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आदिवासी बच्चों में शिक्षा की अलख जगा रहा है एकलव्य आवासीय विद्यालय, द्रोणाचार्य की भूमिका में केंद्र सरकार - आदिवासी बच्चों की शिक्षा

बजट 2021 में झारखंड में 69 नए एकलव्य आवासीय विद्यालय खोलने का ऐलान किया गया है. जल्द की झारखंड में 92 एकलव्य विद्यालय संचालित होने लगेंगे. इन स्कूलों के माध्यम से आदिवासी बच्चों की तस्वीर और तकदीर दोनों बदलेगी. वर्तमान में झारखंड में 7 विद्यालय संचालित हैं.

eklavya will change future of tribals.
'एकलव्य' बदलेगा आदिवासी बच्चों की तस्वीर.
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Published : Feb 3, 2021, 5:01 PM IST

Updated : Feb 3, 2021, 10:13 PM IST

रांची: 21 साल पहले जिस उद्देश्य के साथ झारखंड राज्य की स्थापना की गई थी वह आज भी अधूरा है. उम्मीद थी कि आदिवासियों की तकदीर और तस्वीर दोनों बदलेगी. अफसोस इस बात का है कि स्थिति बहुत ज्यादा नहीं बदली. लेकिन, अब 'एकलव्य' झारखंड के आदिवासियों की तकदीर बदलेगा.

देखिये स्पेशल रिपोर्ट

महाभारत की कहानियों में हमने सुना था कि एकलव्य ने गुरू दक्षिणा में द्रोणाचार्य को अपना अंगूठा दे दिया था. अब बदले दौर में द्रोणाचार्य की भूमिका निभा रही है केंद्र सरकार. जिसने बिना दक्षिणा लिए गरीब आदिवासी बच्चों को एकलव्य जैसा छात्र बनाने की पहल की है. झारखंड में बहुत जल्द 92 एकलव्य आवासीय विद्यालय संचालित होने लगेंगे. हर स्कूल में 480 छात्र गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हासिल कर अपना भविष्य बनाएंगे. बजट में केंद्र सरकार ने झारखंड में 69 एकलव्य आवासीय विद्यालय खोलने की घोषणा की है. वर्तमान में 7 विद्यालय संचालित हैं और 16 निर्माणाधीन हैं. इस विद्यालय में किस तरह पढ़ाई होती है और यह कैसे बच्चों की तकदीर बदल रहा है इसे जानने के लिए हम रांची से 65 किलोमीटर दूर तमाड़ के सलगाडीह स्थित एकलव्य आवासीय विद्यालय पहुंचे.

'एकलव्य' ने दी हौसले को उड़ान

यहां 12वीं में साइंस पढ़ने वाले चांडिल के दिलीप बेसरा की बातें सुनकर ऐसा लगा कि झारखंड को अब आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता. दिलीप एक गरीब परिवार से आते हैं. घर पर खाने को भी लाले थे. लेकिन, एकलव्य आवासीय विद्यालय इनके जीवन में टर्निंग प्वाइंट बनकर सामने आया. 8वीं में दाखिला मिला. 10वीं की बोर्ड परीक्षा में दिलीप ने 94 प्रतिशत से ज्यादा अंक हासिल किए. वह सिविल सर्विसेज या डिफेंस का अफसर बनना चाहते हैं.

ईटीवी भारत की टीम इस स्कूल में बिना किसी पूर्व सूचना के पहुंची थी. यहां जो कुछ दिखा वह सुकून देने वाला था. कोरोना की वजह से छठी से 9वीं तक के वैसे बच्चे जो अबतक स्कूल नहीं आ पाए हैं उन्हें ऑनलाइन पढ़ाया जा रहा था. स्कूल की शिक्षिका गौरी कुमारी ने बताया कि कोरोना शुरू होते ही ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था लागू कर दी गई थी.

