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बच्चों और गर्भवती महिलाओं को नहीं मिल रहा पोषक आहार, राज्य खाद्य आयोग ने मांगा साक्ष्य - राज्य खाद्य आयोग

झारखंड में कोरोना काल में बच्चों और गर्भवती महिलाओं को पोषक आहार नहीं मिल पा रहा है. राज्य खाद्य आयोग इसे लेकर गंभीर है. इसे लेकर आयोग ने कई अनुशंसा की है.

Malnutrition in Jharkhand
राज्य खाद्य आयोग की बैठक
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Published : Jul 16, 2021, 9:36 PM IST

Updated : Jul 17, 2021, 6:44 AM IST

रांची: कोविड संक्रमण के दौर में इस बात को लेकर चर्चा होती रही है कि क्या बच्चों और गर्भवती महिलाओं को मुश्किल के इस दौर में पोषक आहार मिल पा रहा है या नहीं. इस मसले पर भोजन का अधिकार अभियान , झारखण्ड की ओर से पिछले सप्ताह सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी किया गया था. इसमें कहा गया था कि पिछले 6 माह से 6 साल के बच्चों और गर्भवती और धात्री महिलाओं के 55% लाभुकों को पूरक पोषाहार की आपूर्ति नहीं हो रही है. इस संबंध में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने स्वतः संज्ञान लेकर केंद्र और झारखंड सरकार को नोटिस भेजकर रिपोर्ट मांगी है और इसे भोजन के अधिकार का हनन बताते हुए गंभीर मामला बताया था.

ये भी पढ़ें- झारखंड के 43% बच्चे कुपोषित, यूनिसेफ की परिचर्चा में जताई गई चिंता

इसी मसले को लेकर भोजन का अधिकार अभियान, के एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्य खाद्य आयोग से मुलाकात की और राज्य में समेकित बाल विकास योजना से संबंधित सर्वेक्षण रिपोर्ट और इस संबंध में आयोजित जनसुनवाई में ज्यूरी सदस्यों की अनुशंसाएं सौंपी. राज्य खाद्य आयोग ने इस संबंध में भोजन का अधिकार अभियान, झारखण्ड के प्रतिनिधिमंडल को साक्ष्य और सर्वेक्षित वंचित परिवारों की सूची उपलब्ध करवाने का आग्रह किया.

समेकित बाल विकास योजना के सर्वेक्षण और जन सुनवाई के बाद ज्यूरी की अनुशंसाएं

  1. उन सभी परिवारों को जिनको पूरक पोषाहार और घर ले जाने वाला राशन नहीं मिला है उन्हें अविलम्ब उन महीनों का राष्ट्रिय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत आहार भत्ता का भुगतान किया जाय.
  2. कोविड-19 के दौर में आंगनवाड़ी केन्द्रों में दी जाने वाली सेवाओं को सुनिश्चित करने के विकल्पों पर गंभीरतापूर्वक विचार हो और उसे तत्काल क्रियान्वित किया जाय.
  3. इच्छुक परिवारों को निबंधित करने औए उनके लिए सुविधाजनक आंगनबाडी केंद्र चिन्हित या स्थापित करने की समय सीमा निर्धारित होनी चाहिए ताकि इन सेवाओं का गुणवत्तापूर्ण सार्वभौमिकरण सुनिश्चित हो सके.
  4. घर ले जाने वाले राशन का कार्य स्थानीय स्तर पर सक्रिय स्वयं सहायता समूह की दीदियों को दिया जाय और उन्हें इस कार्य के लिए अग्रिम राशि की व्यवस्था की जाय.
  5. पूरक पोषाहार में वर्तमान में लागू अदायगी विधि को समाप्त किया जाय और आंगनबाड़ी सेविका को अग्रिम राशि दी जाय. राज्य सरकार इसके लिए रिवॉल्विंग फंड की व्यवस्था करे.
  6. कुपोषण की स्थिति की नियमित निगरानी के लिए घर-घर वजन प्रबोधन की व्यवस्था बहाल की जाय और ऐसे बच्चों को अतिरिक्त आहार सुनिश्चित किया जाय.
  7. इन केन्द्रों के माध्यम से सप्ताह में दो दिन 3 से छः वर्ष के बच्चों को अंडा देने के निर्णय का अनुपालन सुनिश्चित किया जाय.

