रांची: मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के कांके स्थित आवास पर रविवार को भी फरियादियों का जमावड़ा लगा रहा. अलग-अलग इलाकों से लोगों ने अपनी समस्याओं को उनके सामने रखा. जिस पर मुख्यमंत्री ने उसके निदान का आश्वासन दिया है.
वहीं, बीजेपी ने मुख्यमंत्री पर तंज कसते हुए कहा कि हेमंत सरकार ट्विटर पर चल रही है और सुर्खियां बटोरने में लगी हुई है. इस वजह से महज 0.3 प्रतिशत लोगों की समस्याएं सुनी जा रही हैं, क्योंकि 99.7 प्रतिशत लोग गांव में बसते हैं और उन्हें ट्विटर से कोई लेना-देना नहीं होता है.
मुख्यमंत्री से समस्याओं को लेकर फरियाद करने वालों में झारखंड शिक्षा मित्र केंद्रीय समिति के प्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री को राज्य में काम कर रहे सभी 65000 पारा शिक्षकों के हितों को ध्यान में रखकर नियमावली बनाने का आग्रह किया है. जबकि गढ़वा जिले से आए पारा शिक्षकों ने बायोमेट्रिक अटेंडेंस नहीं होने की वजह से रोके गए मानदेय को रिलीज करने की गुहार लगाई है.
ये भी देखें- बाबूलाल मरांडी हुए एक्सपोज, बॉरो प्लेयर के सहारे सदन में है बीजेपी: सत्ता पक्ष
वहीं, मुख्यमंत्री को ट्रैक्टर ऑनर्स एसोसिएशन ने रांची नगर निगम को कचरा उठाव के एवज में पिछले 6 महीने से भुगतान नहीं किए जाने की जानकारी से अवगत कराया है. साथ ही बरहेट से आए युवाओं ने सोहराई के अवसर पर आयोजित फुटबॉल प्रतियोगिता के लिए सहायता राशि देने का आग्रह किया है. वहीं, गढ़वा जिला परिषद के कार्य किए गए अनुबंधित कर्मियों ने समायोजित करने की मांग रखी गई और रांची के पिस्का मोड़ में रहने वाली दिव्यांग युवती ने राशन दुकान की डीलरशिप दिलाने का आग्रह किया है. इस मौके पर जमशेदपुर से आई महिला समूह ने शिबू सोरेन और मुख्यमंत्री की तस्वीर भी भेंट की.
वहीं, लगातार मुख्यमंत्री आवास पर लोगों के लग रहे जमावड़े को लेकर प्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कहा है कि पिछले 2 महीने से झारखंड की सत्ता ट्विटर से ही चल रही है. जमीनी हकीकत से सरकार को कोई लेना देना नहीं है. उन्होंने कहा कि जेएमएम आदिवासी मूलवासी के विकास के मुद्दे पर सत्ता में आई है, लेकिन सत्ता में आने के बाद हेमंत सरकार वर्चुअल दुनिया की सरकार बन गई है.
ये भी देखें- पुलिसवाले बने नेता, आजमाएंगे चुनाव में किस्मत, नामांकन शुरू
ऐसे में सरकार सिर्फ 0.3 प्रतिशत लोगों की समस्या पर निर्देश देकर सुर्खियां बटोरने में लगी हुई है. उन्होंने कहा कि सुदूर जंगलों और पहाड़ों में रहने वाले पहाड़िया, असुर, बिरहोर जैसे आदिम जनजातियों की समस्या का निराकरण ट्विटर से तो नहीं होने वाला और न ही सुदूर गांव में बसने वाले 80 प्रतिशत आदिवासी मूलवासी की बात ट्विटर के जरिए सरकार तक पहुंचने वाली है.