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23/23 जुटान का इफेक्ट! क्या झारखंड की 14 सीटों पर बन पाएगा सीट शेयरिंग का फॉर्मूला?

2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों में सभी पार्टियां लग चुकी हैं. केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ पटना में एक मंच पर 15 दलों के नेता भी आए और साथ लड़ने का फैसला किया. ऐसे में अब झारखंड की 14 सीटों पर महागठबंधन का क्या तालमेल रहेगा और क्या होगा इसका भविष्य पढ़िए इस रिपोर्ट में.

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Published : Jun 23, 2023, 6:56 PM IST

Updated : Jun 23, 2023, 7:51 PM IST

Challenge before Mahagathbandhan
Challenge before Mahagathbandhan

रांची: संभवत: भारत की राजनीति में ऐसा पहली बार देखने को मिल रहा है जब चुनाव से करीब 11 माह पहले से ही हार-जीत का समीकरण बनाया जाने लगा है. फर्क इतना है कि पूर्व में चुनाव के कुछ समय पहले अलग-अलग पार्टियां अपने हिसाब से चुनावी गणित का फार्मूला बनाती थीं, लेकिन इसबार भाजपा के खिलाफ पटना में महाजुटान हुआ है. झारखंड से झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष सह मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी इस जुटान का हिस्सा बने हैं. 23-23 के पटना समझौते के बाद अब झारखंड में महागठबंधन की क्या रणनीति होगी और सीट शेयरिंग किस तरह होगी, ये बड़ा सवाल बन गया है.

ये भी पढ़ें: Opposition Parties Meeting: देश की एकता में आ रहा दरार अब उसे रिपेयर करने की जरूरत, विपक्षी दलों की बैठक के बाद बोले हेमंत सोरेन

बिहार में होने वाली बैठक के बाद अब सवाल है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में हेमंत सोरेन की विपक्ष के साथ भागीदारी राज्य के 14 लोकसभा सीटों पर कितना असर डालेगी. इसका सटीक जवाब सिर्फ वोटरों के पास है जो चुनाव बाद ईवीएम से निकलेगा. फिर भी आंकलन शुरू हो चुका है. दरअसल, 2019 के लोकसभा चुनाव में झारखंड की 14 सीटों में 11 सीटों पर भाजपा की जीत हुई थी. भाजपा की सहयोगी आजसू के खाते में एक सीट गई थी. शेष दो सीटों में एक पर झामुमो और दूसरे पर कांग्रेस को जीत मिली थी.

सीट शेयरिंग का फॉर्मूला होगी चुनौती!: सबसे बड़ा सवाल है कि पटना के जुटान से झारखंड में विपक्षी एकता यहां की 14 लोकसभा सीटों पर कितना असर डाल सकती है. जवाब सीधा सा है कि 2019 में विपक्षी दलों ने तो मिलकर ही भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा था. उस वक्त भी विपक्ष ने 9, 4 और 1 का फॉर्मूला बनाया था. नौ सीट कांग्रेस, 4 सीट झामुमो और 1 सीट राजद को मिली थी. लेकिन कांग्रेस ने उस वक्त जेवीएम का नेतृत्व कर रहे बाबूलाल मरांडी के लिए अपने हिस्से की गोड्डा और कोडरमा सीट छोड़ दी थी. जबकि चतरा सीट पर कांग्रेस की दावेदारी के बावजूद राजद ने प्रत्याशी दे दिया था. इसके बावजूद चार दलों का गठबंधन भी भाजपा को नहीं रोक पाया था. इस परिणाम को मोदी मैजिक के रूप में देखा गया.

अब तैयारी हो रही है 2024 के चुनाव की: झारखंड में ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स की कार्रवाई की छटपटाहट साफ दिखी है. खनन पट्टा मामले में चुनाव आयोग के मंतव्य वाले लिफाफे ने अभी तक सस्पेंस बरकरार रखा है. दूसरी तरफ प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेता आलमगीर आलम कह चुके हैं कि इस बार भी 9, 4 और 1 वाला ही फॉर्मूला रहेगा. अब सवाल है कि क्या झामुमो इसपर सहमत हो पाएगी.

