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Bird Flu Effect: बोकारो में बर्ड फ्लू की पुष्टि के साइड इफेक्ट, राज्य में चिकेन के कारोबार पर असर, लोग खरीदने से कर रहे परहेज - Bird Flu in boakro

बोकारो में बर्ड फ्लू की पुष्टि होने से चिकेन व्यवसाय पर असर पड़ा है. राज्य के सभी जिलों में चिकेन की बिक्री कम हो गई है. जिससे चिकेन व्यवसायियों को नुकसान हो रहा है.

Chicken sales decreased in Jharkhand
Chicken sales decreased in Jharkhand
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Published : Feb 23, 2023, 9:05 PM IST

Updated : Feb 24, 2023, 2:44 PM IST

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रांचीः बोकारो जिले में बर्ड फ्लू के केस की पुष्टि होने के बाद राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में इसका असर देखने को मिल रहा है. खास करके चिकेन के व्यापार पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ा है. राजधानी रांची सहित राज्य के सभी क्षेत्रों में लोग चिकेन खरीदने से परहेज कर रहे हैं.

बोकारो में बर्ड फ्लू के केस मिलने के बाद इसके व्यापार पर काफी असर पड़ा है. झारखंड स्मॉल स्केल इंडस्ट्री एसोसिएशन के उपाध्यक्ष राजीव रंजन बताते हैं कि पूरे झारखंड की बात करें तो 200 से 500 करोड़ का चिकेन का व्यापार हर वर्ष होता है. सबसे ज्यादा हजारीबाग, रांची, जमशेदपुर, धनबाद और बोकारो में लोग इस व्यापार से जुड़े हैं. झारखंड चिकेन के व्यापार में एक हब बन चुका है. इसीलिए बाहर की भी कई कंपनियां झारखंड में चिकेन की सप्लाई करती है.

झारखंड में सुगमा फूड लिमिटेड, वेंकी इंडिया लिमिटेड सहित हरियाणा और दक्षिण क्षेत्र की कई कंपनियां चूजों और मुर्गियों की सप्लाई करती है. ऐसे में बर्ड फ्लू का आना निश्चित रूप से पूरे व्यापार पर असर करता है. राजीव रंजन ने बताया कि राज्य में करीब 1500 बड़े पोल्ट्री फार्म हैं. वहीं 40 से 50 ऐसे हेचरी सेंटर हैं जहां पर अंडे से चूजे को निकाला जाता है और फिर उसे बाजार में सप्लाई की जाती है.

झारखंड में पोल्ट्री फार्म से लाखों लोगों का रोजगार सृजन होता है, लेकिन वर्तमान में जिस तरह से चिकेन की बिक्री में लगातार कमी हो रही है, ऐसे में लोगों का व्यापार नुकसान में जा रहा है. चिकेन का व्यापार करने वाले लोगों ने बताया कि यह बीमारी अब हर साल आ रही है और लोगों के मन में कई बार भ्रम पैदा कर देती है, जिस वजह से लोग चिकेन खरीदने से परहेज करते हैं. हालांकि बोकारो में कड़कनाथ मुर्गी में बर्ड फ्लू पाया गया है. जिस वजह से फार्म वाले मुर्गे राजधानी रांची में कई जगह बिक रहे हैं, लेकिन देसी और कड़कनाथ ब्रीड के मुर्गे को लोग खरीदना बंद कर रहे हैं.

डॉ संजय कुमार बताते हैं कि यह बीमारी एक फ्लू की तरह है जो पक्षियों से फैलती है, ऐसे में लोगों को पक्षियों से परहेज करने की आवश्यकता है ताकि लोगों को किसी तरह की परेशानी ना हो. वहीं उन्होंने बताया कि इस बीमारी से बचने के लिए लोगों को मास्क का प्रयोग करना चाहिए. यदि किसी को चिकेन या अन्य पक्षी से बर्ड फ्लू की बीमारी होती है तो मास्क के माध्यम से कई बार यह दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलता है. वहीं उन्होंने बताया कि बर्ड फ्लू होने के बाद तुरंत ही लोगों को डॉक्टर के पास जाना चाहिए ताकि उनका सही समय पर इलाज हो सके.

चिकेन से जुड़े व्यापारियों ने बताया कि बर्ड फ्लू के ज्यादा केस सरकारी स्वयं सहायता समूह के द्वारा किए जा रहे मुर्गी फार्म में देखने को मिल रहे हैं. निजी स्तर पर जो मुर्गी पालन केंद्र खोलकर काम कर रहे हैं, वहां पर इस तरह के केस कम देखने को मिले हैं. लेकिन जिस प्रकार से बर्ड फ्लू का भय लोगों में फैल रहा है. इससे सभी स्तर के व्यापारियों पर सीधा असर पड़ रहा है.

स्मॉल स्केल इंडस्ट्री के उपाध्यक्ष राजीव रंजन मिश्रा बताते हैं कि वर्ष 2004 में सबसे ज्यादा असर बर्ड फ्लू के कारण देखने को मिला था, अब धीरे-धीरे लोग समझ रहे हैं. जब भी बर्ड फ्लू के केस मिलते हैं तो इसका कहीं ना कहीं व्यापारियों को नुकसान झेलना पड़ता है. उन्होंने बताया कि वर्ष 2004 में सरकार की तरफ से मुआवजा भी दिया गया था, लेकिन उसके बाद जब भी बर्ड फ्लू के कारण पोल्ट्री फार्म के व्यापारियों को नुकसान हुआ है उसका मुआवजा नहीं मिलता. व्यापारियों की मानें तो बर्ड फ्लू बीमारी उनके कारोबार के लिए आफत बन रही है. हर वर्ष लाखों रुपए का नुकसान व्यापारियों को हो रहा है. अब देखने वाली बात होगी कि इस वर्ष बर्ड फ्लू के केस मिलने के बाद व्यापारियों को कितना नुकसान सहना पड़ता है.

