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झारखंड में मड़ुआ की खेती को बढ़ावा देगा BAU, दुनियाभर में है इसकी डिमांड

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Published : Jun 21, 2020, 5:19 PM IST

झारखंड का मौसम और जलवायु मड़ुआ की खेती के लिए काफी उपयुक्त है. इसकी खेती खरीफ मौसम में टांड़ भूमि में 30 जून तक की जाती है. इसकी खेती में कम सिंचाई, उर्वरक और लागत की जरूरत होती है. इसमें रोग और कीट का प्रकोप करीब नगण्य देखा गया है.

Birsa Agricultural University will promote super food farming
Birsa Agricultural University will promote super food farming

रांची: कृषि विभाग की वर्ष 2018-19 की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड राज्य के 14 हजार 270 हेक्टेयर भूमि मात्र में मड़ुआ (रागी) की खेती की गई. इनमें रांची, खूंटी, सिमडेगा, लोहरदगा, पश्चिमी सिंहभूम, गुमला और दुमका जिलों के हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि में इसकी खेती की गई. जबकि पूर्वी सिंहभूम, देवघर, गोड्डा, साहेबगंज, पाकुड़, गढ़वा बोकारो और जामताड़ा में इसका शून्य आच्छादन रहा. दशकों पहले प्रदेश के सभी जिलों में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती थी. इसे खरीफ खाद्यान फसलों में धान के बाद दूसरा प्रमुख फसल का स्थान प्राप्त था. मड़ुआ की स्थानीय किस्मों की उपज 5-6 क्विंटल/हेक्टेयर होने, स्थानीय बाजार में कम मूल्य और मांग की वजह से किसान इसकी खेती से विमुख होते चले गए.

ये भी पढ़ें: रांची: सीएम हेमंत सोरेन ने ट्वीट कर दी योग दिवस की शुभकामनाएं, की स्वस्थ रहने की अपील

अपने पोष्टिक और औषधीय गुणों के कारण कल का गरीबों का अनाज मड़ुआ (रागी) आज पूरे विश्व में सुपर फ़ूड के रूप में जाना जाता है और इसकी वैश्विक मांग भी काफी अधिक है. बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के आनुवांशिकी और पौधा प्रजनन विभाग में वर्षों से इस फसल पर शोध कार्य चल रहा है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आईसीएआर) की अखिल भारतीय समन्वित स्माल मिलेट शोध परियोजना के तहत प्रदेश के अनुकूल 4 उन्नत किस्मों और बिरसा मडुआ -2 , बिरसा मडुआ -3 व जेडब्लूएम – 1 को वर्षो अनुसंधान के बाद विकसित किया गया है. करीब 105 से 120 दिनों की अवधि वाली इन किस्मों की औसत उपज 24 से 30 क्विंटल/हेक्टेयर है. इस परियोजना के तहत शनिवार को प्रदेश में मड़ुआ (रागी) की खेती को बढ़ावा देने के लिए रांची जिले के मांडर प्रखंड के 3 गांवों में उन्नत प्रभेद बिरसा मड़ुआ-3 के बीज का वितरण किया गया.

इसमें नगरा पंचायत अधीन उचारी गांव और झिनझारी पंचायत अधीन सकरपदा और टोटाम्बी गांवों के कुल 55 आदिवासी किसानों को करीब 15 हेक्टेयर भूमि में अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षण (एफएलडी) के लिए बीज का वितरण किया गया. उपपरियोजना अन्वेंशक डॉ. सबिता एक्का ने किसानों को मड़ुआ की खेती हेतु खेत की तैयारी, बुआई, उर्वरक का उपयोग और फसल प्रबंधन तकनीकों की जानकारी दी.110-115 दिनों की अवधि वाली बिरसा मड़ुआ-3 (बीबीएम -10) किस्म की औसत उपज 28 से 30 क्विंटल/हेक्टेयर से कम लागत में अधिक लाभ लिए जाने पर बल दिया. वितरण में सहयोग क्षेत्र अधिदर्शक सुजीत कुमार ने किया. परियोजना अन्वेंशक डॉ. जेडए हैदर बताते हैं कि झारखंड का मौसम और जलवायु मड़ुआ की खेती के लिए काफी उपयुक्त है. इसकी खेती खरीफ मौसम में टांड़ भूमि में 30 जून तक की जाती है. इसकी खेती में कम सिंचाई, उर्वरक और लागत की जरूरत होती है. इसमें रोग और कीट का प्रकोप करीब नगण्य देखा गया है.

