रांचीः राज्य में मैट्रिक पास कर इंटर में एडमिशन लेने की चाहत रखनेवाले हजारों छात्र-छात्राएं इन दिनों बेहद परेशान हैं. इनकी परेशानी की वजह शिक्षा विभाग और यूजीसी की वो चिठ्ठी है जिसमें नई शिक्षा नीति का हवाला देते हुए डिग्री कॉलेजों में इंटर की पढ़ाई समाप्त करने की बात कही गई है. इस चिठ्ठी के आधार पर रांची विश्वविद्यालय सहित राज्य के सभी विश्वविद्यालयों ने अपने अंगीभूत कॉलेजों से इंटर की पढ़ाई समाप्त करने का निर्णय लेते हुए 2023-25 सत्र के लिए इंटर में नामांकन पर रोक लगा दी है. विश्वविद्यालय के इस निर्णय से कॉलेजों में इंटर की 96 हजार सीटों पर नामांकन फंस गया है.
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राज्यभर में हैं 62 अंगीभूत कॉलेजः यूजीसी और राज्य सरकार के इस फैसले से 62 अंगीभूत कॉलेजों पर इसका असर पड़ा है. इन कॉलेजों में इंटर में नामांकन लेने के लिए विद्यार्थी चक्कर लगाते फिर रहे हैं. दरअसल, नैक से मान्यता के लिए अंगीभूत डिग्री कॉलेजों से इंटरमीडिएट को अलग रखना है. महिला कॉलेज रांची, मारवाड़ी कॉलेज, निर्मला कॉलेज, डोरंडा कॉलेज सहित राज्य के कई कॉलेजों में इंटर का नामांकन नहीं होने से यहां पढ़ानेवाले शिक्षकों की उपयोगिता पर भी सवाल खड़ा होने लगे हैं. ऐसे में मामला राजभवन तक पहुंच गया है और इस पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है.
सबकी नजरें राजभवन पर टिकीः जानकारी के मुताबिक राजभवन से कुछ निर्देश मिलने के बाद ही विश्वविद्यालय प्रशासन के द्वारा डिग्री कॉलेजों के प्रचार्यों को निर्देश दिए जाएंगे. इधर, विद्यार्थियों को हो रही परेशानी को देखते हुए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने पिछले दिनों रांची विश्वविद्यालय के कुलपति अजीत कुमार सिन्हा से मुलाकात कर जल्द निर्णय लेने का आग्रह किया था.
डिग्री कॉलेजों में इंटर के शिक्षकों के भविष्य पर संशयः रांची महानगर एबीवीपी मंत्री रोहित शेखर कहते हैं कि सवाल डिग्री कॉलेज से इंटर की पढ़ाई बंद करना नहीं है, बल्कि यह सोचना होगा कि उसमें कार्यरत शिक्षक, शिक्षकेत्तर कर्मचारी जो करीब 21 हजार हैं उनका क्या होगा. इस निर्णय से लगभग एक लाख छात्र प्रभावित होंगे जो गरीब परिवार से हैं.आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से बड़े निजी स्कूल में नामांकन कराना इनके लिए संभव नहीं है.
झारखंड में प्लस टू स्कूलों की संख्या कमः वहीं छात्र नेता एस अली ने विद्यार्थियों को हो रही परेशानी पर नाराजगी जताते हुए कहा है कि झारखंड जैसे राज्य में प्लस टू स्कूलों की संख्या काफी कम है और जो भी हैं उनमें शिक्षकों का घोर अभाव है. सरकार ने स्कूल ऑफ एक्सलेंस के जरिए क्वालिटी एजुकेशन देने का निर्णय लिया है, लेकिन वह भी साधन संपन्न नहीं होने की वजह से छात्रों के लिए उपयुक्त नहीं है. ऐसे में झारखंड के गरीब छात्र जाएं तो जाएं कहां. इसपर सरकार को ही सोचना होगा.