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राज्य अनुसूचित जाति आयोग की बदहाली पर अध्यक्ष दुखी, कैसे होगा एससी वर्ग के लोगों का विकास ? - अनुसूचित जाति की खबरें

झारखंड में अनुसूचित जाति आयोग का गठन तो हुआ लेकिन आज तक इसका समुचित विकास नहीं हो पाया है. आयोग के अध्यक्ष शिवधारी राम ने इसको लेकर दुख जताया है साथ ही आयोग के नाम पर पैसों की बंदरबांट का आरोप लगाया है.

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झारखंड राज्य अनुसूचित जाति आयोग
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Published : Dec 8, 2020, 8:28 AM IST

Updated : Dec 8, 2020, 9:27 AM IST

रांचीः अनुसूचित जाति के विकास के लिए कई राज्यों में अनुसूचित जाति आयोग का गठन किया गया. झारखंड में भी अनुसूचित जाति के लोगों के समुचित विकास के लिए 2017 में आयोग का गठन हुआ. जिसके पहले अध्यक्ष शिवधारी राम को बनाया गया. लेकिन अध्यक्ष के चयन के बाद भी अभी तक राज्य का अनुसूचित जाति आयोग का पूर्णरूपेन गठन नहीं हो पाया. क्योंकि लगभग 3 साल बीत जाने के बाद भी ना तो अन्य सदस्यों का चयन हुआ ना ही उपाध्यक्ष का चयन हो पाया है. जिस वजह से राज्य में अनुसूचित जाति वर्ग को समय पर सामाजिक न्याय नहीं मिल पा रहा है.

जानिए क्या कहा अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष ने
आयोग में परेशानियों का अंबार

अध्यक्ष शिवधारी बताते हैं कि सरकार की उदासीनता की वजह से ना तो वह ग्रामीण क्षेत्रों का भ्रमण कर पा रहे हैं ना ही अनुसूचित जाति बाहुल्य क्षेत्र में जाकर उनकी समस्याओं को सुन पा रहे हैं. ईटीवी की टीम ने जब इसका कारण पूछा तो उन्होंने अपनी परेशानी बताते हुए कहा कि कई बार अनुसूचित जाति के समाज के लोगों की समस्या जानने के लिए सुदूर और ग्रामीण इलाकों में जाना पड़ता है लेकिन साथ में सुरक्षाकर्मी नहीं रहने के कारण वहां जाना संभव नहीं हो पा रहा है.

सुरक्षा देने से डीजीपी का इनकार

सुरक्षा के लिए आयोग की तरफ से जब जवान की मांग की गई झारखंड के डीजीपी एमबी राव ने साफ इनकार कर दिया. जबकि रघुवर दास के शासनकाल में आयोग के अध्यक्ष की सुरक्षा में झारखंड पुलिस के दो जवान हुआ करते थे.

वहीं आयोग के अध्यक्ष शिवधारी राम ने अपनी अन्य समस्या बताते हुए कहा कि जिस उद्देश्य से अनुसूचित जाति आयोग का गठन किया गया था, वह उद्देश्य वर्तमान सरकार में पूरा नहीं हो पा रहा है. उन्होंने कहा कि आयोग के क्रियान्वयन एवं अनुसूचित जाति की समस्या के समाधान के लिए सेंक्सन की गई धन राशि का भी बंदरबांट हो रहा है. लेकिन इसकी सुध लेने वाले राज्य सरकार के अधिकारी चुप बैठे खड़े हैं. सरकारी अफसर आयोग की बात सुनने को तैयार नहीं है. कई एनजीओ आयोग के पैसे का बंदरबांट कर लूट मचाई हुई है. वहीं उन्होंने बताया कि कई बार अनुसूचित समाज के लोगों की समस्या आयोग में आती है लेकिन पूरा सदस्य नहीं होने के कारण संवैधानिक और कानूनी रूप से फैसला नहीं हो पाता है. जिससे एससी समाज का विवाद नहीं सुलझ पा रहा है.

इसे भी पढ़ें- सोमवार को मिले कोरोना के 179 नए मरीज, राज्य में संक्रमितों की तादाद 1 लाख 10 हजार के पार


सरकारी उदासीनता बड़ी वजह

अनुमान के अनुसार अनुसूचित जाति की संख्या राज्य में लगभग चौदह प्रतिशत है, अगर संख्या की बात करें तो पूरे राज्य में अनुसूचित जाति की संख्या लगभग 40 लाख के करीब है. राज्य में अनुसूचित जाति की 22 प्रजातियां हैं. जिसमें हरिजन (चमार,डोम), पासवान (दुसाद), धोबी, रजवार, दांगी, बावरी सहित 22 जातियां हैं. जिनका सरकार गठन में अहम योगदान रहता है. लेकिन उसके बावजूद भी अनुसूचित जाति के कल्याण के लिए बनाए गए आयोग का क्रियान्वयन सरकारी उदासीनता के कारण सही तरीके से नहीं हो पा रहा है.

आयोग में अब तक नहीं हुआ सदस्य का चयन

एक तरफ सरकार आयोग और बोर्ड के नई कमिटी की गठन की बात कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पहले से बनाए गए आयोग की हालत खराब पड़ी है. अभी तक पुरानी कमिटी के सदस्य तक का चयन नहीं हो पाया जो कि अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण है. सवाल यह भी उठता है कि 2021 में अनुसूचित आयोग के 3 वर्ष का एक कार्यकाल समाप्त हो जाएगा उसके बावजूद भी अभी तक इस आयोग का पूर्ण गठन नहीं हो पाया है जो कि निश्चित रूप से राज्य सरकार के उदासीन रवैया को दिखाता है. जरूरत है कि राज्य सरकार आयोग को क्रियान्वित करने के लिए जल्द से जल्द ठोस कदम उठाए ताकि अनुसूचित जाति और समाज के लोगों से किए वादे को बेहतर तरीके से पूरा किया जा सके.

