रांची: झारखंड में 2024 के फतह को लेकर के बीजेपी की सियासी गोलबंदी शुरू हो गई है. 6 जनवरी को अमित शाह कोल्हान में होंगे अमित शाह एक जनसभा को संबोधित करेंगे कार्यकर्ताओं से मिलेंगे और झारखंड में 2024 बीजेपी के लिए कैसे बेहतर हो BJP mission 2024 , इसकी रणनीति तैयार करेंगे . बात 2019 की करें लोकसभा चुनाव में 14 में से 12 सीटें एनडीए ने झारखंड में जीती थी. 2 सीट राजमहल और सिंह भूमि बीजेपी को नहीं मिल सका था. अब बीजेपी की रणनीति 2024 के लिए झारखंड में अपने 12 सीट को 14 सीट करने का है ऐसे में बीजेपी अपने सबसे मजबूत गढ़ में अपनी सबसे बड़ी मजबूती तय करना चाह रही है.
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कोल्हान हुआ कमजोर: 2019 से पहले वाली राजनीति को समझें तो 2014 के चुनाव परिणाम को अगर देखा जाए तो कोल्हान बीजेपी का गढ़ रहा है. कोल्हान ने बीजेपी के दो मुख्यमंत्री भी दिए हैं. अर्जुन मुंडा और रघुवर दास कोल्हान क्षेत्र से ही बीजेपी के मुख्यमंत्री थे. लेकिन 2019 में विधानसभा चुनाव में बदली राजनीतक सियासत में कोल्हान की राजनीति बीजेपी के हाथ से निकल गई. कोल्हान जो बीजेपी की सबसे मजबूत किलेबंदी के तौर पर जाना जाता था 2019 में वह सबसे मजबूत कड़ी कमजोर कड़ी साबित हुई आलम यह हुआ कि बीजेपी के उस समय के मुख्यमंत्री अपनी कुर्सी नहीं बचा पाए. विरोध और विभेद की जिस सियासत में बीजेपी झारखंड में पहुंची, उसमें 2019 के मई के चुनाव में लोकसभा में 12 सीटें जीतने वाली बीजेपी 3 महीने बाद झारखंड में हुए विधानसभा चुनाव में अपनी चल रही सरकार को नहीं बचा पाई. BJP mission 2024 के इसी सियासी मंथन को लेकर के अमित शाह 6 तारीख को कोल्हान से अपने नए राजनीतिक रणभेरी को बजाना शुरू करेंगे.
26 ST सीट हारी बीजेपी: झारखंड में बीजेपी के हार के एक नहीं कई कारण बताए गए, उसका सबसे बड़ा कारण बीजेपी का गैर आदिवासी मुख्यमंत्री का नारा देना शायद बीजेपी को भारी पड़ गया, हालांकि राजनीतिक समीक्षकों ने कई स्थानों पर बीजेपी की बड़ी कमजोरी भी बताई थी, लेकिन अगर कोल्हान को समझा जाए तो कोल्हान की कुल 14 सीटों में से 9 सीटें ST के लिए आरक्षित है. अगर झारखंड में एसटी सीट की बात करें कुल 28 सीटों में से बीजेपी 26 सीट हार गई थी, और यही बीजेपी के सत्ता से जाने का सबसे बड़ा कारण बना.
1932 से कोल्हान होगा मजबूत: अमित शाह बीजेपी को कोल्हान से मजबूती देने की एक नई तैयारी इसलिए भी कर रहे हैं कि कोल्हान में हेमंत सोरेन के 1932 आधारित खतियान का विरोध भी बीजेपी के लिए एक हथियार बन सकता है. कोल्हान की राजनीति में बात मधु कोड़ा या गीता कोड़ा की करें तो 1932 आधारित खतियान को लेकर के इन लोगों ने हेमंत सरकार का विरोध किया है. यह अलग बात है कि गीता कोड़ा कांग्रेस की कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष भी हैं उसके बाद भी उन्होंने अपनी ही सरकार के इस आदेश का विरोध किया था और कहा था कि सरकार को इसे विचार में रखना चाहिए. मधु कोड़ा ने हेमंत सोरेन को पत्र लिखकर के 1932 आधारित खतियान के विरोध की बात कही थी और यह भी कहा था कि कोल्हान के 50 लाख से ज्यादा लोग लावारिस हो जाएंगे.
