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रांचीः बीएयू के दल ने चान्हो प्रखंड का किया भ्रमण, किसानों को दी नई तकनीक से खेती की जानकारी

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Published : Sep 26, 2020, 4:00 PM IST

बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के एक दल को शुक्रवार को चान्हो प्रखंड का भ्रमण कर यहां लगवाई गई मक्का की फसल का निरीक्षण किया.इस दौरान किसानों को नई तकनीक से खेती की जानकारी दी.

BAU team visited Chanho block
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के एक दल को शुक्रवार को चान्हो प्रखंड का भ्रमण किया

रांचीः बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के एक दल को शुक्रवार को चान्हो प्रखंड में लगवाई गई मक्का की फसल का भ्रमण का किया. यहां किसानों को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की मक्का संबंधी अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना की जनजातीय उप योजना (टीएसपी) के तहत मक्का की नई किस्मों और उन्नत तकनीकों की जानकारी दी. इस दौरान कृषि वैज्ञानिकों ने अच्छी आमदनी के लिए किसानों ने बागवानी के साथ पशुपालन, मुर्गी, मधुमक्खी और मत्स्य पालन आदि की जानकारी दी और इन्हें अपनाने की सलाह दी.किसानों को फसल संरक्षण-संवर्धन और अधिक उपज प्राप्त करने के तरीके भी बताए.

चार गांवों में कराई जा रही नई तकनीक से खेती

टीएसपी योजना के तहत बीएयू मुख्यालय से लगभग 75 किलोमीटर दूर चान्हो प्रखंड के चार गांवों कंजगी, बेयासी, चुटीयो और कुल्लू में इस वर्ष 60 जनजातीय किसानों को विश्वविद्यालय की ओर से मक्का का उन्नत बीज, खाद और फसल संरक्षण के लिए कीटनाशक उपलब्ध कराया गया है. मक्का की इस खेती के लाभ दूसरे किसानों को बताने के लिए एक दल को भ्रमण कराया गया. इस दौरान कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि झारखंड की परिस्थितियों में सुवान कम्पोजिट-2 (बिरसा मक्का-3 के नाम से प्रस्तावित) तथा हाइब्रिड बीएयू एमएच-5 प्रभेदों के बीज दिए गए थे. इनकी उपज क्षमता 55 से 65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और परिपक्वता अवधि 90 से 105 दिन है. वैज्ञानिकों ने बताया कि बीएयू द्वारा इन गांवों में पिछले तीन वर्षों से टीएसपी परियोजना चलाई जा रही है.

ये भी पढ़ें-फुटपाथी दुकानदारों को लोन दिलाने में झारखंड ने कई पड़ोसी राज्यों को पछाड़ा, कैसे ले सकते हैं लाभ ?

प्रत्येक हेक्टेयर में 75 हजार का लाभ

किसानों के बीच समन्वय का काम देख रहे प्रगतिशील कृषक मनोज महतो तथा सोमरा महली, महेश उरांव और बिरसो उरांव ने बताया कि बीज, खाद, लेबर आदि सारे इनपुट पर अपना खर्च करने पर प्रति हेक्टेयर लागत 25 हजार रुपये आती है और उत्पादन लगभग एक लाख का होता है , यानी उन्नत प्रभेदों की वैज्ञानिक ढंग से खेती करने पर प्रति हेक्टेयर 75 हजार रुपये का लाभ हो जाता है. बीएयू की मुख्य वैज्ञानिक (मक्का) डॉ मणिगोपा चक्रवर्ती ने बताया कि वे पिछले 15 वर्षों से इस क्षेत्र में मक्का के प्रसार में लगी हुई हैं.

पंचायत भवन में चर्चा

बाद में बेयासी पंचायत के भवन में किसानों के साथ भ्रमणकारी दल की एक बैठक भी हुई, जिसमें बीएयू के वैज्ञानिकों ने उन्हें तकनीकी ज्ञान के लिए बीएयू और इसके कृषि विज्ञान केंद्र के सतत संपर्क में रहने की सलाह दी. राकेश उरांव, अरशद अंसारी और अल्फर्ड मिंज सहित क्षेत्र के लगभग 30 किसानों ने विचार-विमर्श में भाग लिया.

