रांची: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आईसीएआर), नई दिल्ली के द्वारा पूरे देश में स्थित 12 शोध केंद्रों के माध्यम से क्षमतावान फसलों का बहु-परीक्षण, आकलन और विस्तारीकरण का कार्यक्रम चलाया जा रहा है. इन क्षमतावान फसलों में पंखिया सेम एक प्रमुख दलहनी सब्जी फसल है, जिसकी खेती प्रदेश के जनजातीय किसानों द्वारा आंगन – बाड़ी में अल्प या सीमित क्षेत्र में की जाती है. राज्य के खूंटी और देवघर जिले यह फसल प्रचलित पाई गई है. आईसीएआर के सौजन्य से बिरसा कृषि विश्वविद्यालय(बीएयू) के आनुवंशिकी और पौधा प्रजनन विभाग में क्षमतावान फसलों पर नेटवर्क शोध परियोजना चलाई जा रही है. इस परियोजना में चालू खरीफ मौसम में पंखिया सेम की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. इसके अधीन बीएयू अधीन राज्य के 16 जिलों में संचालित कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके)के माध्यम से किसानों के खेत में पंखिया सेम का प्रत्यक्षण कराया जाएगा.
ये भी पढ़ें: शहीद कुंदन ओझा के पिता के छलके आंसू, कहा- देश के लिए अपने सभी बेटों को कर सकता हूं कुर्बान
परियोजना अन्वेंशक डॉ. जयलाल महतो ने बताया कि प्रत्येक केवीके को पंखिया सेम की खेती के विस्तारीकरण के लिए 8-8 किलो आरएमबी डब्लूबी – 1 किस्म का बीज वितरित किया गया. केवीके द्वारा प्रत्येक जिले के करीब 2 एकड़ भूमि में प्रत्यक्षण कराया जाएगा, ताकि जिला स्तर पर इस क्षमतावान फसल का क्षेत्र विस्तार किया जा सके. झारखंड में यह दलहनी सब्जी फसल लोकप्रिय नहीं है. शोध परिणामों से पता चला है कि राज्य के मैदानी भागों में खरीफ मौसम में अन्य सेम की तरह इसकी खेती लोकप्रिय हो सकती है.
डॉ. जयलाल महतो बताते हैं कि पंखिया सेम, जो सेम की एक ऐसी उत्कृष्ट प्रजाति है. जिसका फल, फूल, पत्ता, तना बीज के साथ जड़ भी खाया जाता है. खास बात यह कि इसमें फलियां फूल से पहले आती हैं. पंखिया सेम कोलेस्ट्राल घटाने में कारगर होने के साथ प्रोटीन और खनिज का अच्छा स्रोत है. एंटी आक्सीडेंट के साथ इसमें भरपूर प्रोटीन है.
वैज्ञानिकों का दावा है कि मधुमेह और कैंसर रोगियों के लिए भी यह लाभकारी है. इसकी देखभाल और लागत कम, जबकि पैदावार भरपूर होती है. पंखिया सेम एक अल्पदोहित दलहनी सब्जी है. कई गुणों के कारण इसे वंडर वेजिटेबल भी कहते हैं. यह इकलौती सब्जी है, जिसके हर भाग को खाया जा सकता है. इसकी उत्तर पूर्वी क्षेत्र और दक्षिण भारत के कुछ हिस्से में किचन गार्डेन में खेती की जाती है. इसकी पोषक महत्ता और आर्थिक लाभ को देखते हुए केंद्र में इस पर वृहद शोध किया जा रहा है और प्रदेश में इसके क्षेत्र विस्तार को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है. झारखंड राज्य में क्षमतावान फसलें ग्रामीण क्षेत्रों और आदिवासी समुदाय के पोषण सुरक्षा का सबसे सुगम माध्यम है. इन फसलों की खेती प्रदेश में गौण होती जा रही है, जबकि इनकी खेती से आदिवासी लोगों की आजीविका के साथ –साथ पोषण सुरक्षा को बढ़ावा दिया जा सकता है.