रांचीः एक सैनिक हमेशा योद्धा ही रहता है चाहे वह युद्ध का मैदान हो या फिर स्वास्थ्य के क्षेत्र में तरह-तरह की बीमारियों के खिलाफ जंग ही क्यों ना हो. आज रांची के भूतपूर्व सैनिक अजय विश्वकर्मा नेचुरोपैथी से इलाज कर लोगों को असाध्य रोगों से मुक्ति दिला रहे हैं.
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रांची के अजय विश्वकर्मा एक ऐसे ही वीर योद्धा हैं, जिन्होंने भारतीय थल सेना में सैनिक के रूप में कारगिल युद्ध में दुश्मन देश की सेना के दांत खट्टे कर दिए थे. अब सेवा से रिटायर होने के बाद वो स्वास्थ्य के क्षेत्र में गंभीर बीमारियों के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं. वह केमिकल यानी रसायन आधारित आधुनिक चिकित्सा पद्धति की जगह पर प्राकृतिक यानी नेचुरोपैथी (treating people with Naturopathy) से कई बीमारियों को परास्त करने में मरीजों के सहायक बन रहे हैं.
अजय विश्वकर्मा के सैनिक से प्राकृतिक चिकित्सक बनने की कहानी भी काफी रोचक है. अजय विश्वकर्मा ईटीवी भारत से बातचीत में कहते हैं कि एक बार उनको स्पाइन की समस्या हो गई और मॉडर्न मेडिसीन सिस्टम (modern medicine system) के डॉक्टरों ने कह दिया कि अब पूरी जिंदगी बेड पर ही रहना होगा. ऑपरेशन से भी गारंटी के साथ बीमारी ठीक हो जाए यह नहीं कहा जा सकता.
ऐसे में वो प्राकृतिक चिकित्सा की ओर अग्रसरित हुए और एक नेचुरोपैथ डॉक्टर की सलाह पर इलाज शुरू किया. 10 दिन में ही उनकी बीमारी ठीक होने लगी. इस एक घटना ने अजय विश्वकर्मा को नेचुरोपैथी की ओर इस कदर आकर्षित किया कि पहले उन्होंने पटना और फिर जोधपुर से नेचुरोपैथी में डिप्लोमा और डिग्री हासिल की. उसके बाद 2020 से रांची में रह कर नेचुरोपैथी से लोगों का इलाज शुरू कर दिया.
आईटी प्रोफेशनल दोस्त का मिला सहयोगः सैनिक से नेचुरोपैथी के चिकित्सक बने अजय विश्वकर्मा को अपने बीटेक प्रोफेशनल दोस्त परवेज नईम का भी साथ मिला और दोनों ने मिलकर कोकर इलाके में प्राकृतिक चिकित्सा संस्थान की स्थापना की. यहां 2 साल में ही उन्होंने 500 से ज्यादा मरीजों की प्राकृतिक चिकित्सा से कई असाध्य बीमारियों से मुक्ति दिला दी. अजय विश्वकर्मा और परवेज नईम कहते हैं कि वैसे तो प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति हर बीमारी में लाभकारी है. लेकिन अभी तक उन लोगों ने सभी प्रकार के दर्द, सर्वाइकल, स्पॉन्डिलाइटिस, डिप्रेशन, ऑर्गन डिसऑर्डर, रक्तचाप, मधुमेह और पार्किंसन जैसे रोगों से ग्रस्त मरीजों को नेचुरोपैथी से ठीक किया है.
आत्मविश्वास से लबरेज नजर आयीं वृद्ध मरीजः ईटीवी भारत की टीम ने जब अजय विश्वकर्मा के नेचुरोपैथी संस्थान पहुंची तो उस समय कई मरीज वहां प्राकृतिक चिकित्सा से इलाज करा रहे थे. उन्हीं में से एक कोकर की 67 साल की स्प्लास्टिका डुंगडुंग भी थीं. उन्होंने जो बताया वह हैरान करने वाला था, उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले तक घुटनों के दर्द की वजह से वह चलना तो दूर खड़ी भी नहीं हो पाती थी पर आज वो चल-फिर सकती हैं. उनके चेहरे पर आई मुस्कान बताती है कि प्राकृतिक चिकित्सा से उनकी बीमारी ठीक हो जाने का आत्मविश्वास उनमें आ गया है.
