रांचीः राज्य में जमीन विवाद के मामले काफी बढ़ गए हैं. इस विवाद में हत्याएं आम हो गई हैं. राजधानी रांची में ही जमीन विवाद को लेकर कई हत्याएं हो चुकी हैं. इतना ही नहीं जमीन से जुड़े अधिकारियों की भी हत्या हो रही है. हालांकि विवादित जमीन का मालिकाना हक तय करने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ अदालत का है. कोर्ट ने कहा कि जमीन विवाद में पुलिस और राजस्व अधिकारी एक सीमा तक हस्तक्षेप कर सकते हैं. वह विवादित जमीन के मालिक तय नहीं कर सकते हैं. जमीन विवाद से संबंधित कई पहलूओं पर ईटीवी भारत के संवाददाता ने झारखंड हाई कोर्ट के अधिवक्ता अमृतांश वत्स और राजीव कुमार से बातचीत की है.
यह भी पढ़ेंःरांची: बुजुर्ग के खाते से 40 लाख गायब, पड़ोसी पर निकासी का आरोप
कोर्ट ने दिया लैंडमार्क जजमेंट
जमीन विवाद से संबंधित संजीव खन्ना के केस में झारखंड हाई कोर्ट ने एक लैंडमार्क जजमेंट दिया है. संजीव खन्ना ने रांची के कांके अंचल के एक विवादित जमीन को लेकर सिविल कोर्ट में सिविल सूट किया था, जो लंबित है. इस मामले में राजस्व पदाधिकारी की ओर से निर्माण कार्य पर रोक लगाने का आदेश दिया गया था. राजस्व अधिकारी के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी, उस मामले में अदालत ने अपना फैसला सुनाते हुए यह कहा कि राजस्व अधिकारी को जमीन के टाइटल सूट डिसाइड करने और विवादित जमीन पर निर्माण कार्य पर रोक लगाने का अधिकार है.
जमीन विवाद का फैसला सुनाने का हक न्यायालय को
जमीन विवाद को हल करने का अधिकार या फैसला सुनाने का अधिकार सिर्फ न्यायालय का है. पुलिस अधिकारी या राजस्व पदाधिकारी के पास यह अधिकार नहीं है. विवादित जमीन पर निर्माण कार्य पर रोक लगाने का भी अधिकार राजस्व अधिकारी और पुलिस के पास नहीं है. अदालत की ओर से दिए गए निर्णय का अनुपालन कराना ही पुलिस का काम है. राजस्व अधिकारी का जमीन मामले में सिर्फ यह देखना है कि जमीन से राजस्व आ रहा है या नहीं. राजस्व वसूली और म्यूटेशन करने की ही जिम्मेदारी है. इसके अलावा राजस्व पदाधिकारी जमीन विवाद पर मालिकाना हक को लेकर किसी भी प्रकार का कोई फैसला नहीं दे सकता है.
यह भी पढ़ेंःनर्सिंग छात्राओं से छेड़खानीः भाजपा महिला मोर्चा का प्रतिनिधिमंडल आज जाएगा खूंटी, प्रदेश अध्यक्ष ने की आरोपी की गिरफ्तारी की मांग
सरकारी जमीन पर अतिक्रमण के मामले भी अधिक हैं. इस अतिक्रमण को हटाने के लिए सरकार की ओर से कार्रवाई की जाती है और अवैध निर्माण भी तोड़ दिए जाते है. नियमानुसार अतिक्रमित जमीन पर नोटिस जारी कर दोनों पक्षों को सुनवाई के लिए बुलाया जाता है ताकि दोनों अपना-अपना पक्ष रख सके.