इसक सवाल का जवाब जानने के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव के कुछ माह बाद हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों को समझना होगा. 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा अकेले मैदान में उतरी थी. आजसू से तालमेल नहीं बना था. भाजपा ने 79 सीटों पर चुनाव लड़ा था, इसमें 25 सीट पर जीत हुई थी और 6 सीटों पर प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गई थी. आजसू 53 सीटों पर लड़ी थी. उसके खाते में सिर्फ दो सीटें आई थी, जबकि 37 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी.

वहीं, गठबंधन में शामिल कांग्रेस 31 सीटों पर लड़ी थी. उसके खाते में 16 सीटें आई थी और छह की जमानत जब्त हुई थी. 43 सीटों पर लड़क कर 30 सीटों पर जीत के साथ झामुमो सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. उसके चार प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई थी. राजद को सात सीटों पर मौका मिला था, लेकिन खाते में सिर्फ एक सीट आई थी. जाहिर है झारखंड में सत्ता की कमान झामुमो के पास है. उसके पास सबसे ज्यादा विधायक हैं. अब ऐसे में 9,4 और 1 वाला फॉर्मूला क्या झामुमो को सूट करेगा, ये बड़ा सवाल है.

आम तौर पर विधानसभा सीटों पर जीत की संख्या के आधार पर ही किसी भी दल की भागीदारी तय होती है. दूसरी तरफ कांग्रेस अपना पत्ता खोल चुकी है. अब तमाम विवादों में घिरी हेमंत सरकार क्या लोकसभा चुनाव में कांप्रमाइज करेगी. सारा खेल उसी पर टिकेगा, साथ ही राजद ने हाल के दिनों में जिस तरह से अपनी गतिविधि बढ़ाई है. उससे क्या यह नहीं लगता कि इस बार वह एक सीट से ही संतोष कर लेगी? इन जवाबों के आने के बाद ही तय हो पाएगा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को किस तरह की चुनौती से गुजरना होगा. यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि इस बार भाजपा के पास बाबूलाल जैसे नेता भी है जो 2019 तक भाजपा के विरोध में आवाज उठाया करते थे.

रांची: संभवत: भारत की राजनीति में ऐसा पहली बार देखने को मिल रहा है जब चुनाव से करीब 11 माह पहले से ही हार-जीत का समीकरण बनाया जाने लगा है. फर्क इतना है कि पूर्व में चुनाव के कुछ समय पहले अलग-अलग पार्टियां अपने हिसाब से चुनावी गणित का फार्मूला बनाती थीं, लेकिन इसबार भाजपा के खिलाफ पटना में महाजुटान हुआ है. झारखंड से झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष सह मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी इस जुटान का हिस्सा बने हैं. 23-23 के पटना समझौते के बाद अब झारखंड में महागठबंधन की क्या रणनीति होगी और सीट शेयरिंग किस तरह होगी, ये बड़ा सवाल बन गया है.

ये भी पढ़ें: Opposition Parties Meeting: देश की एकता में आ रहा दरार अब उसे रिपेयर करने की जरूरत, विपक्षी दलों की बैठक के बाद बोले हेमंत सोरेन

बिहार में होने वाली बैठक के बाद अब सवाल है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में हेमंत सोरेन की विपक्ष के साथ भागीदारी राज्य के 14 लोकसभा सीटों पर कितना असर डालेगी. इसका सटीक जवाब सिर्फ वोटरों के पास है जो चुनाव बाद ईवीएम से निकलेगा. फिर भी आंकलन शुरू हो चुका है. दरअसल, 2019 के लोकसभा चुनाव में झारखंड की 14 सीटों में 11 सीटों पर भाजपा की जीत हुई थी. भाजपा की सहयोगी आजसू के खाते में एक सीट गई थी. शेष दो सीटों में एक पर झामुमो और दूसरे पर कांग्रेस को जीत मिली थी.