उनके जैसे ही बोकारो के अजय कुमार और रांची की सुधा ने माना कि अंग्रेजी दवाइयों की जगह प्राकृतिक पद्धति से इलाज (treatment with Naturopathy) से उन्हें फायदा हो रहा है. भूतपूर्व सैनिक और कारगिल युद्ध के योद्धा रहे अजय विश्वकर्मा कहते हैं कि स्लिप डिस्क खासकर L4,L5,S1 की समस्या का प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में सफल इलाज है जबकि आधुनिक चिकित्सा पद्धति में ऑपेरशन के लिए डॉक्टर्स बोलते हैं और साथ मे कई खतरे भी बताते हैं जबकि प्राकृतिक चिकित्सा में यह बिल्कुल ठीक हो जाता है.
सरकारी-गैरसरकारी स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल होना चाहिए नेचुरोपैथीः अजय विश्वकर्मा कहते हैं कि पहले जमाने में दादी-नानी के बताएं नुस्खे और हर घर का किचन ही दवाखाना हुआ करता था. जीवनशैली और खानपान से कई बीमारियां ठीक हो जाती थीं लेकिन धीरे धीरे विकास के नाम पर आज आहार बदला और कई बीमारियों के आगोश में लोग आते चले गए. आज भी अगर हर स्कूल और कॉलेज में प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति और उसकी महत्ता की बेसिक जानकारी भी दी जाए तो उसका लाभ आने वाली पीढ़ी को भी मिल सकेगा.
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प्राकृतिक चिकित्सा 19वीं शताब्दी में यूरोप में चले प्राकृतिक चिकित्सा आदोलनों की देन है. स्कॉटलैंडे के थॉमस एलिंसन 1880 के दशक में हाइजेनिक मेडिसिन का प्रचार कर रहे थे. वो प्राकृतिक आहार, व्यायाम पर जोर देते थे और तम्बाकू का सेवन ना करने और अतिकार्य से बचने की सलाह देते थे. इसके बाद नेचुरोपैथी शब्द का पहला प्रयोग सन 1895 में जॉन स्कील ने किया था. उसी शब्द को बेनेडिक्ट लस्ट ने आगे बढ़ा दिया. जिस कारण अमेरिका के प्राकृतिक चिकित्सक बेनेडिक्ट को यूएस में नेचुरोपैथी का जनक मानते हैं.
नेचुरोपैथी क्या हैः नेचुरोपैथी को हिंदी भाषा में प्राकृतिक चिकित्सा कहा जाता है. आज नेचुरोपैथी बहुत प्रचलित है और कई लोग नेचुरोपैथी से ही अपना इलाज करवाते हैं. नेचुरोपैथी क्या होती है, इसके बारे में कम लोगों को ही पता है और ऐसा होने पर लोग इसका लाभ नहीं उठा पाते. नेचुरोपैथी का उल्लेख हमारे वेदों और अन्य प्राचीन ग्रंथों में मिलता है. प्राचीन काल में प्राकृतिक पद्धति से ही रोगों इलाज किया जाता था. नेचुरोपैथी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इससे शरीर को कोई नुकसान या यूं कहें कि साइड इफेक्ट या दर्द नहीं होता और बिना शरीर को हानि पहुंचाए रोगों का इलाज होता है. नेचुरोपैथी के तहत ना केवल इलाज होता है बल्कि मरीज को मानसिक रुप से भी मजबूत बनाया जाता है.
नेचुरोपैथी के तहत प्रकृति के पांच मूल तत्व का प्रयोग किया जाता है जो कि पृथ्वी, अग्नि, आकाश, जल और वायु है. इन पांच तत्व का प्रयोग कर व्यक्ति को रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान की जाती है. सरल शब्दों में समझा जाए तो नेचुरोपैथी के तहत प्रकृति से मिलने वाली चीजों का प्रयोग कर रोगों का इलाज के लिए किया जाता है.
