ETV Bharat / state

झारखंड के वन क्षेत्रों की ड्रोन से निगरानी, तीसरी आंख से विभाग के काम में आई प्रमाणिकता, एक रिपोर्ट

author img

By

Published : Jul 2, 2022, 3:57 PM IST

झारखंड में वन क्षेत्रों की ड्रोन कैमरे से निगरानी हो रही है. ड्रोन कैमरे से मिले इनपुट के आधार पर डेटाबेस तैयार हो किया जा रहा है. इससे प्लांटेशन का भी असेसमेंट हो जाता है.

Drone surveillance of forest areas in Jharkhand
Drone surveillance of forest areas in Jharkhand

रांची: झारखंड की पहचान जल, जमीन और जंगल से होती है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि वन क्षेत्र के मामले में देश में झारखंड 18वें नंबर पर है. वन सर्वेक्षण 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक यहां राज्य के कुल क्षेत्रफल का सिर्फ 29.62 प्रतिशत वन क्षेत्र है. वन क्षेत्र में वृद्धि दिखाने के मामले में आंध्र प्रदेश टॉप पर है. आंध्र में 647 वर्ग किमी वन क्षेत्र का विस्तार हुआ है. इसके बाद तेलंगाना में 632 वर्ग किमी और ओडिशा में 537 वर्ग किमी वन क्षेत्र बढ़ा है. लेकिन झारखंड में सघन वनक्षेत्र का दायरा कम हुआ है.

झारखंड में सबसे ज्यादा वन क्षेत्र वाला जिला चतरा है. अब झारखंड के वन विभाग ने अपनी समस्याओं को दूर करने के लिए ड्रोन की मदद लेना शुरू कर दिया है. झारखंड में वन विभाग द्वारा वन विकास से संबंधित बेहतर दस्तावेजीकरण के लिए ड्रोन का उपयोग कर केंद्र को रिपोर्ट भेजी जा रही है. रांची के डीएफओ ने बताया कि टेक्नोलॉजी की मदद से प्रमाणिक डेटाबेस तैयार हो रहा है. वन विभाग में 46 ड्रोन कैमरे मंगवाए गये हैं. एजेंसी के जरिए कर्मियों को ड्रोन ऑपरेट करने की ट्रेनिंग दी गई है.

इसकी शुरूआत गुमला के डीएफओ श्रीकांत ने की थी. वर्तमान में उनके पास रांची डीएफओ का भी प्रभार है. उन्होंने कहा कि गुमला में वनाग्नि पर नजर रखने के लिए उन्होंने ड्रोन का इस्तेमाल शुरू किया था. मार्च से मई तक जंगलों में वनाग्नि की घटनाएं होती हैं. साथ ही महुआ चुनने के लिए भी आस-पास के गांव के लोग झाड़ियों में आग लगा देते हैं. जिसकी वजह से कई महत्वपूर्ण वनस्पतियां बर्बाद हो जाती थीं. जला हुआ क्षेत्र का एसेसमेंट नहीं हो पाता था. इसकी वजह से रिपोर्टिंग सही नहीं हो पाती थी. लेकिन ड्रोन की मदद से वनाग्नि को समय पर रोकने में मदद मिली.

जंगल के लिए ड्रोन कैसे बना कारगर: डीएफओ श्रीकांत ने बताया कि उन्होंने अपने स्तर से पहल कर 2019 जनवरी में ड्रोन खरीदा और गुमला में इस्तेमाल किया. इससे प्लांटेशन का भी असेसमेंट हो जाता है. कहां चेकडैम बनाना सही रहेगा, इसकी भी सटिक जानकारी मिल जाती है. इसके अलावा वृक्षारोपण के बाद पौधों की स्थिति का भी आंकलन किया जा रहा है. साथ ही अवैध माइनिंग पर भी नजर रखने में मदद मिल रही है. यही नहीं वैध माइनिंग इलाके में कंपनियों द्वारा प्लांटेशन के लिए किए जा रहे काम की भी निगरानी की जा रही है.

ड्रोन से हाथियों की गतिविधि पर नजर: दरअसल, झारखंड के वनक्षेत्रों के आसपास के गांवों में जंगली हाथी अक्सर घुस आते हैं. फसलों के साथ-साथ घरों को भी नुकसान पहुंचाते हैं. लिहाजा, अब ड्रोन से हर दिन हाथियों के मूवमेंट की रिपोर्टिंग हो रही है. हाथियों की आवाजाही की जानकारी समय रहते वन कर्मियों के माध्यम से ग्रामीणों तक पहुंचाई जा रही है. इससे जानमाल को बचाने में काफी मदद मिली है.