सीट शेयरिंग का फॉर्मूला होगी चुनौती!: सबसे बड़ा सवाल है कि पटना के जुटान से झारखंड में विपक्षी एकता यहां की 14 लोकसभा सीटों पर कितना असर डाल सकती है. जवाब सीधा सा है कि 2019 में विपक्षी दलों ने तो मिलकर ही भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा था. उस वक्त भी विपक्ष ने 9, 4 और 1 का फॉर्मूला बनाया था. नौ सीट कांग्रेस, 4 सीट झामुमो और 1 सीट राजद को मिली थी. लेकिन कांग्रेस ने उस वक्त जेवीएम का नेतृत्व कर रहे बाबूलाल मरांडी के लिए अपने हिस्से की गोड्डा और कोडरमा सीट छोड़ दी थी. जबकि चतरा सीट पर कांग्रेस की दावेदारी के बावजूद राजद ने प्रत्याशी दे दिया था. इसके बावजूद चार दलों का गठबंधन भी भाजपा को नहीं रोक पाया था. इस परिणाम को मोदी मैजिक के रूप में देखा गया.

अब तैयारी हो रही है 2024 के चुनाव की: झारखंड में ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स की कार्रवाई की छटपटाहट साफ दिखी है. खनन पट्टा मामले में चुनाव आयोग के मंतव्य वाले लिफाफे ने अभी तक सस्पेंस बरकरार रखा है. दूसरी तरफ प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेता आलमगीर आलम कह चुके हैं कि इस बार भी 9, 4 और 1 वाला ही फॉर्मूला रहेगा. अब सवाल है कि क्या झामुमो इसपर सहमत हो पाएगी.

इसक सवाल का जवाब जानने के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव के कुछ माह बाद हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों को समझना होगा. 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा अकेले मैदान में उतरी थी. आजसू से तालमेल नहीं बना था. भाजपा ने 79 सीटों पर चुनाव लड़ा था, इसमें 25 सीट पर जीत हुई थी और 6 सीटों पर प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गई थी. आजसू 53 सीटों पर लड़ी थी. उसके खाते में सिर्फ दो सीटें आई थी, जबकि 37 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी.

वहीं, गठबंधन में शामिल कांग्रेस 31 सीटों पर लड़ी थी. उसके खाते में 16 सीटें आई थी और छह की जमानत जब्त हुई थी. 43 सीटों पर लड़क कर 30 सीटों पर जीत के साथ झामुमो सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. उसके चार प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई थी. राजद को सात सीटों पर मौका मिला था, लेकिन खाते में सिर्फ एक सीट आई थी. जाहिर है झारखंड में सत्ता की कमान झामुमो के पास है. उसके पास सबसे ज्यादा विधायक हैं. अब ऐसे में 9,4 और 1 वाला फॉर्मूला क्या झामुमो को सूट करेगा, ये बड़ा सवाल है.

आम तौर पर विधानसभा सीटों पर जीत की संख्या के आधार पर ही किसी भी दल की भागीदारी तय होती है. दूसरी तरफ कांग्रेस अपना पत्ता खोल चुकी है. अब तमाम विवादों में घिरी हेमंत सरकार क्या लोकसभा चुनाव में कांप्रमाइज करेगी. सारा खेल उसी पर टिकेगा, साथ ही राजद ने हाल के दिनों में जिस तरह से अपनी गतिविधि बढ़ाई है. उससे क्या यह नहीं लगता कि इस बार वह एक सीट से ही संतोष कर लेगी? इन जवाबों के आने के बाद ही तय हो पाएगा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को किस तरह की चुनौती से गुजरना होगा. यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि इस बार भाजपा के पास बाबूलाल जैसे नेता भी है जो 2019 तक भाजपा के विरोध में आवाज उठाया करते थे.

Last Updated : Jun 23, 2023, 7:51 PM IST
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