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वैचारिक मतभेद के कारण नेताजी सुभाष चंद बोस कांग्रेस से हुए होंगे अलग, वह गर्म खून के नेता थे: जेपीसीसी

झारखंड से नेताजी सुभाष चंद्र बोस का गहरा रिश्ता रहा है और आखिरी बार वह गोमो रेलवे स्टेशन से ट्रेन पकड़कर रवाना हुए थे. उन्होंने कांग्रेस के रामगढ़ अधिवेशन में हिस्सा लिया था, लेकिन इससे पहले वह कांग्रेस पार्टी से अलग हो चुके थे. प्रदेश कांग्रेस कमेटी का मानना है कि वैचारिक मतभेद के कारण ही सुभाष चंद बोस पार्टी से अलग हुए होंगे.

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कांग्रेस कार्यालय
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Published : Jan 22, 2021, 3:41 PM IST

रांची: आजादी के दशकों बाद भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अहमियत पूरे प्रदेश में सामाजिक और राजनीतिक तौर पर है. झारखंड से नेताजी सुभाष चंद्र बोस का गहरा रिश्ता रहा है और आखिरी बार वह गोमो रेलवे स्टेशन से ट्रेन पकड़कर रवाना हुए थे. उन्होंने कांग्रेस के रामगढ़ अधिवेशन में हिस्सा लिया था, लेकिन इससे पहले वह कांग्रेस पार्टी से अलग हो चुके थे और उन्होंने गांधी जी के समानांतर सहजानंद सरस्वती के साथ मिलकर अलग सभा की थी.

कांग्रेस प्रवक्ताओं की प्रतिक्रिया

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 1939 में कांग्रेस से अलग होने का निर्णय लिया था. क्या उन्हें रोका जा सकता था. इन सवालों को लेकर झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी का मानना है कि यह वैचारिक मतभेद का नतीजा रहा होगा, उस समय परिस्थिति उन्हें रोकने की नहीं रही होगी, लेकिन अहम बात यह है कि देश की आजादी के स्वतंत्रता संग्राम को लेकर कभी मतभेद नहीं हुआ. कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता आलोक कुमार दुबे ने कहा कि सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेजों की गुलामी करने से अच्छा गांधी जी के नेतृत्व में जेल जाना और आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेना सही समझा था, उस समय भी वैचारिक रूप से मतभेद हुआ करता था, लेकिन वह मतभेद देश की आजादी के स्वतंत्रता संग्राम में कभी भी रोड़ा नहीं बना.

सुभाष चंद्र बोस से युवा वर्ग प्रेरित

आलोक कुमार दुबे ने कहा कि सुभाष चंद्र बोस जल्द आजादी चाहते थे और वह गर्म खून के थे, लेकिन गांधी जी अहिंसा के रास्ते से आजादी चाहते थे, दोनों ही आजादी के दीवाने थे. उन्होंने कहा कि सुभाष चंद्र बोस ने पार्टी से बगावत नहीं की थी, बल्कि वैचारिक रूप से सभी लोगों का एक दूसरे से विचार नही मिल पाता, इस वजह से वह अलग हुए होंगे, लेकिन सभी ने आजादी के लिए किसी प्रकार का समझौता नहीं किया, उन्होंने आजाद हिंद फौज की स्थापना की थी, युवा वर्ग उनके आंदोलन से प्रेरित होकर देश के लिए आज भी कुर्बानी देने के लिए हमेशा तैयार रहता है.

सुभाष चंद्र बोस के कार्यों की होती है कांग्रेस में चर्चा
वहीं कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता लाल किशोरनाथ शाहदेव ने कहा कि सुभाष चंद्र बोस के साथ कांग्रेस पार्टी हमेशा आदर भावना रखती है और लगातार उनकी विचारधारा को लेकर चलने का प्रयास करती है, उनके किए गए कार्यों को लेकर हमेशा चर्चा की जाती है, उनकी जयंती और पुण्यतिथि के मौके पर विशेष रूप से उनके विचारों का आदान-प्रदान होता है. उन्होंने कहा कि सुभाष चंद्र बोस के कांग्रेस पार्टी छोड़ने को लेकर क्या परिस्थितियां थी, वह उस समय की परिस्थिति पर निर्भर करता है, लेकिन कांग्रेस पार्टी के ओर से लगातार उनको सम्मान दिया जाता रहा है और आगे भी दिया जाता रहेगा.


इसे भी पढे़ं: तेजस्वी यादव ने फोन पर कहा- 'मैं बोल रहा हूं', पटना जिलाधिकारी बोले- सर-सर

अहिंसा वादी नीतियों को सुभाष चंद्र बोस ने दी चुनौती
हालांकि माना जाता है कि कांग्रेस अध्यक्ष का 1939 के चुनाव में सुभाष चंद्र बोस की जीत कांग्रेस पार्टी से अलग होने की सबसे बड़ी वजह बनी. उस चुनाव के लिए सुभाष चंद्र बोस ने अपना नाम घोषित कर दिया था, जबकि पट्टाभि सीतरमैया को महात्मा गांधी ने चुनाव लड़ाया. उस समय महात्मा गांधी की अहिंसा वादी नीतियों को सुभाष चंद्र बोस ने खुली चुनौती दी थी. जनवरी 1939 में सीतरमैया की हार हुई. इसको लेकर उत्पन्न हुए मतभेद की वजह से ही कहीं न कहीं सुभाष चंद्र बोस ने अध्यक्ष पद से अपना त्यागपत्र दे दिया था और कांग्रेस से अलग अपना रास्ता चुन लिया था.