चुनाव को रंग में झारखंड: हेमंत सोरेन ने विधानसभा के शीतकालीन सत्र के अंतिम दिन अपने संबोधन में यह कहा था कि बीजेपी के लोग चुनावी तैयारी में जुटे हुए हैं. सदन में एक पोस्टर को दिखाते हुए हेमंत सोरेन ने कहा था कि जब से हमारी सरकार बनी है तब से बीजेपी के लोग यह बताने में जुटे हैं कि झारखंड में चुनाव की तैयारी जिस तरीके से बीजेपी कर रही है वह झारखंड सरकार को अस्थिर करने की रणनीति के तहत जरूर रहा है. लेकिन इन सभी चीजों पर हमारी भी नजर है. दरअसल 2023 वाली सियासत से 2024 को साधने में सभी राजनीतिक दल जुटे हुए हैं. झारखंड मुक्ति मोर्चा भी बीजेपी के इन सभी दांवपेच को बेहतर तरीके से समझ रही है. झारखंड में मौजूदा राजनीतिक हालात में जिस तरीके की स्थितियां बनी है बीजेपी उसमें अवसर खोज रही है. यही वजह है अभी झारखंड के चुनाव में लगभग 2 साल का वक्त है और लोकसभा चुनाव में अभी डेढ़ साल बचा हैं लेकिन उसके बाद भी बीजेपी ने जिस रणनीति के तहत झारखंड में गोलबंदी शुरू की है उससे बीजेपी की झारखंड जीतने की चिंता साफ तौर पर झलक रही है.
बीजेपी के दिग्गज मैदान में: राजनीतिक रणनीति की बात करें तो झारखंड को जीतने के लिए 3 तरह की गोलबंदी बीजेपी ने कर रखी है. बीजेपी के प्रदेश प्रभारी लक्ष्मीकांत बाजपेई ने संथाल वाली सियासत में अपना पहला कदम रखा था और पहली बार जब झारखंड आए थे तो बाबूलाल मरांडी के साथ संथाल में बीजेपी की गोलबंदी की धीरे से ही सही लेकिन एक कहानी जरूर लिख गए थे. बात बीएल संतोष की करें तो अर्जुन मुंडा के साथ जिस तरीके से छोटा नागपुर का क्षेत्र पकड़ने में जुटे हैं वह बीजेपी की राजनीतिक रणनीति को दर्शाती है. अब अमित शाह 6 जनवरी को कोल्हान से बीजेपी को मजबूत करने की नई गोलबंदी वाली सियासत को शुरू कर रहे हैं, जो बीजेपी के लिए 2024 जीत के लिए शुरुआती मंत्र होगा और शायद यही से बीजेपी अपने 2024 के मूल मिशन के लिए काम में लग जाए. झारखंड मुक्ति मोर्चा ने बीजेपी के इस अभियान को पूरे तौर पर फेल बताते हुए कहा बीजेपी का झारखंड से सफाया तय है. तैयारी जिस तरीके से भी चाहे कर ले लेकिन झारखंड में बीजेपी वालों का कुछ चलना नहीं है.
बहरहाल राजनीति अपने तरीके से अपने पत्ते फेंक रही है अब देखने वाली बात यह होगी कि 2024 की गोलबंदी में जुटी बीजेपी और उस पर अपनी कड़ी नजर बनाए झारखंड मुक्ति मोर्चा और विपक्षी दल झारखंड की सियासत में किस तरीके से अपनी राजनीतक राह को दिशा देते हैं.