पर्यटक स्थल विकसित करने में भूमिका: झारखंड में ड्रोन की मदद से एक डाटा बेस तैयार किया जा रहा है. विभाग को कई ऐसे स्पॉट मिले हैं जिन्हें पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है. अबतक कई शानदार स्पॉट चिन्हित किए गये हैं. पर्यटन विभाग से स्नैपशॉट साझा करने के बाद नये पर्यटन स्थल विकसित करने की दिशा में काम किया जा रहा है.

रांची: झारखंड की पहचान जल, जमीन और जंगल से होती है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि वन क्षेत्र के मामले में देश में झारखंड 18वें नंबर पर है. वन सर्वेक्षण 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक यहां राज्य के कुल क्षेत्रफल का सिर्फ 29.62 प्रतिशत वन क्षेत्र है. वन क्षेत्र में वृद्धि दिखाने के मामले में आंध्र प्रदेश टॉप पर है. आंध्र में 647 वर्ग किमी वन क्षेत्र का विस्तार हुआ है. इसके बाद तेलंगाना में 632 वर्ग किमी और ओडिशा में 537 वर्ग किमी वन क्षेत्र बढ़ा है. लेकिन झारखंड में सघन वनक्षेत्र का दायरा कम हुआ है.

झारखंड में सबसे ज्यादा वन क्षेत्र वाला जिला चतरा है. अब झारखंड के वन विभाग ने अपनी समस्याओं को दूर करने के लिए ड्रोन की मदद लेना शुरू कर दिया है. झारखंड में वन विभाग द्वारा वन विकास से संबंधित बेहतर दस्तावेजीकरण के लिए ड्रोन का उपयोग कर केंद्र को रिपोर्ट भेजी जा रही है. रांची के डीएफओ ने बताया कि टेक्नोलॉजी की मदद से प्रमाणिक डेटाबेस तैयार हो रहा है. वन विभाग में 46 ड्रोन कैमरे मंगवाए गये हैं. एजेंसी के जरिए कर्मियों को ड्रोन ऑपरेट करने की ट्रेनिंग दी गई है.

इसकी शुरूआत गुमला के डीएफओ श्रीकांत ने की थी. वर्तमान में उनके पास रांची डीएफओ का भी प्रभार है. उन्होंने कहा कि गुमला में वनाग्नि पर नजर रखने के लिए उन्होंने ड्रोन का इस्तेमाल शुरू किया था. मार्च से मई तक जंगलों में वनाग्नि की घटनाएं होती हैं. साथ ही महुआ चुनने के लिए भी आस-पास के गांव के लोग झाड़ियों में आग लगा देते हैं. जिसकी वजह से कई महत्वपूर्ण वनस्पतियां बर्बाद हो जाती थीं. जला हुआ क्षेत्र का एसेसमेंट नहीं हो पाता था. इसकी वजह से रिपोर्टिंग सही नहीं हो पाती थी. लेकिन ड्रोन की मदद से वनाग्नि को समय पर रोकने में मदद मिली.

जंगल के लिए ड्रोन कैसे बना कारगर: डीएफओ श्रीकांत ने बताया कि उन्होंने अपने स्तर से पहल कर 2019 जनवरी में ड्रोन खरीदा और गुमला में इस्तेमाल किया. इससे प्लांटेशन का भी असेसमेंट हो जाता है. कहां चेकडैम बनाना सही रहेगा, इसकी भी सटिक जानकारी मिल जाती है. इसके अलावा वृक्षारोपण के बाद पौधों की स्थिति का भी आंकलन किया जा रहा है. साथ ही अवैध माइनिंग पर भी नजर रखने में मदद मिल रही है. यही नहीं वैध माइनिंग इलाके में कंपनियों द्वारा प्लांटेशन के लिए किए जा रहे काम की भी निगरानी की जा रही है.

ड्रोन से हाथियों की गतिविधि पर नजर: दरअसल, झारखंड के वनक्षेत्रों के आसपास के गांवों में जंगली हाथी अक्सर घुस आते हैं. फसलों के साथ-साथ घरों को भी नुकसान पहुंचाते हैं. लिहाजा, अब ड्रोन से हर दिन हाथियों के मूवमेंट की रिपोर्टिंग हो रही है. हाथियों की आवाजाही की जानकारी समय रहते वन कर्मियों के माध्यम से ग्रामीणों तक पहुंचाई जा रही है. इससे जानमाल को बचाने में काफी मदद मिली है.

पर्यटक स्थल विकसित करने में भूमिका: झारखंड में ड्रोन की मदद से एक डाटा बेस तैयार किया जा रहा है. विभाग को कई ऐसे स्पॉट मिले हैं जिन्हें पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है. अबतक कई शानदार स्पॉट चिन्हित किए गये हैं. पर्यटन विभाग से स्नैपशॉट साझा करने के बाद नये पर्यटन स्थल विकसित करने की दिशा में काम किया जा रहा है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.