दूसरे अभिभावक भी हो रहे प्रेरित

धालभूमगढ़ के सिकंदर टुडू 6वीं कक्षा से इसी स्कूल में पढ़ रहे हैं. आईटी सेक्टर में जाना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि इस स्कूल की वजह से लक्ष्य की तरफ बढ़ने का एक रास्ता मिला है. पढ़ाई के लिए गांव छोड़ने से दूसरे अभिभावक भी प्रेरित होकर अपने बच्चों को एकलव्य स्कूल भेज रहे हैं. उन्होंने कहा कि अच्छा लगता है कि हमको देखकर कोई आगे बढ़ रहा है.

स्कूल के प्रिंसिपल कार्विन वाटर्स ने झारखंड में 69 एकलव्य स्कूल खोले जाने के लिए सरकार को धन्यवाद दिया. उन्होंने कहा कि शिक्षा की इस व्यवस्था से ट्राइबल बच्चे मेन स्ट्रीम से जुड़ सकेंगे. अब इन्हें अपने सपने को साकार होते देख रहे हैं.

आदिवासी कल्याण आयुक्त हर्ष मंगला ने बताया कि केंद्र सरकार की पांच एजेंसियां स्कूलों का निर्माण करेंगी. स्कूलों को राज्य सरकार सीधे अपने नियंत्रण में चलाएगी. 69 स्कूलों के लिए जमीन का अधिग्रहण भी कर लिया गया है. केंद्र सरकार के जनजातीय मामलों के मंत्रालय के गाइडलाइन के हिसाब से झारखंड के सभी एकलव्य स्कूलों के संचालन के लिए एजेंसियां चयनित की जाएंगी. पूर्व से संचालित सात एकलव्य स्कूलों के बच्चे अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं. इसे और दुरुस्त किया जाएगा. उन्होंने बताया कि राज्य सरकार के आदिवासी कल्याण मंत्रालय की तरफ से 11 आश्रम विद्यालयों का संचालन हो रहा है. इसका पूरा खर्च राज्य सरकार वहन करती है.

झारखंड में वर्तमान में 7 स्कूल संचालित हो रहे हैं-

  • एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय, सलगाडीह, तमाड़, रांची
  • एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय, काठीजोरिया, दुमका
  • एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय, तोरसिंदुरी, चाईबासा
  • एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय, बसिया, गुमला
  • एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय, कुंजरा, लोहरदगा
  • एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय, भोगनाडीह, बरहेट, साहिबगंज
  • एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय, सुंदरपहाड़ी

एक स्कूल पर 5.23 करोड़ का खर्च

झारखंड के जनजातीय समाज में व्याप्त गरीबी उन्हें आगे नहीं बढ़ने देती. पांचवी कक्षा तक जाते-जाते ज्यादातर का स्कूलों से नाता टूट जाता है. पेट की आग सपनों के आड़े आ जाती है. लेकिन केंद्र सरकार के इस पहल के बाद उम्मीद है आगे ऐसा नहीं होगा. 92 आवासीय विद्यालय संचालित होने के बाद धीरे-धीरे झाखंड की तकदीर भी बदलेगी. एक स्कूल में कक्षा छह से 12वीं तक कुल 480 आदिवासी बच्चे पढ़ सकेंगे. खास बात है कि एक छात्र पर हर साल 1 लाख 9 हजार रूपए खर्च किए जाएंगे. सारा पैसा केंद्र सरकार देगी. एक स्कूल में शैक्षणिक और गैर शैक्षणिक मिलाकर कुल 52 स्टाफ होंगे. यानी सभी एकलव्य स्कूलों के संचालित होने पर 4,784 लोगों को नौकरी मिलेगी. एक स्कूल में 480 छात्र होंगे तो प्रति वर्ष उसके संचालन पर 5 करोड़ 23 लाख रूपए खर्च होंगे.

