रांचीः अलनीनो की वजह से इस वर्ष अनुमान है कि ना सिर्फ प्रचंड गर्मी पड़ेगा बल्कि इसकी अवधि भी लंबी होगी. इस पूर्वानुमान के बाद देश भर के मौसम वैज्ञानिक इस प्रयास में लगे हैं कि कैसे प्री मॉनसून के दौरान वज्रपात और लू से होने वाली परेशानियों को कम किया जा सकता है. समय से और सटीक पूर्वानुमान के लिए अत्याधुनिक तकनीक का कारगर इस्तेमाल हो, इसको लेकर चर्चा के लिए शनिवार को देशभर के मौसम केंद्रों के मौसम पूर्वानुमान वैज्ञानिकों ने ऑनलाइन मीटिंग की.
झारखंड के संदर्भ में मीटिंग ज्यादा महत्वपूर्णः यह मीटिंग झारखंड के संदर्भ में अधिक महत्वपूर्ण है. क्योंकि इस राज्य में वज्रपात एक आपदा के रूप में जान-माल की हानि हर साल होती है. वहीं राज्य के पलामू, गढ़वा, चतरा, कोडरमा, गिरिडीह, देवघर सहित कई जिले हैं, जहां हर साल गर्मी के समय में बहने वाली तेज पछुआ हवा लू में बदल जाती है, जो स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालता है. झारखंड में वज्रपात के कहर का अनुमान सिर्फ इससे लगा सकते हैं कि हर वर्ष 300 से अधिक लोगों की मौत वज्रपात के चपेट में आने से हो जाती है. वहीं मवेशियों की मौत और अन्य हानि भी हर वर्ष होती है, वो अलग है.
इस ऑनलाइन मीटिंग को लेकर रांची मौसम विज्ञान केंद्र के प्रभारी निदेशक और वरिष्ठ मौसम पूर्वानुमान वैज्ञानिक अभिषेक आनंद ने बताया कि हीट रिलेटेड इम्पैक्ट को कैसे कम किया जाए, इसके लिए यह प्रारंभिक बैठक थी. अभिषेक आनंद ने कहा कि मार्च महीने से प्री मॉनसून शुरू हो जाता है, ऐसे में थंडर स्ट्रॉम, लाइटिंग और हीट वेव के प्रभाव से कैसे जन मानस को बचाया जाए, इसको लेकर बैठक में चर्चा की गयी. उन्होंने कहा कि इस बैठक में जो निष्कर्ष निकला है, उसको धरातल पर उतारा जाएगा. राज्य प्रशासन और जिला प्रशासन के साथ साथ आम जनमानस को भी मौसम की अद्यतन जानकारी तत्क्षण मिले इसकी कवायद भी की जा रही है.
अभिषेक आनंद ने बताया कि राज्य में वज्रपात का पूर्वानुमान तो हम एक से तीन दिन पहले ही जारी कर देते हैं. लेकिन अब तो एडवांस रडार और सैटेलाइट से मिली तस्वीर का विश्लेषण कर 3 से 5 घंटे पहले सटीक तात्कालिक मौसम चेतावनी भी जारी करते हैं. उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष से राज्य में आपदा विभाग के साथ मिलकर कॉमन अलर्ट प्रोटोकाल 'सचेत' संदेश भी वज्रपात की संभावना वाले क्षेत्र विशेष में भेजा जाता है.
इस बार अधिक सचेत क्यों हैं मौसम वैज्ञानिकः इस वर्ष मौसम एवं जलवायु परिवर्तन विभाग और देश भर के मौसम पूर्वानुमान वैज्ञानिक इस लिए ज्यादा सचेत हैं, क्योंकि उनका अनुमान है कि सामुद्रिक घटना अलनीनो का प्रभाव भारत पर भी इस वर्ष पड़ेगा. अलनीनो के प्रभाव से ना सिर्फ प्रचंड गर्मी पड़ने की संभावना है बल्कि यह लंबा भी खिंचेगा. ऐसे में कैसे आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर इसके कुप्रभाव को कम से कम किया जाए, इसकी लगातार कोशिशें हो रही हैं.
अलनीनो, पश्चिमी विक्षोभ के कमजोर रहने, वैश्विक स्तर पर हो रहे जलवायु परिवर्तन और लंबा ड्राई स्पेल की वजह से इस वर्ष गर्मी पहले ही आ गयी है. पिछले चार दिनों से रांची सहित राज्य के ज्यादातर जिलों में अधिकतम और न्यूनतम तापमान सामान्य से 4-5 डिग्री सेल्सियस तक ऊपर चल रहा है और लोगों को गर्मी का एहसास होने लगा है.