आज की बैठक में राज्य खाद्य आयोग के अध्यक्ष उपेन्द्र नारायण उरांव, सदस्य, हलधर महतो और रंजना झा और भोजन का अधिकार अभियान, झारखंड की और से बलराम, अशर्फिनंद प्रसाद, प्रत्युष शिवदासन और नबनिता शामिल हुए.

रांची: कोविड संक्रमण के दौर में इस बात को लेकर चर्चा होती रही है कि क्या बच्चों और गर्भवती महिलाओं को मुश्किल के इस दौर में पोषक आहार मिल पा रहा है या नहीं. इस मसले पर भोजन का अधिकार अभियान , झारखण्ड की ओर से पिछले सप्ताह सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी किया गया था. इसमें कहा गया था कि पिछले 6 माह से 6 साल के बच्चों और गर्भवती और धात्री महिलाओं के 55% लाभुकों को पूरक पोषाहार की आपूर्ति नहीं हो रही है. इस संबंध में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने स्वतः संज्ञान लेकर केंद्र और झारखंड सरकार को नोटिस भेजकर रिपोर्ट मांगी है और इसे भोजन के अधिकार का हनन बताते हुए गंभीर मामला बताया था.

ये भी पढ़ें- झारखंड के 43% बच्चे कुपोषित, यूनिसेफ की परिचर्चा में जताई गई चिंता

इसी मसले को लेकर भोजन का अधिकार अभियान, के एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्य खाद्य आयोग से मुलाकात की और राज्य में समेकित बाल विकास योजना से संबंधित सर्वेक्षण रिपोर्ट और इस संबंध में आयोजित जनसुनवाई में ज्यूरी सदस्यों की अनुशंसाएं सौंपी. राज्य खाद्य आयोग ने इस संबंध में भोजन का अधिकार अभियान, झारखण्ड के प्रतिनिधिमंडल को साक्ष्य और सर्वेक्षित वंचित परिवारों की सूची उपलब्ध करवाने का आग्रह किया.

समेकित बाल विकास योजना के सर्वेक्षण और जन सुनवाई के बाद ज्यूरी की अनुशंसाएं

  1. उन सभी परिवारों को जिनको पूरक पोषाहार और घर ले जाने वाला राशन नहीं मिला है उन्हें अविलम्ब उन महीनों का राष्ट्रिय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत आहार भत्ता का भुगतान किया जाय.
  2. कोविड-19 के दौर में आंगनवाड़ी केन्द्रों में दी जाने वाली सेवाओं को सुनिश्चित करने के विकल्पों पर गंभीरतापूर्वक विचार हो और उसे तत्काल क्रियान्वित किया जाय.
  3. इच्छुक परिवारों को निबंधित करने औए उनके लिए सुविधाजनक आंगनबाडी केंद्र चिन्हित या स्थापित करने की समय सीमा निर्धारित होनी चाहिए ताकि इन सेवाओं का गुणवत्तापूर्ण सार्वभौमिकरण सुनिश्चित हो सके.
  4. घर ले जाने वाले राशन का कार्य स्थानीय स्तर पर सक्रिय स्वयं सहायता समूह की दीदियों को दिया जाय और उन्हें इस कार्य के लिए अग्रिम राशि की व्यवस्था की जाय.
  5. पूरक पोषाहार में वर्तमान में लागू अदायगी विधि को समाप्त किया जाय और आंगनबाड़ी सेविका को अग्रिम राशि दी जाय. राज्य सरकार इसके लिए रिवॉल्विंग फंड की व्यवस्था करे.
  6. कुपोषण की स्थिति की नियमित निगरानी के लिए घर-घर वजन प्रबोधन की व्यवस्था बहाल की जाय और ऐसे बच्चों को अतिरिक्त आहार सुनिश्चित किया जाय.
  7. इन केन्द्रों के माध्यम से सप्ताह में दो दिन 3 से छः वर्ष के बच्चों को अंडा देने के निर्णय का अनुपालन सुनिश्चित किया जाय.

आज की बैठक में राज्य खाद्य आयोग के अध्यक्ष उपेन्द्र नारायण उरांव, सदस्य, हलधर महतो और रंजना झा और भोजन का अधिकार अभियान, झारखंड की और से बलराम, अशर्फिनंद प्रसाद, प्रत्युष शिवदासन और नबनिता शामिल हुए.

Last Updated : Jul 17, 2021, 6:44 AM IST
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