नेचुरोपैथी में कई थैरेपीः नेचुरोपैथी के तहत कई प्रकार की थैरपी अपनाई जाती है. मड थैरेपी के तहत प्राकृतिक मिट्टी का प्रयोग होता है. इसकी मदद से रोगों का इलाज होता है. त्वचा से संबंधित बीमारी में मड थैरेपी दी जाती है. इसके अलावा पेट दर्द, सिर दर्द दूर करे और बीपी को नियंत्रण में करने में भी इसका इस्तेमाल होता है. मिट्टी प्रकृति के पांच तत्वों में से एक है और इस थैरेपी के लिए चार फीट गहराई में मिलने वाली मिट्टी का प्रयोग होता है.
नेचुरोपैथी के अंतर्गत आने वाली मैग्रेट थैरेपी में चुंबक का प्रयोग होता है. इसके तहत शरीर के विभिन्न अंगों के ऊर्जा मार्ग पर स्थित प्वाइंट्स पर मैग्रेट चिपकाई जाती है. चुंबक को उन बिंदुओं पर लगाने से ऊर्जा का संचार शुरू हो जाता है. इस थैरेपी की मदद से कंधे, कोहनी, कमर, घुटने, स्लिप डिस्क, पेट, थायरॉइड जैसे रोगों का इलाज किया जा सकता है.
कलर थैरेपी काफी अहम होती है. इसकी मदद से तनाव को दूर किया जाता है. कलर थैरेपी में इंद्रधनुष के सात रंगों का प्रयोग किया जाता है. इंद्रधनुष के सात रंग खुशी, उदासी, अवसाद, गर्मी, शांति, क्रोध और जुनून से जुड़े होते हैं. तनाव को दूर करने के लिए इन रंगों का इस्तेमाल इलाज में किया जाता है.
एक्यूपंक्चर थैरेपी काफी लोकप्रिय पद्धति है और इसके जरिए दर्द को दूर किया जाता है. शरीर के जिस हिस्से में दर्द होता है उस हिस्से पर पतली-पतली सुइंया चुभाई जाती हैं. इस प्वाइंट्स का कनेक्शन बीमारी से होता है और इनकी मदद से दर्द को दूर किया जाता है. यह एक सामान्य इलाज में 5 से 20 सुई का प्रयोग होता है.
एक्यूप्रेशर पद्धति में शरीर के विभिन्न हिस्सों पर स्थित प्वाइंट्स को दबाया जाता है. ये बिंदु शरीर के हिस्सों से जुड़े होते हैं. जैसे कान के पीछे की तरफ झुके हुए भाग को दबाने से सिर दर्द, तनाव और चक्कर आने की समस्या दूर होती है. वहीं कोहनी के पीछे वाला हिस्सा दबाने कोलेस्ट्रॉल, उल्टी, रक्तचाप की समस्याओं से आराम मिलता है.
मसाज थैरेपी की मदद से तनाव, दर्द और अन्य तरह के रोगों का इलाज होता है. इसमें तेल से हाथ, पैरों, घुटने और शरीर के अन्य अंगों की मालिश की जाती है. मालिश करने से शरीर को आराम मिलता है और तनाव दूर होता है. वहीं शरीर के जिस हिस्से में दर्द है वहां तेल की मालिश करने से दर्द ठीक होता है.
हाइड्रो थैरेपी में जल का प्रयोग कर रोगों का इलाज किया जाता है. इसके तहत पानी से भरे टब में कई तरह की हर्बल चीजें डालकर इससे स्नान किया जाता है. ऐसा करने से जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द से होने पर इस थैरेपी से ये ठीक हो जाती है. इन थैरेपी के अलावा एयर थैरेपी, फास्टिंग थैरेपी और डाइट थैरेपी भी काफी प्रचलन में है. जिनके माध्यम से प्राकृतिक तौर पर बिना किसी साइड इफेक्ट के विभिन्न और असाध्य रोगों का इलाज किया जाता है.