रांची: आजादी के दशकों बाद भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अहमियत पूरे प्रदेश में सामाजिक और राजनीतिक तौर पर है. झारखंड से नेताजी सुभाष चंद्र बोस का गहरा रिश्ता रहा है और आखिरी बार वह गोमो रेलवे स्टेशन से ट्रेन पकड़कर रवाना हुए थे. उन्होंने कांग्रेस के रामगढ़ अधिवेशन में हिस्सा लिया था, लेकिन इससे पहले वह कांग्रेस पार्टी से अलग हो चुके थे और उन्होंने गांधी जी के समानांतर सहजानंद सरस्वती के साथ मिलकर अलग सभा की थी.

कांग्रेस प्रवक्ताओं की प्रतिक्रिया

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 1939 में कांग्रेस से अलग होने का निर्णय लिया था. क्या उन्हें रोका जा सकता था. इन सवालों को लेकर झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी का मानना है कि यह वैचारिक मतभेद का नतीजा रहा होगा, उस समय परिस्थिति उन्हें रोकने की नहीं रही होगी, लेकिन अहम बात यह है कि देश की आजादी के स्वतंत्रता संग्राम को लेकर कभी मतभेद नहीं हुआ. कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता आलोक कुमार दुबे ने कहा कि सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेजों की गुलामी करने से अच्छा गांधी जी के नेतृत्व में जेल जाना और आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेना सही समझा था, उस समय भी वैचारिक रूप से मतभेद हुआ करता था, लेकिन वह मतभेद देश की आजादी के स्वतंत्रता संग्राम में कभी भी रोड़ा नहीं बना.

सुभाष चंद्र बोस से युवा वर्ग प्रेरित

आलोक कुमार दुबे ने कहा कि सुभाष चंद्र बोस जल्द आजादी चाहते थे और वह गर्म खून के थे, लेकिन गांधी जी अहिंसा के रास्ते से आजादी चाहते थे, दोनों ही आजादी के दीवाने थे. उन्होंने कहा कि सुभाष चंद्र बोस ने पार्टी से बगावत नहीं की थी, बल्कि वैचारिक रूप से सभी लोगों का एक दूसरे से विचार नही मिल पाता, इस वजह से वह अलग हुए होंगे, लेकिन सभी ने आजादी के लिए किसी प्रकार का समझौता नहीं किया, उन्होंने आजाद हिंद फौज की स्थापना की थी, युवा वर्ग उनके आंदोलन से प्रेरित होकर देश के लिए आज भी कुर्बानी देने के लिए हमेशा तैयार रहता है.

सुभाष चंद्र बोस के कार्यों की होती है कांग्रेस में चर्चा
वहीं कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता लाल किशोरनाथ शाहदेव ने कहा कि सुभाष चंद्र बोस के साथ कांग्रेस पार्टी हमेशा आदर भावना रखती है और लगातार उनकी विचारधारा को लेकर चलने का प्रयास करती है, उनके किए गए कार्यों को लेकर हमेशा चर्चा की जाती है, उनकी जयंती और पुण्यतिथि के मौके पर विशेष रूप से उनके विचारों का आदान-प्रदान होता है. उन्होंने कहा कि सुभाष चंद्र बोस के कांग्रेस पार्टी छोड़ने को लेकर क्या परिस्थितियां थी, वह उस समय की परिस्थिति पर निर्भर करता है, लेकिन कांग्रेस पार्टी के ओर से लगातार उनको सम्मान दिया जाता रहा है और आगे भी दिया जाता रहेगा.


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अहिंसा वादी नीतियों को सुभाष चंद्र बोस ने दी चुनौती
हालांकि माना जाता है कि कांग्रेस अध्यक्ष का 1939 के चुनाव में सुभाष चंद्र बोस की जीत कांग्रेस पार्टी से अलग होने की सबसे बड़ी वजह बनी. उस चुनाव के लिए सुभाष चंद्र बोस ने अपना नाम घोषित कर दिया था, जबकि पट्टाभि सीतरमैया को महात्मा गांधी ने चुनाव लड़ाया. उस समय महात्मा गांधी की अहिंसा वादी नीतियों को सुभाष चंद्र बोस ने खुली चुनौती दी थी. जनवरी 1939 में सीतरमैया की हार हुई. इसको लेकर उत्पन्न हुए मतभेद की वजह से ही कहीं न कहीं सुभाष चंद्र बोस ने अध्यक्ष पद से अपना त्यागपत्र दे दिया था और कांग्रेस से अलग अपना रास्ता चुन लिया था.

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