रांची: झारखंड में वैक्सीन की किल्लत के बीच स्वास्थ्य विभाग ने जो आंकड़ें पेश किए हैं वो काफी चौकाने वाले हैं. विभाग के मुताबिक राज्य को मिले 58 लाख 17 हजार 250 डोज में से 1 लाख 51 हजार 363 डोज बर्बाद हो गए हैं. जो कुल डोज का 2.60 फीसदी है. विभाग ने बर्बादी के इस आंकड़े को संतोषजनक बताया है. लेकिन केरल और पश्चिमबंगाल में जिस तरह वैक्सीन का निगेटिव लॉस है उससे झारखंड में वैक्सीनेशन अभियान के तरीकों पर सवाल उठ रहे हैं.
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क्यों बर्बाद हो रही हैं वैक्सीन?
स्वास्थ्य अधिकारी बीएन पोद्दार बताते हैं कि शुरूआत में ऐसा हुआ की 5 से 6 लोगों पर ही नया वायल खोल दिया गया. जिसकी वजह से जो दवा बची वह बर्बाद हो गई, उन्होंने कहा अब जो नई पॉलिसी बनी है उसके अनुसार 10 लाभुकों के आने पर ही वैक्सीन की वायल खोली जाएगी, जिससे बर्बादी थोड़ी कम हुई है. वहीं रिम्स के जनसंपर्क अधिकारी डीके सिन्हा ने वैक्सीनेशन करने वाले कर्मियों से थोड़ा अलर्ट रहने की अपील की है. उन्होंने कहा हरेक वायल से कम से कम 10 लोगों को टीका तो लगाया ही जा सकता है.
केरल और पश्चिम बंगाल में निगेटिव लॉस
स्वास्थ्य अधिकारी बीएन पोद्दार के मुताबिक कोरोना का वैक्सीन बनाने वाली दोनों कंपनियां कोविशिल्ड और कोवैक्सीन के हर वायल में कुछ ज्यादा वैक्सीन होती है जिससे 10 लोगों की जगह 11 लोगों को टीका दिया जा सकता है, केरल-बंगाल जैसें राज्य में संभव है कि वैक्सीनेटर वैक्सीन देते समय सचेत रहते हो और हर वायल से 10 की जगह 11 को टीका दिया जा रहा हो. यही वजह है की इन राज्यों में वैक्सीन बर्बाद नहीं हो रही है.
आकंड़ों में झारखंड का वैक्सीनेशन अभियान
- झारखंड को मिले वैक्सीन के 58 लाख 17 हजार 250 डोज
- 49 लाख 05 हजार 232 लोगों को दी गई वैक्सीन
- 7 लाख 60 हजार 65 डोज स्टॉक में उपलब्ध
- 1 लाख 51 हजार 363 डोज बर्बाद
वैक्सीन की बर्बादी कम करने के उपाय
- वैक्सीन को शीशी से निकाल कर लाभुक को लगाने तक अलर्ट रहें वैक्सीनेटर
- हर डोज के दौरान सिरिंज से एयर निकालते समय यह रखें ध्यान की वैक्सीन की हर बूंद है कीमती
- वैक्सीन निर्माता कंपनी द्वारा हर वायल में दी जा रही 0.5ml दवा का भी हो सदुपयोग
- टीकाकरण बूथ पर 10 लाभुक हों तभी खोली जाए नई वायल
सिरिंज से भी पड़ता है फर्क
सदर अस्पताल की वैक्सीनेटर रीना राय की माने तो वैक्सीनेशन अभियान के दौरान सिरिंज से भी फर्क पड़ता है. उन्होंने बताया की किसी सिरिंज से हर वायल से 10 की जगह 11 लोगों को टीका लग जाता है तो किसी से 10 को ही लगता है. अगर ऐसा है तो स्वास्थ्य विभाग को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है. जाहिर है स्वास्थ्य विभाग भले ही 2.60 फीसदी की बर्बादी को समान्य बताए लेकिन इतना तो तय है की अगर एक लाख से ज्यादा वैक्सीन बर्बाद न हुई होती तो झारखंड सरकार को राजस्व का भी नुकसान नहीं होता और ज्यादा से ज्यादा लोगों का वैक्सीनेशन भी हो जाता.