रांची: इस कोरोना काल में अनुबंध पर कार्यरत शिक्षक काफी परेशान हैं. वे आर्थिक संकट से गुजर रहे, लेकिन अब तक सरकार की ओर से इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया है. विश्वविद्यालय प्रबंधन को भी बार-बार कहा गया लेकिन कोई सुनवाई होता नहीं दिख रही है .आरयू के जनजातीय भाषा विभाग के शिक्षकों ने इसे लेकर आक्रोश व्यक्त किया है.
विश्वविद्यालयों में पठन-पाठन व्यवस्थित हो, शिक्षकों की कमी को भरा जा सके. इसे देखते हुए वर्ष 2018 में ही अनुबंध पर राज्य के तमाम विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति की गई थी. इसमें रांची विश्वविद्यालय के भी कई विभागों में अनुबंध पर शिक्षकों की नियुक्ति हुई है, जिसमें जनजातीय भाषा विभाग में भी कई शिक्षक नियुक्त किए गए हैं, लेकिन इन शिक्षकों को पिछले 27 महीना से वेतन नहीं मिला है.
कोरोना काल के दौरान इनकी स्थिति और खराब हो गई है. एक-एक पैसे के लिए मोहताज होना पड़ा रहा है.आर्थिक परेशानी के कारण यह शिक्षक भुखमरी की कगार पर हैं. अपने इस परेशानी को लेकर शिक्षकों ने राज्य सरकार के साथ-साथ विश्वविद्यालय प्रबंधन को भी गुहार लगाई है , लेकिन इस ओर ध्यान देना मुनासिब नहीं समझा गया, न तो विभाग इस ओर ध्यान दे रहा है और न ही विश्वविद्यालय प्रबंधन ने ही कोई कदम उठाया है.
शिक्षकों ने अपने इस पुरानी मांग को लेकर एक बार फिर आंदोलन को तेज करने की बात कही है. शिक्षकों की मानें तो 14 सितंबर को शिक्षक रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय भाषा विभाग में भूख हड़ताल पर बैठेंगे. अगर इनकी मांगों की और गौर नहीं किया गया तो इस आंदोलन को तेज भी किया जाएगा.
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शनिवार को तमाम शिक्षक जनजातीय भाषा विभाग पहुंचे और आक्रोश व्यक्त किया. हालांकि कोविड-19 के गाइडलाइन का पालन करते हुए शिक्षक कम संख्या में ही विभाग पहुंचे थे और अपनी मांगों को विभागाध्यक्ष के समक्ष एक बार फिर रखा है. मामले को लेकर शिक्षकों ने कहा है कि इस और अगर ध्यान नहीं दिया जाता है तो आने वाले समय में जोरदार आंदोलन होगा.
एक तरफ जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर मातृभाषा विषयों पर बल दे रहे हैं, वहीं दूसरी ओर झारखंड में मातृभाषा से क्लास लेने वाले शिक्षक समस्याओं से जूझ रहे हैं. ऐसे में शिक्षकों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी इस मामले में संज्ञान लेने की अपील की है.