रांची: आदिवासी अधिकार मंच के चौथे राज्य सम्मेलन में शिरकत करने सीपीआईएम की वरिष्ठ नेता वृंदा करात रांची पहुंचीं. जहां पर उन्होंने कहा कि संविधान में आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति के साथ-साथ आदिवासी शब्द से भी संबोधित किया जाना चाहिए. उन्होंने बताया कि देश का संविधान तैयार किए जाने के लिए जब संविधान सभा का गठन हुआ था उस वक्त 6 आदिवासी सदस्य थे, उनमें जयपाल सिंह मुंडा एक मुखर सदस्य थे. वृंदा करात ने कहा कि उन्होंने संविधान सभा की बैठक में काफी तर्कपूर्ण तरीके से इस बात पर काफी जोर दिया था कि संविधान में अनुसूचित जनजाति के साथ आदिवासी का भी उल्लेख होना चाहिए.
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रांची के नामकुम में स्थित जयपाल सिंह एकेडमी के सभागार में आयोजित आदिवासी अधिकार मंच के चतुर्थ राज्य सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए माकपा नेता वृंदा करात ने कहा कि बीजेपी ने हमेशा से आदिवासियों का आहित किया है. उन्होंने भाजपा पर हमला करते हुए बताया कि आदिवासियों को वनवासी के नाम से संबोधित करती है, उसे आदिवासी शब्द खटकता है क्योंकि आदिवासी शब्द की शुरुआत ही आदि यानी प्राचीन सभ्यता की उत्पत्ति के समय से निवास करने वाले लोगों से होती है.
वृंदा करात ने कहा कि आज आदिवासियों को ईसाई और गैर ईसाई में बांटे जाने का षड्यंत्र जारी है. आरएसएस द्वारा संरक्षित जनजाति सुरक्षा मंच डी लिस्टिंग की मांग कर आदिवासियों के बीच फूट पैदा करना चाहता है. इसके पीछे उद्देश्य यही है कि आदिवासियों को विभाजित किया जाए. उन्होंने कहा कि आज संसद में सभी पार्टियों के सांसद हैं, लेकिन केवल वामदल के सांसदों ने ही आदिवासियों के लिए आवाज उठाई है. अन्य पार्टी के सांसद सरकार से डरे सहमे रहते हैं. उन्होंने मौन धारण कर लिया है जो दुर्भाग्यपूर्ण है.