ये रहे शामिल

शुक्रवार के प्रक्षेत्र दिवस में डॉ चक्रवर्ती के अलावा बीएयू के निदेशक अनुसंधान डॉ. ए वदूद, निदेशक (बीज एवं प्रक्षेत्र) डॉ ऋषिपाल सिंह, एग्रोनोमी के प्रोफेसर आरआर उपासनी और पौधा रोग विभागाध्यक्ष सह कुलसचिव डॉ नरेन्द्र कुदादा भी शामिल हुए.

रांचीः बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के एक दल को शुक्रवार को चान्हो प्रखंड में लगवाई गई मक्का की फसल का भ्रमण का किया. यहां किसानों को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की मक्का संबंधी अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना की जनजातीय उप योजना (टीएसपी) के तहत मक्का की नई किस्मों और उन्नत तकनीकों की जानकारी दी. इस दौरान कृषि वैज्ञानिकों ने अच्छी आमदनी के लिए किसानों ने बागवानी के साथ पशुपालन, मुर्गी, मधुमक्खी और मत्स्य पालन आदि की जानकारी दी और इन्हें अपनाने की सलाह दी.किसानों को फसल संरक्षण-संवर्धन और अधिक उपज प्राप्त करने के तरीके भी बताए.

चार गांवों में कराई जा रही नई तकनीक से खेती

टीएसपी योजना के तहत बीएयू मुख्यालय से लगभग 75 किलोमीटर दूर चान्हो प्रखंड के चार गांवों कंजगी, बेयासी, चुटीयो और कुल्लू में इस वर्ष 60 जनजातीय किसानों को विश्वविद्यालय की ओर से मक्का का उन्नत बीज, खाद और फसल संरक्षण के लिए कीटनाशक उपलब्ध कराया गया है. मक्का की इस खेती के लाभ दूसरे किसानों को बताने के लिए एक दल को भ्रमण कराया गया. इस दौरान कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि झारखंड की परिस्थितियों में सुवान कम्पोजिट-2 (बिरसा मक्का-3 के नाम से प्रस्तावित) तथा हाइब्रिड बीएयू एमएच-5 प्रभेदों के बीज दिए गए थे. इनकी उपज क्षमता 55 से 65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और परिपक्वता अवधि 90 से 105 दिन है. वैज्ञानिकों ने बताया कि बीएयू द्वारा इन गांवों में पिछले तीन वर्षों से टीएसपी परियोजना चलाई जा रही है.

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प्रत्येक हेक्टेयर में 75 हजार का लाभ

किसानों के बीच समन्वय का काम देख रहे प्रगतिशील कृषक मनोज महतो तथा सोमरा महली, महेश उरांव और बिरसो उरांव ने बताया कि बीज, खाद, लेबर आदि सारे इनपुट पर अपना खर्च करने पर प्रति हेक्टेयर लागत 25 हजार रुपये आती है और उत्पादन लगभग एक लाख का होता है , यानी उन्नत प्रभेदों की वैज्ञानिक ढंग से खेती करने पर प्रति हेक्टेयर 75 हजार रुपये का लाभ हो जाता है. बीएयू की मुख्य वैज्ञानिक (मक्का) डॉ मणिगोपा चक्रवर्ती ने बताया कि वे पिछले 15 वर्षों से इस क्षेत्र में मक्का के प्रसार में लगी हुई हैं.

पंचायत भवन में चर्चा

बाद में बेयासी पंचायत के भवन में किसानों के साथ भ्रमणकारी दल की एक बैठक भी हुई, जिसमें बीएयू के वैज्ञानिकों ने उन्हें तकनीकी ज्ञान के लिए बीएयू और इसके कृषि विज्ञान केंद्र के सतत संपर्क में रहने की सलाह दी. राकेश उरांव, अरशद अंसारी और अल्फर्ड मिंज सहित क्षेत्र के लगभग 30 किसानों ने विचार-विमर्श में भाग लिया.

ये रहे शामिल

शुक्रवार के प्रक्षेत्र दिवस में डॉ चक्रवर्ती के अलावा बीएयू के निदेशक अनुसंधान डॉ. ए वदूद, निदेशक (बीज एवं प्रक्षेत्र) डॉ ऋषिपाल सिंह, एग्रोनोमी के प्रोफेसर आरआर उपासनी और पौधा रोग विभागाध्यक्ष सह कुलसचिव डॉ नरेन्द्र कुदादा भी शामिल हुए.

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