रांची: झारखंड में हुए कथित मॉब लिंचिंग और भूख से मौत को लेकर मौजूदा सरकार के कार्यकाल में खूब सियासत हुई है. इस दौरान विपक्षी दल और सत्ताधारी पार्टी एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करते रहे हैं. पिछले 5 सालों में प्रदेश में भूख और भीड़तंत्र ने 22 लोगों की जान ली है, लेकिन मौजूदा विधानसभा चुनाव में यह किसी भी राजनीतिक दल के लिए अब तक चुनावी मुद्दा नहीं बना है.
19 साल के झारखंड ने कई चुनाव देखे. इस दौरान 10 मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल रहा. राष्ट्रपति शासन की स्थिति भी बनी. झारखंड गठन से पहले के कई दशक और झारखंड बनने के बाद के लगभग 2 दशकों के दौरान जो मुद्दा सबसे कॉमन रहा, वह है- जल, जगंल और जमीन का मामला. सभी ने इस मुद्दे को लेकर लंबी लड़ाई लड़ी. कई पार्टियों के लिए आज भी यह मुद्दा सबसे ऊपर और अहम है. लेकिन पिछले कुछ सालों के दौरान कई ऐसे भी मुद्दे रहे, जिसको लेकर किसी भी राजनीतिक पार्टी ने उस ओर ध्यान नहीं दिया है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार राज्य में अभी तक न तो भूख से मौत हुई और न ही मॉब लिंचिंग से, हैरत की बात तो यह है कि अगर हम गैर सरकारी संस्थाओं के आंकड़ों पर गौर करें, तो सबसे ज्यादा मॉब लिंचिंग की घटना प्रदेश के पूर्वी सिंहभूम इलाके में हुई है. लेकिन विधानसभा चुनाव में सभी राजनीतिक दल इस मुद्दे को लेकर खामोश रहे.
11 मॉब लिंचिंग की घटनाएं हुईं हैं
झारखंड में सबसे पहले कथित तौर पर मॉब लिंचिंग लातेहार जिले में हुई. जिसमें 12 साल के एक किशोर और 33 साल के एक युवक की हत्या कर पेड़ से लटका दिया गया था. आंकड़ों को उलट कर देखें तो मार्च 2016 से जून 2018 तक कथित तौर पर प्रदेश में 11 मॉब लिंचिंग की घटनाएं हुई हैं. इनमें सबसे अधिक पूर्वी सिंहभूम जिले में घटी है. पूर्वी सिंहभूम में साल 2017 में हुए एक मामले में 4 लोग भीड़ के शिकार हुए थे, जबकि गोड्डा जिले में साल 2018 में 2 लोग, गढ़वा में एक, जामताड़ा में एक लोग की जान मॉब लिंचिंग में गई है. रामगढ़ जिले में जून 2017 में हुई कथित मॉब लिंचिंग की घटना देशभर में चर्चा का विषय बना था. रामगढ़ जिले में अलीमुद्दीन अंसारी के हत्या मामले में दोषियों को तत्कालीन केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा ने माला भी पहनाया था, जिसपर काफी किरकिरी भी हुई थी.
भूखमरी से हुई है 11 मौत
सिमडेगा के जलडेगा की रहने वाली 11 साल की संतोषी कुमारी की मौत भूख से हुई थी. जिसको लेकर राज्यभर में खूब राजनीति हुई थी. विपक्ष ने इसको लेकर जोरदार हंगामा किया था. आंकड़ों के अनुसार सितंबर 2017 से लेकर जून 2018 तक 11 लोग भूख के कारण मरे हैं. इन सभी मामलों में पीड़ित परिवार को लंबे समय से राशन नहीं मिल पाना वजह बताई गई थी. हालांकि सरकारी जांच में अभी तक राज्य सरकार ने इन मौतों को भूख से हुई मौत का दर्जा नहीं दिया है.
भूख से मौत की जांच को लेकर बनी थी कमेटी
दरअसल राज्य में भूख से हुई कथित मौतों की जांच को लेकर जब सरकार की किरकिरी होने लगी तब तत्कालीन खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने एक कमेटी बनाने का निर्देश दिया था. कमिटी को इस बात की जिम्मेदारी दी गई थी कि वह भूख से मौत को परिभाषित करने के लिए हर संभव कोशिश करे. हालांकि कमेटी ने अपनी एक रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी, लेकिन अभी भी एक सवाल बना हुआ है कि आखिर भूख से मौत कैसे परिभाषित की जाएगी.
इसे भी पढे़ं- आज झारखंड में मोदी Vs राहुल, कई सभाओं को करेंगे संबोधित
क्या कहते हैं राजनीतिक एक्सपर्ट
बीजेपी के प्रदेश महामंत्री दीपक प्रकाश ने कहा कि मुद्दा बनाने वाले विपक्षी दल केवल इन शब्दों का उपयोग करते हैं. मॉब लिंचिंग के मामले पर उन्हें जनता ने नकार दिया है. क्योंकि सबसे ज्यादा मौतें 1984 के सिख दंगे में हुई थी. उन्होंने कहा कि झारखंड में न तो मॉब लिंचिंग और न ही भूख से मौत हुई है. वहीं, कांग्रेस प्रवक्ता आलोक दुबे ने कहा कि मॉब लिंचिंग और भूखमरी को लेकर कांग्रेस हमेशा आवाज उठाते रही है. प्रदेश में अन्य मुद्दे ज्यादा प्रभावकारी हैं, इसलिए भूखमरी और मॉब लिंचिंग को लेकर विपक्ष की आवाज दबी हुई है, लेकिन ऐसा नहीं है कि ये मुद्दे विपक्ष के पास नहीं हैं.