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रांचीः बोकारो जिले में बर्ड फ्लू के केस की पुष्टि होने के बाद राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में इसका असर देखने को मिल रहा है. खास करके चिकेन के व्यापार पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ा है. राजधानी रांची सहित राज्य के सभी क्षेत्रों में लोग चिकेन खरीदने से परहेज कर रहे हैं.

बोकारो में बर्ड फ्लू के केस मिलने के बाद इसके व्यापार पर काफी असर पड़ा है. झारखंड स्मॉल स्केल इंडस्ट्री एसोसिएशन के उपाध्यक्ष राजीव रंजन बताते हैं कि पूरे झारखंड की बात करें तो 200 से 500 करोड़ का चिकेन का व्यापार हर वर्ष होता है. सबसे ज्यादा हजारीबाग, रांची, जमशेदपुर, धनबाद और बोकारो में लोग इस व्यापार से जुड़े हैं. झारखंड चिकेन के व्यापार में एक हब बन चुका है. इसीलिए बाहर की भी कई कंपनियां झारखंड में चिकेन की सप्लाई करती है.

झारखंड में सुगमा फूड लिमिटेड, वेंकी इंडिया लिमिटेड सहित हरियाणा और दक्षिण क्षेत्र की कई कंपनियां चूजों और मुर्गियों की सप्लाई करती है. ऐसे में बर्ड फ्लू का आना निश्चित रूप से पूरे व्यापार पर असर करता है. राजीव रंजन ने बताया कि राज्य में करीब 1500 बड़े पोल्ट्री फार्म हैं. वहीं 40 से 50 ऐसे हेचरी सेंटर हैं जहां पर अंडे से चूजे को निकाला जाता है और फिर उसे बाजार में सप्लाई की जाती है.

झारखंड में पोल्ट्री फार्म से लाखों लोगों का रोजगार सृजन होता है, लेकिन वर्तमान में जिस तरह से चिकेन की बिक्री में लगातार कमी हो रही है, ऐसे में लोगों का व्यापार नुकसान में जा रहा है. चिकेन का व्यापार करने वाले लोगों ने बताया कि यह बीमारी अब हर साल आ रही है और लोगों के मन में कई बार भ्रम पैदा कर देती है, जिस वजह से लोग चिकेन खरीदने से परहेज करते हैं. हालांकि बोकारो में कड़कनाथ मुर्गी में बर्ड फ्लू पाया गया है. जिस वजह से फार्म वाले मुर्गे राजधानी रांची में कई जगह बिक रहे हैं, लेकिन देसी और कड़कनाथ ब्रीड के मुर्गे को लोग खरीदना बंद कर रहे हैं.

डॉ संजय कुमार बताते हैं कि यह बीमारी एक फ्लू की तरह है जो पक्षियों से फैलती है, ऐसे में लोगों को पक्षियों से परहेज करने की आवश्यकता है ताकि लोगों को किसी तरह की परेशानी ना हो. वहीं उन्होंने बताया कि इस बीमारी से बचने के लिए लोगों को मास्क का प्रयोग करना चाहिए. यदि किसी को चिकेन या अन्य पक्षी से बर्ड फ्लू की बीमारी होती है तो मास्क के माध्यम से कई बार यह दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलता है. वहीं उन्होंने बताया कि बर्ड फ्लू होने के बाद तुरंत ही लोगों को डॉक्टर के पास जाना चाहिए ताकि उनका सही समय पर इलाज हो सके.

चिकेन से जुड़े व्यापारियों ने बताया कि बर्ड फ्लू के ज्यादा केस सरकारी स्वयं सहायता समूह के द्वारा किए जा रहे मुर्गी फार्म में देखने को मिल रहे हैं. निजी स्तर पर जो मुर्गी पालन केंद्र खोलकर काम कर रहे हैं, वहां पर इस तरह के केस कम देखने को मिले हैं. लेकिन जिस प्रकार से बर्ड फ्लू का भय लोगों में फैल रहा है. इससे सभी स्तर के व्यापारियों पर सीधा असर पड़ रहा है.

स्मॉल स्केल इंडस्ट्री के उपाध्यक्ष राजीव रंजन मिश्रा बताते हैं कि वर्ष 2004 में सबसे ज्यादा असर बर्ड फ्लू के कारण देखने को मिला था, अब धीरे-धीरे लोग समझ रहे हैं. जब भी बर्ड फ्लू के केस मिलते हैं तो इसका कहीं ना कहीं व्यापारियों को नुकसान झेलना पड़ता है. उन्होंने बताया कि वर्ष 2004 में सरकार की तरफ से मुआवजा भी दिया गया था, लेकिन उसके बाद जब भी बर्ड फ्लू के कारण पोल्ट्री फार्म के व्यापारियों को नुकसान हुआ है उसका मुआवजा नहीं मिलता. व्यापारियों की मानें तो बर्ड फ्लू बीमारी उनके कारोबार के लिए आफत बन रही है. हर वर्ष लाखों रुपए का नुकसान व्यापारियों को हो रहा है. अब देखने वाली बात होगी कि इस वर्ष बर्ड फ्लू के केस मिलने के बाद व्यापारियों को कितना नुकसान सहना पड़ता है.

Last Updated : Feb 24, 2023, 2:44 PM IST
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