रांची: डॉक्टरों को झारखंड में सरकारी हॉस्पिटल्स और मेडिकल कॉलेजों की नौकरी रास नहीं आ रही है (Doctors do not like government jobs in Jharkhand). नियुक्ति के लिए बार-बार इंटरव्यू आयोजित किए जाने के बाद भी बड़ी संख्या में डॉक्टर्स के पोस्ट खाली रह जा रहे हैं. सरकारी नौकरी छोड़ने वाले डॉक्टरों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है. कई डॉक्टर तो ऐसे हैं, जो इंटरव्यू में सफल होने और ज्वाइनिंग लेटर लेने के बाद भी नौकरी ज्वाइन नहीं करते. ज्वाइनिंग के बाद से बगैर सूचना ड्यूटी से गायब हो जाने वाले डॉक्टरों की भी बड़ी तादाद है.
ये भी पढ़ें- Jharkhand Ayush Department: डॉक्टर्स का टोटा, कुछ महीने या साल में चिकित्सक विहीन हो जाएगा विभाग
मंगलवार को झारखंड पब्लिक सर्विस कमीशन ने मेडिकल अफसरों के 232 पदों पर नियुक्ति की खातिर लिए गए इंटरव्यू का रिजल्ट प्रकाशित किया. इसमें से 52 मेडिकल अफसरों के पद रिक्त (Vacancies for Medical Officers) रह गए. जेपीएससी ने रिक्त पदों पर नियुक्ति के लिए हाल में आवेदन मांगे थे. इसमें कुल 1460 डॉक्टरों के आवेदन पहुंचे, लेकिन इनमें से 827 आवेदन अलग-अलग वजहों से खारिज हो गए. बाकी बके 633 आवेदकों में से मात्र 60 प्रतिशत ही कागजात सत्यापन के लिए पहुंचे. इसके बाद इंटरव्यू में आवेदकों की संख्या और कम रह गई. आयोग ने अब कुल 180 सफल अभ्यर्थियों की लिस्ट जारी की है. जो 52 पद खाली रह गए हैं, वो रिजर्व कैटेगरी के हैं.
राज्य में डॉक्टरों के कुल 4995 पद स्वीकृत हैं, इनमें 2296 पद खाली हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में तो डॉक्टरों की भारी कमी है. स्वास्थ्य विभाग ने हाल में जिलों से सूची मंगाई तो पता चला कि कई डॉक्टर ऐसे हैं, जो सरकारी फाइलों में तो तैनात हैं, लेकिन वे लंबे समय से अस्पताल आए ही नहीं. इसके बाद स्वास्थ्य विभाग ने ऐसे डॉक्टरों की सूची मंगाई तो 70 से अधिक नाम आए. इसके अलावा कई डॉक्टर भ्रष्टाचार में भी लिप्त पाए गए. इनमें से 27 डॉक्टरों को सेवा से बर्खास्त करने की तैयारी है.
झारखंड के सभी मेडिकल कॉलेजों में शैक्षणिक संवर्ग के चिकित्सकों की भारी कमी है. हाल यह है कि सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज रिम्स में भी पढ़ाने वाले डॉक्टरों के 50 से ज्यादा पद रिक्त हैं. बार-बार इंटरव्यू आयोजित किए जाने के बाद योग्य डॉक्टर नहीं पहुंच रहे. जमशेदपुर, धनबाद, पलामू, हजारीबाग और दुमका स्थित मेडिकल कॉलेजों में भी शिक्षक डॉक्टरों के सैकड़ों पद खाली हैं. इस वजह से इन कॉलेजों की मान्यता पर भी खतरा है.
रिम्स में पिछले कुछ महीने में सात डॉक्टर नौकरी छोड़ चुके हैं. इनमें रिम्स डेंटल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ आशीष जैन, क्रिटिकल केयर के डॉ सैफ, ट्रॉमा सेंटर में तैनात रहे डॉ नवीन, मेडिकल ओंकोलॉजी विभाग के डॉ आलोक रंजन, न्यूरोलॉजी के डॉ अनीसा थॉमस, डॉ गोविंद माधव, माइक्रोबायोलॉजी के डॉ अंबर और डेंटल कॉलेज के डॉ निशांत शामिल हैं.
इंडियन मेडिकल काउंसिल के एक पदाधिकारी ने आईएएनएस से कहा कि झारखंड सरकार की सेवा शर्तें ऐसी हैं कि कई डॉक्टर सरकारी सेवा में आने से बेहतर प्राइवेट प्रैक्टिस या प्राइवेट हॉस्पिटल में नौकरी करना पसंद करते हैं. प्राइवेट प्रैक्टिस को लेकर सरकार ने एक पॉलिसी बनाई, जो बेहद अव्यावहारिक है. ड्यूटी आवर के बाद डॉक्टरों को प्राइवेट प्रैक्टिस की आजादी मिलनी चाहिए. इसके अलावा हॉस्पिटलों में सुविधाओं-संसाधनों की कमी, कार्य संस्कृति का अभाव जैसी कई वजहें हैं जिनके चलते पर्याप्त संख्या में डॉक्टर सरकारी नौकरी के लिए आगे नहीं आते.
इनपुट-आईएएनएस