रांची: राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में कुछ अलग ही नजारा देखने को मिल रहा है. दरअसल रिम्स में पिछले दो महीने से इलाज के इंतजार में 7 वर्ष का बच्चा ठंड में ठिठुरने को मजबूर है. रिम्स की एमआरआई मशीन पिछले दो महीनों से खराब (Defective MRI machine in RIMS) है. एमआरआई के बाद ही बच्चे का ऑपरेशन (Child not Treated due to Defective MRI machine) होगा ऐसा डॉक्टर का कहना है.
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धनबाद जिला से आए राज साव के बारे में डॉक्टरों ने बताया है कि उसके माथे में पानी है. जिस वजह से उसके हाथ पैर भी काम नहीं कर रहे हैं. पिछले 2 महीनों से अस्पताल के न्यूरो विभाग के फर्श पर बैठे राज साव के नाना-नानी बताते हैं कि डॉक्टर ने कहा कि यदि बच्चे का एमआरआई हो जाता है तो बच्चे का ऑपरेशन जल्द से जल्द कर दिया जाएगा. लेकिन रिम्स की एमआरआई मशीन पिछले कई महीनों से खराब पड़ी है. इसलिए वह लोग एमआरआई नहीं करा पा रहे हैं.
ईटीवी भारत के संवाददाता ने जब सात वर्षीय छोटे बच्चे राज साव से बात की, तो उसने बताया कि उसके भैया, नाना और नानी कई बार एमआरआई मशीन की जानकारी लेने गए. लेकिन जब भी वह जानकारी लेकर आते हैं. तो यही बताते हैं कि मशीन अभी तक ठीक नहीं हो पाई है.
बच्चे के नाना ईश्वरधारी साव बताते हैं कि बाहर से एमआरआई कराने की उनके परिवार की स्थिति नहीं है. क्योंकि घर में सिर्फ बच्चे का पिता ही कमाने वाला है. जो गुजरात में छोटी-मोटी नौकरी कर थोड़े बहुत पैसे भेजता है. ऐसे में यदि हजारों रुपए एमआरआई में खर्च कर देंगे, तो फिर घर का खर्चा नहीं चल पाएगा. इसीलिए उन्हें एमआरआई मशीन ठीक होने का इंतजार है. जैसे ही मशीन ठीक होगी वैसे ही राज साव का एमआईआर कराकर डॉक्टर से ऑपरेशन के लिए बात करेंगे.
रिम्स अस्पताल में बेड नहीं मिलने के कारण बच्चा न्यूरो विभाग के बाहर कॉरिडोर में जमीन पर रात बिताने को मजबूर है. बच्चे के परिजनों ने कहा कि ठंड के कारण कई बार उसकी तबीयत खराब हो जाती है. लेकिन इसके बावजूद उन्हें उम्मीद है कि जल्दी एमआरआई मशीन ठीक होगी और रिम्स में उनके बच्चे का इलाज हो होगा.
गौरतलब है कि झारखंड के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स में सिर्फ गरीब और लाचार मरीज पहुंचते हैं. जो निजी अस्पतालों में मोटी रकम खर्च कर इलाज नहीं करवा सकते. लेकिन गरीब और लाचार मरीजों की उम्मीद रिम्स में टूटती जा रही है. जरूरत है कि रिम्स प्रबंधन अस्पताल की व्यवस्था पर ध्यान दें. ताकि राज साव जैसे मरीजों को परेशानियों का सामना ना करना पड़े.