आदिवासियों की सारक्षता दर राष्ट्रीय औसत से 17% कम

2011 की जनगणना के अनुसार झारखंड की साक्षरता दर 67.43 प्रतिशत है जो राष्ट्रीय औसत से करीब 7 प्रतिशत कम है. इस अनुपात में जनजातीय समाज की साक्षरता दर महज 57.1 प्रतिशत है. शिक्षा के अभाव में भोले-भाले आदिवासियों का कई तरह से शोषण होता रहा है. जाहिर है जब इन्हें अच्छी शिक्षा मिलेगी तो जंगलों में रास्ता ढूंढ लेने वालें अपनी मंजिल खोज ही लेंगे.

रांची: 21 साल पहले जिस उद्देश्य के साथ झारखंड राज्य की स्थापना की गई थी वह आज भी अधूरा है. उम्मीद थी कि आदिवासियों की तकदीर और तस्वीर दोनों बदलेगी. अफसोस इस बात का है कि स्थिति बहुत ज्यादा नहीं बदली. लेकिन, अब 'एकलव्य' झारखंड के आदिवासियों की तकदीर बदलेगा.

देखिये स्पेशल रिपोर्ट

महाभारत की कहानियों में हमने सुना था कि एकलव्य ने गुरू दक्षिणा में द्रोणाचार्य को अपना अंगूठा दे दिया था. अब बदले दौर में द्रोणाचार्य की भूमिका निभा रही है केंद्र सरकार. जिसने बिना दक्षिणा लिए गरीब आदिवासी बच्चों को एकलव्य जैसा छात्र बनाने की पहल की है. झारखंड में बहुत जल्द 92 एकलव्य आवासीय विद्यालय संचालित होने लगेंगे. हर स्कूल में 480 छात्र गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हासिल कर अपना भविष्य बनाएंगे. बजट में केंद्र सरकार ने झारखंड में 69 एकलव्य आवासीय विद्यालय खोलने की घोषणा की है. वर्तमान में 7 विद्यालय संचालित हैं और 16 निर्माणाधीन हैं. इस विद्यालय में किस तरह पढ़ाई होती है और यह कैसे बच्चों की तकदीर बदल रहा है इसे जानने के लिए हम रांची से 65 किलोमीटर दूर तमाड़ के सलगाडीह स्थित एकलव्य आवासीय विद्यालय पहुंचे.

'एकलव्य' ने दी हौसले को उड़ान

यहां 12वीं में साइंस पढ़ने वाले चांडिल के दिलीप बेसरा की बातें सुनकर ऐसा लगा कि झारखंड को अब आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता. दिलीप एक गरीब परिवार से आते हैं. घर पर खाने को भी लाले थे. लेकिन, एकलव्य आवासीय विद्यालय इनके जीवन में टर्निंग प्वाइंट बनकर सामने आया. 8वीं में दाखिला मिला. 10वीं की बोर्ड परीक्षा में दिलीप ने 94 प्रतिशत से ज्यादा अंक हासिल किए. वह सिविल सर्विसेज या डिफेंस का अफसर बनना चाहते हैं.

ईटीवी भारत की टीम इस स्कूल में बिना किसी पूर्व सूचना के पहुंची थी. यहां जो कुछ दिखा वह सुकून देने वाला था. कोरोना की वजह से छठी से 9वीं तक के वैसे बच्चे जो अबतक स्कूल नहीं आ पाए हैं उन्हें ऑनलाइन पढ़ाया जा रहा था. स्कूल की शिक्षिका गौरी कुमारी ने बताया कि कोरोना शुरू होते ही ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था लागू कर दी गई थी.

दूसरे अभिभावक भी हो रहे प्रेरित

धालभूमगढ़ के सिकंदर टुडू 6वीं कक्षा से इसी स्कूल में पढ़ रहे हैं. आईटी सेक्टर में जाना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि इस स्कूल की वजह से लक्ष्य की तरफ बढ़ने का एक रास्ता मिला है. पढ़ाई के लिए गांव छोड़ने से दूसरे अभिभावक भी प्रेरित होकर अपने बच्चों को एकलव्य स्कूल भेज रहे हैं. उन्होंने कहा कि अच्छा लगता है कि हमको देखकर कोई आगे बढ़ रहा है.

