रांचीः झारखंड सरकार भले ही मध्यान्न भोजन के दौरान सप्ताह में पांच दिन बच्चों को अंडा मुहैया कराने की बात कह रही हो, मगर हकीकत यह है कि आज भी सरकारी स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों की थाली से अंडा गायब है. सप्ताह में पांच दिन के बजाय किसी तरह दो दिन अंडा मुहैया कराकर सरकार कुपोषण के विरुद्ध लड़ाई लड़ने का दावा कर रही है.
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आश्चर्य की बात यह है कि सरकारी प्रावधानों के बावजूद झारखंड में बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्र में 2020 से अंडा नहीं मिल रहा था. काफी जद्दोजहद के बाद इसकी शुरुआत भी हुई तो वह भी दम तोड़ रही है. राज्य सरकार के द्वारा सदन में मुख्यमंत्री द्वारा सप्ताह में पांच दिन बच्चों को अंडा मुहैया कराने की घोषणा के बाद पिछले वर्ष सितंबर महीने में कैबिनेट की बैठक में इसके लिए 260 करोड़ मुहैया भी कराने का काम किया गया. इसके बावजूद विभाग द्वारा पैसे का रोना रोये जाने की वजह से मध्यान्न भोजन में बच्चों को अंडा के स्थान पर फल देकर काम चलाया जा रहा है.
राजधानी रांची के हटिया स्थित उत्क्रमित उच्च विद्यालय में जब ईटीवी भारत की टीम ने जमीनी हकीकत जानने की कोशिश की तो वास्तविकता सामने आई. स्कूल के प्रभारी प्राचार्य विनय कुमार कहते हैं कि अंडा का दाम बाजार में बढ़ जाने की तुलना में सरकार द्वारा उतनी राशि नहीं दी जाती है, जिस वजह से मजबूरन पांच दिन के बजाय दो दिन अंडा बच्चों को दिया जाता है, शेष दिन फल देकर मैनेज किया जाता है. प्रति दिन करीब एक हजार बच्चों को मध्यान्न भोजन खिलाने की जिम्मेवारी संभाल रही सविता देवी कहती हैं कि सोमवार और शुक्रवार को अंडा मुहैया कराया जाता है शेष दिन फल देकर बच्चों को संतुष्ट करते हैं.
डिबडीह मध्य विद्यालय कr प्रभारी प्राचार्य मानती हैx कि मध्यान्ह भोजन में अंडा उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाता है. सरकार द्वारा पांच दिन अंडा मुहैया कराने का कोई आदेश अब तक नहीं मिला है. पिछली सरकार से चल रहे तीन दिनों के बजाय अभी दो ही दिन अंडा मुहैया कराया जा रहा है. इधर इस मुद्दे पर विभागीय अधिकारी चुप्पी साधे हुए हैं.
देश में सर्वाधिक कुपोषित बच्चे हैं झारखंड मेंः झारखंड देश के सबसे कुपोषित राज्यों में से एक है, जहां कुपोषण पर काबू पाना एक बड़ी चुनौती है. राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण के ताजा आंकड़ों के अनुसार देश में सर्वाधिक कुपोषित बच्चे झारखंड में हैं, जो 42.2% है. एनीमिया से झारखंड के 69% बच्चे और 65 % महिलाएं प्रभावित हैं.
यूनिसेफ रिपोर्ट के अनुसार देश में 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में लगभग आधे कुपोषण के शिकार हैं. वहीं झारखंड में 43% बच्चे कम वजन के हैं जबकि 29% गंभीर रूप से कुपोषित हैं. वह अपनी आयु की तुलना में काफी दुबले और नाटे हैं. कुपोषण के कारण इनकी शारिरिक, मानसिक एवं प्रतिरक्षा प्रणाली के विकास के लिए जो आवश्यक पोषक तत्व उन्हें मिलनी चाहिए वह उन्हें नहीं मिल पाया है.