रांचीः अनुसूचित जाति के विकास के लिए कई राज्यों में अनुसूचित जाति आयोग का गठन किया गया. झारखंड में भी अनुसूचित जाति के लोगों के समुचित विकास के लिए 2017 में आयोग का गठन हुआ. जिसके पहले अध्यक्ष शिवधारी राम को बनाया गया. लेकिन अध्यक्ष के चयन के बाद भी अभी तक राज्य का अनुसूचित जाति आयोग का पूर्णरूपेन गठन नहीं हो पाया. क्योंकि लगभग 3 साल बीत जाने के बाद भी ना तो अन्य सदस्यों का चयन हुआ ना ही उपाध्यक्ष का चयन हो पाया है. जिस वजह से राज्य में अनुसूचित जाति वर्ग को समय पर सामाजिक न्याय नहीं मिल पा रहा है.

जानिए क्या कहा अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष ने
आयोग में परेशानियों का अंबार

अध्यक्ष शिवधारी बताते हैं कि सरकार की उदासीनता की वजह से ना तो वह ग्रामीण क्षेत्रों का भ्रमण कर पा रहे हैं ना ही अनुसूचित जाति बाहुल्य क्षेत्र में जाकर उनकी समस्याओं को सुन पा रहे हैं. ईटीवी की टीम ने जब इसका कारण पूछा तो उन्होंने अपनी परेशानी बताते हुए कहा कि कई बार अनुसूचित जाति के समाज के लोगों की समस्या जानने के लिए सुदूर और ग्रामीण इलाकों में जाना पड़ता है लेकिन साथ में सुरक्षाकर्मी नहीं रहने के कारण वहां जाना संभव नहीं हो पा रहा है.

सुरक्षा देने से डीजीपी का इनकार

सुरक्षा के लिए आयोग की तरफ से जब जवान की मांग की गई झारखंड के डीजीपी एमबी राव ने साफ इनकार कर दिया. जबकि रघुवर दास के शासनकाल में आयोग के अध्यक्ष की सुरक्षा में झारखंड पुलिस के दो जवान हुआ करते थे.

वहीं आयोग के अध्यक्ष शिवधारी राम ने अपनी अन्य समस्या बताते हुए कहा कि जिस उद्देश्य से अनुसूचित जाति आयोग का गठन किया गया था, वह उद्देश्य वर्तमान सरकार में पूरा नहीं हो पा रहा है. उन्होंने कहा कि आयोग के क्रियान्वयन एवं अनुसूचित जाति की समस्या के समाधान के लिए सेंक्सन की गई धन राशि का भी बंदरबांट हो रहा है. लेकिन इसकी सुध लेने वाले राज्य सरकार के अधिकारी चुप बैठे खड़े हैं. सरकारी अफसर आयोग की बात सुनने को तैयार नहीं है. कई एनजीओ आयोग के पैसे का बंदरबांट कर लूट मचाई हुई है. वहीं उन्होंने बताया कि कई बार अनुसूचित समाज के लोगों की समस्या आयोग में आती है लेकिन पूरा सदस्य नहीं होने के कारण संवैधानिक और कानूनी रूप से फैसला नहीं हो पाता है. जिससे एससी समाज का विवाद नहीं सुलझ पा रहा है.

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सरकारी उदासीनता बड़ी वजह

अनुमान के अनुसार अनुसूचित जाति की संख्या राज्य में लगभग चौदह प्रतिशत है, अगर संख्या की बात करें तो पूरे राज्य में अनुसूचित जाति की संख्या लगभग 40 लाख के करीब है. राज्य में अनुसूचित जाति की 22 प्रजातियां हैं. जिसमें हरिजन (चमार,डोम), पासवान (दुसाद), धोबी, रजवार, दांगी, बावरी सहित 22 जातियां हैं. जिनका सरकार गठन में अहम योगदान रहता है. लेकिन उसके बावजूद भी अनुसूचित जाति के कल्याण के लिए बनाए गए आयोग का क्रियान्वयन सरकारी उदासीनता के कारण सही तरीके से नहीं हो पा रहा है.

आयोग में अब तक नहीं हुआ सदस्य का चयन

एक तरफ सरकार आयोग और बोर्ड के नई कमिटी की गठन की बात कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पहले से बनाए गए आयोग की हालत खराब पड़ी है. अभी तक पुरानी कमिटी के सदस्य तक का चयन नहीं हो पाया जो कि अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण है. सवाल यह भी उठता है कि 2021 में अनुसूचित आयोग के 3 वर्ष का एक कार्यकाल समाप्त हो जाएगा उसके बावजूद भी अभी तक इस आयोग का पूर्ण गठन नहीं हो पाया है जो कि निश्चित रूप से राज्य सरकार के उदासीन रवैया को दिखाता है. जरूरत है कि राज्य सरकार आयोग को क्रियान्वित करने के लिए जल्द से जल्द ठोस कदम उठाए ताकि अनुसूचित जाति और समाज के लोगों से किए वादे को बेहतर तरीके से पूरा किया जा सके.

Last Updated : Dec 8, 2020, 9:27 AM IST
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