रांचीः राज्य में मानसून के दिनों में वज्रपात की घटनाएं बढ़ जाती हैं और हर साल बड़ी संख्या में लोगों की जान इस ठनके से जाती है. हाल यह है कि पांच साल से ठनके से मरने वालों की संख्या बढ़ रही है. इसके बावजूद बड़ी संख्या में झारखंड के स्कूलों में तड़ित चालक नहीं लगे हैं और कई जगह लगवाए भी गए थे वे चोरी हो गए. इधर, बारिश के बीच स्कूलों में बच्चे जान जोखिम में डालकर पढ़ाई करने के लिए मजबूर हैं. अभी हाल ही में बोकारो जिले में मध्य विद्यालय बांधडीह में तड़ित चालक न लगे होने से स्कूल में बिजली गिरी और इसमें करीब 30 बच्चे झुलस गए.
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राज्य के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो का कहना है कि सरकारी विद्यालय भवनों पर तड़ित चालक नहीं होने के लिए सभी जिम्मेदार हैं, भगवान का शुक्र है कि बड़ी घटना बोकारो में नहीं हुई. वहां 10 दिनों के अंदर तड़ित चालक लगाने और राज्य के सभी सरकारी स्कूलों भवनों पर तड़ित चालक की अद्यतन जानकारी सचिव से मांगी गई है. वहीं राज्य के आपदा प्रबंधन मंत्री बन्ना गुप्ता ने कहा कि न सिर्फ विद्यालयों में बल्कि कैसे गांव और दूर-दराज के इलाकों में रहने वाले लोगों को भी ठनके से बचाया जाय, इसके लिए जल्द ही उच्चस्तरीय बैठक बुलाई जाएगी.
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पांच साल से हर साल बढ़ रही वज्रपात से मरने वालों की संख्याः झारखंड में वज्रपात से हर साल बड़ी संख्या में लोग काल के गाल में असमय समा जाते हैं. आपदा प्रबंधन विभाग से मिले आकंड़े के अनुसार वर्ष 2012 में 148,वर्ष 2013 में 159,2014 में 144,2015 में 210,वर्ष 2016 में 265, वर्ष 2017 में 256, वर्ष 2018 में 261, वर्ष 2019 में 283, वर्ष 2020 में 322 ,वर्ष 2021 में 343 और वर्ष 2022 में अबतक 57 लोगों की जान अलग अलग जिलों में वज्रपात की वजह से जा चुकी है.
क्यों झारखंड में ज्यादा होता है वज्रपातः भूगर्भ वैज्ञानिकों के अनुसार झारखंड के गर्भ में बड़ी मात्रा में खनिज भरे हैं जो आसमान से गिरने वाली बिजली को आकर्षित करते हैं. इसके साथ साथ पठारी क्षेत्र होने की वजह से भी पूरा झारखंड आसमानी बिजली गिरने के प्रभाव वाले क्षेत्र में आता है.
तड़ित चालक क्या हैः तड़ित चालक (Lightening rod or lightening conductor) धातु की एक छड़ होती है यानी सुचालक क्षण. इसे ऊंचे भवनों की छत पर आकाशीय बिजली से बचाव के लिए लगाया जाता है. तड़ित चालक का ऊपरी सिरा नुकीला होता है और इसे भवनों के सबसे ऊपरी हिस्से में जड़ दिया जाता है और तांबे के तार से जोड़कर नीचे लाकर धरती में गाड़ दिया जाता है और आखिरी सिरे पर कोयला और नमक मिलाकर रख दिया जाता है. जब बिजली इससे टकराती है तो तार के सहारे यह जमीन के अंदर चली जाती है.