंदी-अंग्रेजी को दरकिनार कर उर्दू को प्राथमिकता देना उचित नहीं था. हाई कोर्ट ने भी इसे सही माना और नियोजन नीति को रद्द कर दिया.
झारखंड के विद्यार्थियों का भविष्य अंधकारमय-बाबूलाल: बाबूलाल मरांडी ने कहा है की नियोजन नीति हाई कोर्ट से रद्द होने के बाद झारखंड के विद्यार्थियों का भविष्य अंधकार में हो गया है. सरकार की गलत नीतियों की वजह से झारखंड के युवा आज सड़कों पर हैं. जानकारी के मुताबिक हेमंत सोरेन सरकार सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है, जिससे मामला और उलझेगा. मेरा मानना है कि सुप्रीम कोर्ट जाने के बजाए हाई कोर्ट ने एक और अवसर दिया है जिसे सरकार यहीं बैठकर सुलझा सकती है. कोर्ट ने पिछले दिनों या 2003 में जिन जिन बिदुओं पर आपत्ति जताई है उसमें निराकरण कर सरकार नियोजन और स्थानीय नीति बना सकती है.
ये भी पढ़ें- सीएम का तंज! राज्यपाल से क्यों नहीं मिलने जा रहे भाजपाई, नियोजन नीति रद्द कराने में यूपी-बिहार के लोगों की साजिश
स्थानीय और नियोजन नीति बनाने का अधिकार झारखंड सरकार को है इसलिए अपने दायित्वों से सरकार ना भागे और केंद्र के माथे पर इसे देने का काम नहीं करे. और यहीं पर बैठ कर इसे तय करना चाहिए. 2007 में सर्वोच्च न्यायालय ने जजमेंट दिया था उसमें अदालत ने कहा था कि कोई भी कानून को नौवीं अनुसूची में डालने से कानून नहीं बन जायेगा. इसलिए सरकार हठधर्मिता के बजाय इसे झारखंड के नौजवानों के भविष्य को ध्यान में रखकर निर्णय लेना चाहिए.