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राज्यसभा चुनाव: भाजपा को एक सीट के लिए फैलानी पड़ेगी झोली, सत्ताधारी दल की दोनों सीटों पर नजर, क्या होगा की-फैक्टर

झारखंड में राज्यसभा चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज हो गई है. सत्ता पक्ष और विपक्ष की ओर से लॉबिंग शुरू हो गई है. जानते हैं क्या कहते हैं वर्तमान समीकरण...

Equation regarding Rajya Sabha elections in Jharkhand
Equation regarding Rajya Sabha elections in Jharkhand
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Published : Apr 22, 2022, 2:01 PM IST

रांची: झारखंड में राज्यसभा की दो सीटों के लिए 7 जुलाई से पहले चुनाव होने हैं. केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी और महेश पोद्दार का कार्यकाल समाप्त हो रहा है. दोनों सीटें भाजपा की हैं. लेकिन इसबार का अंकगणित भाजपा के फेवर में नहीं है. भाजपा उस स्थिति में नहीं है कि अपने बूते एक सीट भी जीत ले. इसके लिए उसे उन पुराने साथियों का सहारा लेना पड़ेगा, जो पहले से ही झारखंड लोकतांत्रिक मोर्चा बनाकर किंगमेकर की भूमिका में बैठे हुए हैं. इस मोर्चा में आजसू के सुदेश महतो, लंबोदर महतो, एनसीपी के कमलेश सिंह, निर्दलीय विधायक सरयू राय और अमित यादव शामिल हैं. लिहाजा, भाजपा के भीतर दावेदारी के लिए लॉबिंग शुरू हो गई है.

ये भी पढ़ें- झारखंड से राज्यसभा की दो सीटें हो रही खाली, जीतने की जुगत लगा रहे महागठबंधन और भाजपा

वर्तमान में विधानसभा में विधायकों की संख्या 80 है. आय से अधिक संपत्ति मामले में सजा मिलने के बाद कांग्रेस विधायक बंधु तिर्की की सदस्यता रद्द होने की वजह से एक सीट कम हो चुकी है. इस बार झारखंड की एक राज्यसभा सीट जीतने के लिए पहली प्राथमिकता के 27.6 वोट की जरूरत पड़ेगी. समीकरण की बात की जाए तो सत्ताधारी गठबंधन में झामुमो के 30, कांग्रेस के 17 और राजद का एक विधायक है. लिहाजा, सत्ताधारी दल के लिए एक सीट तो तय है. लेकिन दूसरी सीट के लिए उसके पास पहली प्राथमिकता के 21 वोट बचेंगे. भाकपा माले का साथ मिलने पर 22 वोट हो जाएंगे. लेकिन दूसरी सीट के लिए यह नाकाफी है.

वहीं, दूसरी तरफ भाजपा के 26 विधायक हैं. उन्हें पहली प्राथमिकता के दो वोट की दरकार होगी. इसमें एनडीए के पुराने अलायंस आजसू के पास दो वोट हैं. जो भाजपा की जीत के लिए काफी होंगे. लेकिन यह भी समझना जरूरी है कि झारखंड में राज्यसभा चुनावों के दौरान क्रॉस वोटिंग का खेल होता आया है. वर्तमान में जो दो सीटे खाली हो रहीं हैं, उनमें से महेश पोद्दार वाली सीट पर 2016 के चुनाव में जीत मुश्किल दिख रही थी. क्योंकि वोट का अंकगणित भाजपा के फेवर में नहीं था. दूसरी तरफ मुख्य विपक्षी दल झामुमो अपने प्रत्याशी बसंत सोरेन की जीत को लेकर आश्वस्त था. फिर भी खेल हो गया. झामुमो के चमरा लिंडा बीमार पड़ गये. माले की तरफ से क्रॉस वोटिंग हो गई. लिहाजा, बसंत सोरेन की हार हो गई. तब झारखंड की कमान रघुवर दास के पास थी. यह चुनाव विवादों में रहा. आईपीएस अफसर अनुराग गुप्ता पर वोट के लिए योगेंद्र साव की पत्नी निर्मला देवी पर दबाव डालने का आरोप लगा.

इसी तरह जून 2020 में प्रेमचंद गुप्ता और परिमल नथवाणी की सीट खाली होने पर सत्ताधारी दल झामुमो ने शिबू सोरेन और कांग्रेस ने शहजादा अनवर को प्रत्याशी बनाया था. वहीं भाजपा ने दीपक प्रकाश को. लेकिन सत्ताधारी दल के पास ज्यादा वोट होने के बावजूद दीपक प्रकाश को शिबू सोरेन से एक ज्यादा यानी 31 वोट हासिल हुए थे. लिहाजा, इस बार भी पक्ष और विपक्षी खेमे में अंकगणित का खेल शुरू हो गया है. लेकिन यह जानना जरूरी है कि भाजपा ने अबतक चुनावों के दौरान सिर्फ एमएस अहलूवालिया को दो बार झारखंड़ से जीताकर राज्यसभा भेजा था. इसके अलावा किसी भी प्रत्याशी को दोबारा मौका नहीं मिला. अब सवाल है कि क्या अहलूवालिया के रिकॉर्ड की बराबरी केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी करेंगे या फिर कोई नया चेहरा सामने आएगा.