स्कूल के प्रिंसिपल कार्विन वाटर्स ने झारखंड में 69 एकलव्य स्कूल खोले जाने के लिए सरकार को धन्यवाद दिया. उन्होंने कहा कि शिक्षा की इस व्यवस्था से ट्राइबल बच्चे मेन स्ट्रीम से जुड़ सकेंगे. अब इन्हें अपने सपने को साकार होते देख रहे हैं.

आदिवासी कल्याण आयुक्त हर्ष मंगला ने बताया कि केंद्र सरकार की पांच एजेंसियां स्कूलों का निर्माण करेंगी. स्कूलों को राज्य सरकार सीधे अपने नियंत्रण में चलाएगी. 69 स्कूलों के लिए जमीन का अधिग्रहण भी कर लिया गया है. केंद्र सरकार के जनजातीय मामलों के मंत्रालय के गाइडलाइन के हिसाब से झारखंड के सभी एकलव्य स्कूलों के संचालन के लिए एजेंसियां चयनित की जाएंगी. पूर्व से संचालित सात एकलव्य स्कूलों के बच्चे अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं. इसे और दुरुस्त किया जाएगा. उन्होंने बताया कि राज्य सरकार के आदिवासी कल्याण मंत्रालय की तरफ से 11 आश्रम विद्यालयों का संचालन हो रहा है. इसका पूरा खर्च राज्य सरकार वहन करती है.

झारखंड में वर्तमान में 7 स्कूल संचालित हो रहे हैं-

  • एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय, सलगाडीह, तमाड़, रांची
  • एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय, काठीजोरिया, दुमका
  • एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय, तोरसिंदुरी, चाईबासा
  • एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय, बसिया, गुमला
  • एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय, कुंजरा, लोहरदगा
  • एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय, भोगनाडीह, बरहेट, साहिबगंज
  • एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय, सुंदरपहाड़ी

एक स्कूल पर 5.23 करोड़ का खर्च

झारखंड के जनजातीय समाज में व्याप्त गरीबी उन्हें आगे नहीं बढ़ने देती. पांचवी कक्षा तक जाते-जाते ज्यादातर का स्कूलों से नाता टूट जाता है. पेट की आग सपनों के आड़े आ जाती है. लेकिन केंद्र सरकार के इस पहल के बाद उम्मीद है आगे ऐसा नहीं होगा. 92 आवासीय विद्यालय संचालित होने के बाद धीरे-धीरे झाखंड की तकदीर भी बदलेगी. एक स्कूल में कक्षा छह से 12वीं तक कुल 480 आदिवासी बच्चे पढ़ सकेंगे. खास बात है कि एक छात्र पर हर साल 1 लाख 9 हजार रूपए खर्च किए जाएंगे. सारा पैसा केंद्र सरकार देगी. एक स्कूल में शैक्षणिक और गैर शैक्षणिक मिलाकर कुल 52 स्टाफ होंगे. यानी सभी एकलव्य स्कूलों के संचालित होने पर 4,784 लोगों को नौकरी मिलेगी. एक स्कूल में 480 छात्र होंगे तो प्रति वर्ष उसके संचालन पर 5 करोड़ 23 लाख रूपए खर्च होंगे.

आदिवासियों की सारक्षता दर राष्ट्रीय औसत से 17% कम

2011 की जनगणना के अनुसार झारखंड की साक्षरता दर 67.43 प्रतिशत है जो राष्ट्रीय औसत से करीब 7 प्रतिशत कम है. इस अनुपात में जनजातीय समाज की साक्षरता दर महज 57.1 प्रतिशत है. शिक्षा के अभाव में भोले-भाले आदिवासियों का कई तरह से शोषण होता रहा है. जाहिर है जब इन्हें अच्छी शिक्षा मिलेगी तो जंगलों में रास्ता ढूंढ लेने वालें अपनी मंजिल खोज ही लेंगे.

Last Updated : Feb 3, 2021, 10:13 PM IST
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