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इस विधी से किसानों की आय होगी दोगुनी, कृषि वैज्ञानिक ने दी राय - birsa agriculture university

किसान अपने खेतों में फसल इस उम्मीद से लगाते हैं कि फसल का पैदावार होने के बाद उसे अच्छे मुनाफे में बेचा जा सके, लेकिन वे बाजार के उतार-चढ़ाव में खुद को संतुलित नहीं कर पाते हैं. ऐसे में कम लागत में किसानों की आय कैसे बढाई जाए, इसकी जानकारी बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक दिनेश कुमार रुसिया बता रहे हैं.

बिरसा कृषि विश्वविद्यालय
mulching and drip irrigation
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Published : Mar 5, 2020, 2:33 PM IST

रांची: देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य रखे हैं, लेकिन मौजूदा समय में किसानों की स्थिति किसी से छिपी हुई नहीं है. इस वक्त किसानों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि खेतों में फसल की उत्पादकता कैसे बढ़ाया जाए, ताकि अच्छी आमदनी हो सके.

देखें पूरी खबर

किसानों की आय दोगनी

किसान अपने खेतों में फसल इस उम्मीद से लगाते हैं कि फसल का पैदावार होने के बाद उसे अच्छे मुनाफे में बेचा जा सके, लेकिन वे बाजार के उतार-चढ़ाव में खुद को संतुलित नहीं कर पाते हैं. कारण यह है कि अपने खेतों में किसी भी फसल को लगाने के समय किसान अत्यधिक पूंजी का निवेश कर देते हैं, लेकिन उम्मीद को अनुकूल फसल का उत्पादन नहीं हो पाता है. ऐसे में कम लागत में किसानों की आय कैसे दोगुनी की जाए यह बड़ी चुनौती बनी हुई है.

ये भी पढ़ें-महिला दिवस विशेष : मुश्किलों को मारा मेहनत का 'मुक्का' और रिंग की क्वीन बन गई मैरीकॉम

प्लास्टिक मल्चिंग का प्रयोग

इन तमाम चीजों को जानने के लिए बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि इंजीनियरिंग विभाग के वैज्ञानिक दिनेश कुमार रुसिया से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की और जानने की कोशिश की कि कैसे मल्चिंग एवं ड्रिप इरिगेशन का इस्तेमाल कर खेती किया जा सकता है. कृषि वैज्ञानिक दिनेश कुमार रूसिया ने बताया कि किसान प्लास्टिक मल्चिंग का प्रयोग करके खेतों की उत्पादकता बढ़ा सकते हैं. खेतों में लगे पौधों को जमीन के चारों तरफ से प्लास्टिक फिल्म से सही तरीके से ढकने की प्रणाली को प्लास्टिक मल्चिंग कहते हैं.

खेतों में खरपतवार होने की भी संभावना

यह तकनीक खेतों में पानी की नमी बनाए रखने में कारगर होता है और खेतों में खरपतवार होने की भी संभावना कम हो जाती है, साथ ही पौधों को लंबे समय तक सुरक्षित रखने में भी सहायता मिलती है. इस तकनीक से मिट्टी को कठोर होने से बचाया जाता है. ड्रिप इरिगेशन के जरिए पौधों की जड़ों तक नमी पहुंचाया जाता है. ऐसे में वहां की नमी बरकरार रहती है. सब्जी के साथ-साथ फलदार पौधों के लिए इसका उपयोग करना काफी फायदेमंद होता है.

ये भी पढ़ें-रांची: छठी JPSC परीक्षा रद्द करने वाली खबरें फर्जी, विभाग ने जारी की विज्ञप्ति

झारखंड में भी तरबूज और खरबूज का उत्पादन

कृषि वैज्ञानिक ने कहा कि बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक जिस तरीके से किसानों को प्रशिक्षण दे रही है. ऐसे में वे अपनी आय को दुगनी नहीं, बल्कि चार गुनी तक बढ़ा सकते हैं. मल्चिंग एवं ड्रिप इरिगेशन का इस्तेमाल कर अब झारखंड में भी तरबूज और खरबूज का उत्पादन जोरों से हो रहा है. एक समय था जब बाहर के राज्यों से तरबूज और खरबूज की आयात यहां होती थी, लेकिन अब किसान इस तकनीक का प्रयोग कर काफी मात्रा में खरबूजा और तरबूज का उत्पादन कर रहे हैं. यहां की खरबूज खाने में भी काफी मीठा होता है.