दूसरी तरफ चर्चा इस बात को लेकर है कि भाजपा इसबार किसको प्रत्याशी बनाएगी. क्या केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी को फिर अवसर मिलेगा या पार्टी में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने पूर्व सीएम रघुवर दास को. माना जा रहा है कि रघुवर दास के प्रत्याशी बनाए जाने की संभावना की वजह से ही झारखंड लोकतांत्रिक मोर्चा बना है. इनमें चार विधायक ऐसे हैं जो रघुवर दास के एंटी माने जाते हैं. ऐसे में जानकारों का कहना है कि रघुवर दास को लेकर पार्टी कोई रिस्क नहीं लेना चाहेगी. वहीं सत्ताधारी गठबंधन ने भी अबतक अपना पत्ता नहीं खोला है. हालाकि कांग्रेस इस उम्मीद है कि उसे सुनिश्चित जीत वाली

रांची: झारखंड में राज्यसभा की दो सीटों के लिए 7 जुलाई से पहले चुनाव होने हैं. केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी और महेश पोद्दार का कार्यकाल समाप्त हो रहा है. दोनों सीटें भाजपा की हैं. लेकिन इसबार का अंकगणित भाजपा के फेवर में नहीं है. भाजपा उस स्थिति में नहीं है कि अपने बूते एक सीट भी जीत ले. इसके लिए उसे उन पुराने साथियों का सहारा लेना पड़ेगा, जो पहले से ही झारखंड लोकतांत्रिक मोर्चा बनाकर किंगमेकर की भूमिका में बैठे हुए हैं. इस मोर्चा में आजसू के सुदेश महतो, लंबोदर महतो, एनसीपी के कमलेश सिंह, निर्दलीय विधायक सरयू राय और अमित यादव शामिल हैं. लिहाजा, भाजपा के भीतर दावेदारी के लिए लॉबिंग शुरू हो गई है.

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वर्तमान में विधानसभा में विधायकों की संख्या 80 है. आय से अधिक संपत्ति मामले में सजा मिलने के बाद कांग्रेस विधायक बंधु तिर्की की सदस्यता रद्द होने की वजह से एक सीट कम हो चुकी है. इस बार झारखंड की एक राज्यसभा सीट जीतने के लिए पहली प्राथमिकता के 27.6 वोट की जरूरत पड़ेगी. समीकरण की बात की जाए तो सत्ताधारी गठबंधन में झामुमो के 30, कांग्रेस के 17 और राजद का एक विधायक है. लिहाजा, सत्ताधारी दल के लिए एक सीट तो तय है. लेकिन दूसरी सीट के लिए उसके पास पहली प्राथमिकता के 21 वोट बचेंगे. भाकपा माले का साथ मिलने पर 22 वोट हो जाएंगे. लेकिन दूसरी सीट के लिए यह नाकाफी है.

वहीं, दूसरी तरफ भाजपा के 26 विधायक हैं. उन्हें पहली प्राथमिकता के दो वोट की दरकार होगी. इसमें एनडीए के पुराने अलायंस आजसू के पास दो वोट हैं. जो भाजपा की जीत के लिए काफी होंगे. लेकिन यह भी समझना जरूरी है कि झारखंड में राज्यसभा चुनावों के दौरान क्रॉस वोटिंग का खेल होता आया है. वर्तमान में जो दो सीटे खाली हो रहीं हैं, उनमें से महेश पोद्दार वाली सीट पर 2016 के चुनाव में जीत मुश्किल दिख रही थी. क्योंकि वोट का अंकगणित भाजपा के फेवर में नहीं था. दूसरी तरफ मुख्य विपक्षी दल झामुमो अपने प्रत्याशी बसंत सोरेन की जीत को लेकर आश्वस्त था. फिर भी खेल हो गया. झामुमो के चमरा लिंडा बीमार पड़ गये. माले की तरफ से क्रॉस वोटिंग हो गई. लिहाजा, बसंत सोरेन की हार हो गई. तब झारखंड की कमान रघुवर दास के पास थी. यह चुनाव विवादों में रहा. आईपीएस अफसर अनुराग गुप्ता पर वोट के लिए योगेंद्र साव की पत्नी निर्मला देवी पर दबाव डालने का आरोप लगा.

इसी तरह जून 2020 में प्रेमचंद गुप्ता और परिमल नथवाणी की सीट खाली होने पर सत्ताधारी दल झामुमो ने शिबू सोरेन और कांग्रेस ने शहजादा अनवर को प्रत्याशी बनाया था. वहीं भाजपा ने दीपक प्रकाश को. लेकिन सत्ताधारी दल के पास ज्यादा वोट होने के बावजूद दीपक प्रकाश को शिबू सोरेन से एक ज्यादा यानी 31 वोट हासिल हुए थे. लिहाजा, इस बार भी पक्ष और विपक्षी खेमे में अंकगणित का खेल शुरू हो गया है. लेकिन यह जानना जरूरी है कि भाजपा ने अबतक चुनावों के दौरान सिर्फ एमएस अहलूवालिया को दो बार झारखंड़ से जीताकर राज्यसभा भेजा था. इसके अलावा किसी भी प्रत्याशी को दोबारा मौका नहीं मिला. अब सवाल है कि क्या अहलूवालिया के रिकॉर्ड की बराबरी केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी करेंगे या फिर कोई नया चेहरा सामने आएगा.

दूसरी तरफ चर्चा इस बात को लेकर है कि भाजपा इसबार किसको प्रत्याशी बनाएगी. क्या केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी को फिर अवसर मिलेगा या पार्टी में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने पूर्व सीएम रघुवर दास को. माना जा रहा है कि रघुवर दास के प्रत्याशी बनाए जाने की संभावना की वजह से ही झारखंड लोकतांत्रिक मोर्चा बना है. इनमें चार विधायक ऐसे हैं जो रघुवर दास के एंटी माने जाते हैं. ऐसे में जानकारों का कहना है कि रघुवर दास को लेकर पार्टी कोई रिस्क नहीं लेना चाहेगी. वहीं सत्ताधारी गठबंधन ने भी अबतक अपना पत्ता नहीं खोला है. हालाकि कांग्रेस इस उम्मीद है कि उसे सुनिश्चित जीत वाली

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