रांची: कृषि विभाग की वर्ष 2018-19 की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड राज्य के 14 हजार 270 हेक्टेयर भूमि मात्र में मड़ुआ (रागी) की खेती की गई. इनमें रांची, खूंटी, सिमडेगा, लोहरदगा, पश्चिमी सिंहभूम, गुमला और दुमका जिलों के हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि में इसकी खेती की गई. जबकि पूर्वी सिंहभूम, देवघर, गोड्डा, साहेबगंज, पाकुड़, गढ़वा बोकारो और जामताड़ा में इसका शून्य आच्छादन रहा. दशकों पहले प्रदेश के सभी जिलों में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती थी. इसे खरीफ खाद्यान फसलों में धान के बाद दूसरा प्रमुख फसल का स्थान प्राप्त था. मड़ुआ की स्थानीय किस्मों की उपज 5-6 क्विंटल/हेक्टेयर होने, स्थानीय बाजार में कम मूल्य और मांग की वजह से किसान इसकी खेती से विमुख होते चले गए.

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अपने पोष्टिक और औषधीय गुणों के कारण कल का गरीबों का अनाज मड़ुआ (रागी) आज पूरे विश्व में सुपर फ़ूड के रूप में जाना जाता है और इसकी वैश्विक मांग भी काफी अधिक है. बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के आनुवांशिकी और पौधा प्रजनन विभाग में वर्षों से इस फसल पर शोध कार्य चल रहा है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आईसीएआर) की अखिल भारतीय समन्वित स्माल मिलेट शोध परियोजना के तहत प्रदेश के अनुकूल 4 उन्नत किस्मों और बिरसा मडुआ -2 , बिरसा मडुआ -3 व जेडब्लूएम – 1 को वर्षो अनुसंधान के बाद विकसित किया गया है. करीब 105 से 120 दिनों की अवधि वाली इन किस्मों की औसत उपज 24 से 30 क्विंटल/हेक्टेयर है. इस परियोजना के तहत शनिवार को प्रदेश में मड़ुआ (रागी) की खेती को बढ़ावा देने के लिए रांची जिले के मांडर प्रखंड के 3 गांवों में उन्नत प्रभेद बिरसा मड़ुआ-3 के बीज का वितरण किया गया.

इसमें नगरा पंचायत अधीन उचारी गांव और झिनझारी पंचायत अधीन सकरपदा और टोटाम्बी गांवों के कुल 55 आदिवासी किसानों को करीब 15 हेक्टेयर भूमि में अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षण (एफएलडी) के लिए बीज का वितरण किया गया. उपपरियोजना अन्वेंशक डॉ. सबिता एक्का ने किसानों को मड़ुआ की खेती हेतु खेत की तैयारी, बुआई, उर्वरक का उपयोग और फसल प्रबंधन तकनीकों की जानकारी दी.110-115 दिनों की अवधि वाली बिरसा मड़ुआ-3 (बीबीएम -10) किस्म की औसत उपज 28 से 30 क्विंटल/हेक्टेयर से कम लागत में अधिक लाभ लिए जाने पर बल दिया. वितरण में सहयोग क्षेत्र अधिदर्शक सुजीत कुमार ने किया. परियोजना अन्वेंशक डॉ. जेडए हैदर बताते हैं कि झारखंड का मौसम और जलवायु मड़ुआ की खेती के लिए काफी उपयुक्त है. इसकी खेती खरीफ मौसम में टांड़ भूमि में 30 जून तक की जाती है. इसकी खेती में कम सिंचाई, उर्वरक और लागत की जरूरत होती है. इसमें रोग और कीट का प्रकोप करीब नगण्य देखा गया है.

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