कृषि मेला का आयोजन

कृषि वैज्ञानिक ने कहा कि किसान इस विधि से अपने फसलों की पैदावार को बढ़ा सकते है. बाजार में भी मल्चिंग एवं ड्रिप इरिगेशन के द्वारा तैयार की गई फसलों की डिमांड काफी होती है. उन्होंने कहा कि किसानों तक यह विधि अधिक से अधिक पहुंचे, इसे लेकर समय-समय पर बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में कृषि मेला का आयोजन भी किया जाता है, जिसके जरिए किसानों को बताया जाता है कि इस विधि का इस्तेमाल कर किसान अधिक से अधिक अपनी फसल की उत्पादकता को बढ़ा सकते हैं.

इस विधी से किसानों की आय होगी दोगुनी, कृषि वैज्ञानिक ने दी राय

रांची: देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य रखे हैं, लेकिन मौजूदा समय में किसानों की स्थिति किसी से छिपी हुई नहीं है. इस वक्त किसानों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि खेतों में फसल की उत्पादकता कैसे बढ़ाया जाए, ताकि अच्छी आमदनी हो सके.

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किसानों की आय दोगनी

किसान अपने खेतों में फसल इस उम्मीद से लगाते हैं कि फसल का पैदावार होने के बाद उसे अच्छे मुनाफे में बेचा जा सके, लेकिन वे बाजार के उतार-चढ़ाव में खुद को संतुलित नहीं कर पाते हैं. कारण यह है कि अपने खेतों में किसी भी फसल को लगाने के समय किसान अत्यधिक पूंजी का निवेश कर देते हैं, लेकिन उम्मीद को अनुकूल फसल का उत्पादन नहीं हो पाता है. ऐसे में कम लागत में किसानों की आय कैसे दोगुनी की जाए यह बड़ी चुनौती बनी हुई है.

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प्लास्टिक मल्चिंग का प्रयोग

इन तमाम चीजों को जानने के लिए बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि इंजीनियरिंग विभाग के वैज्ञानिक दिनेश कुमार रुसिया से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की और जानने की कोशिश की कि कैसे मल्चिंग एवं ड्रिप इरिगेशन का इस्तेमाल कर खेती किया जा सकता है. कृषि वैज्ञानिक दिनेश कुमार रूसिया ने बताया कि किसान प्लास्टिक मल्चिंग का प्रयोग करके खेतों की उत्पादकता बढ़ा सकते हैं. खेतों में लगे पौधों को जमीन के चारों तरफ से प्लास्टिक फिल्म से सही तरीके से ढकने की प्रणाली को प्लास्टिक मल्चिंग कहते हैं.

खेतों में खरपतवार होने की भी संभावना

यह तकनीक खेतों में पानी की नमी बनाए रखने में कारगर होता है और खेतों में खरपतवार होने की भी संभावना कम हो जाती है, साथ ही पौधों को लंबे समय तक सुरक्षित रखने में भी सहायता मिलती है. इस तकनीक से मिट्टी को कठोर होने से बचाया जाता है. ड्रिप इरिगेशन के जरिए पौधों की जड़ों तक नमी पहुंचाया जाता है. ऐसे में वहां की नमी बरकरार रहती है. सब्जी के साथ-साथ फलदार पौधों के लिए इसका उपयोग करना काफी फायदेमंद होता है.

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झारखंड में भी तरबूज और खरबूज का उत्पादन

कृषि वैज्ञानिक ने कहा कि बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक जिस तरीके से किसानों को प्रशिक्षण दे रही है. ऐसे में वे अपनी आय को दुगनी नहीं, बल्कि चार गुनी तक बढ़ा सकते हैं. मल्चिंग एवं ड्रिप इरिगेशन का इस्तेमाल कर अब झारखंड में भी तरबूज और खरबूज का उत्पादन जोरों से हो रहा है. एक समय था जब बाहर के राज्यों से तरबूज और खरबूज की आयात यहां होती थी, लेकिन अब किसान इस तकनीक का प्रयोग कर काफी मात्रा में खरबूजा और तरबूज का उत्पादन कर रहे हैं. यहां की खरबूज खाने में भी काफी मीठा होता है.

कृषि मेला का आयोजन

कृषि वैज्ञानिक ने कहा कि किसान इस विधि से अपने फसलों की पैदावार को बढ़ा सकते है. बाजार में भी मल्चिंग एवं ड्रिप इरिगेशन के द्वारा तैयार की गई फसलों की डिमांड काफी होती है. उन्होंने कहा कि किसानों तक यह विधि अधिक से अधिक पहुंचे, इसे लेकर समय-समय पर बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में कृषि मेला का आयोजन भी किया जाता है, जिसके जरिए किसानों को बताया जाता है कि इस विधि का इस्तेमाल कर किसान अधिक से अधिक अपनी फसल की उत्पादकता को बढ़ा सकते हैं.

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