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रांची: BAU के डीन ने लोगों को दी पौधे लगाने की सलाह, कहा- मिलेगा बारिश का फायदा - Bau dean advised interested people to plant tree in ranchi

इस बार झारखंड में बारिश अच्छी हुई है.यहीं कारण है कि बिरसा कृषि विश्वविद्यालय ने विभिन्न प्रजातियों के पौधे लगाने के इच्छुक लोगों को सलाह दी है. उन्होंने कहा है कि जून के अंत तक सभी पौधे लगा लें. इससे पौधों को जड़ जमाने के लिए सितंबर-अक्टूबर तक पर्याप्त बारिश और नमी मिलेगी और उनकी बढ़वार तेजी से होगी.

BNU dean advised interested people to plant tree in ranchi
BAU के डीन ने इच्छुक लोगों को पौधे लगाने की दी सलाह
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Published : Jun 16, 2020, 8:25 PM IST

रांची: झारखंड में कई सालों बाद इस साल मानसून की बारिश समय पर हुई है, जिसके कारण बिरसा कृषि विश्वविद्यालय ने विभिन्न प्रजातियों के पौधे लगाने के इच्छुक लोगों को सलाह दी है. उन्होंने कहा है कि जून के अंत तक सभी पौधे लगा लें. इससे पौधों को जड़ जमाने के लिए सितंबर-अक्टूबर तक पर्याप्त बारिश और नमी मिलेगी और उनका विकास तेजी से होगा.

बीएयू के वानिकी संकाय के डीन डॉ एम एच सिद्दीकी ने बताया कि टिंबर (काष्ठ), ट्री आयल, औषधि, फल एवं सजावट के उद्देश्य से लगाए जाने वाले बड़े पेड़ और उनके प्रजातियों के पौधों की उम्र कम से कम 6 महीने और लंबाई कम से कम 9 इंच होनी चाहिए और इन्हें किसी विश्वसनीय नर्सरी से पौधे लेनी चाहिए ताकि गुणवत्तायुक्त पौधे मिल सकें. इन्हें लगाने के लिए डेढ़ फीट गहरा, डेढ़ फीट चौड़ा, और डेढ़ फीट लंबा गड्ढा बना लेना चाहिए और दीमक के प्रकोप वाले क्षेत्रों में दीमक नियंत्रित करने वाले रसायन का भी इस्तेमाल गड्ढों में करना चाहिए. मानसून में 50 मिलीमीटर बारिश हो जाने के बाद मिट्टी की नमी पौधा लगाने के लिए अनुकूल हो जाती है. झारखंड की मिट्टी एवं आबोहवा में काष्ठ वृक्षों में सागवान, शीशम, गम्हार, बीजा साल (पेसार), यूकेलिप्टस, काला शिरीष, सफेद शिरीष का प्रदर्शन बहुत अच्छा पाया गया है. इसी प्रकार प्राकृतिक खूबसूरती प्रदान करने वाली प्रजातियों में गुलमोहर, अमलतास, जकरंडा, पेल्टोफार्म, मौलश्री, कचनार आदि लगाया जा सकता है. तेल प्राप्ति के लिए नीम, महुआ, कुसुम, करंज उपयुक्त है. औषधीय प्रजातियों में हर्रे, बहेड़ा तथा फल के साथ-साथ टिंबर भी प्रदान करने वाली प्रजातियों में कटहल, जामुन आदि लगाया जा सकता है.

पढ़ें:इस मैदान से प्रधानमंत्री ने लोगों से की थी योग करने की अपील, अब हालत है बद से बदतर

डॉक्टर एमएच सिद्दीकी ने बताया कि टिंबर वाले पौधों को लगाते वक्त पौधा से पौधा और कतार से कतार के बीच की दूरी दो मीटर रखनी चाहिए. ताकि वह आपस में प्रतिस्पर्धा कर लंबाई में सीधे बढें. यदि किसान कृषि वानिकी के तहत अपने खेतों में या मेढ़ पर ये प्रजातियां लगा रहे हैं तो पौधों के बीच 4 मीटर की दूरी रखनी चाहिए ताकि आवश्यक कृषि कार्य करने या ट्रैक्टर के संचालन में कठिनाई नहीं हो. करंज और महुआ के बीच 10 मीटर की दूरी अनुशंसित है. सखुआ के वृक्षों के नीचे अभी काफी बीज गिरे हुए हैं, यदि उस बीज को भी सीधे जमीन में लगा देंगे तो पौधा उगकर बढ़ने लगेगा.

बीएयू के वानिकी संकाय की नर्सरी में शीशम, सागवान, सखुआ, गम्हार, महोगनी, गुलमोहर, जकरंडा, पेल्टोफार्म, अमलतास, मौलश्री, नीम, महुआ, कुसुम, कटहल, जामुन, पपीता, अमरूद, करंज, हर्रे बहेड़ा सहित 50 से अधिक प्रजातियों के पौधे उपलब्ध है, जिनकी कीमत 10 से 20 रुपये के बीच है. सफेद चंदन का पौधा 40 रुपये में उपलब्ध है.

रांची: झारखंड में कई सालों बाद इस साल मानसून की बारिश समय पर हुई है, जिसके कारण बिरसा कृषि विश्वविद्यालय ने विभिन्न प्रजातियों के पौधे लगाने के इच्छुक लोगों को सलाह दी है. उन्होंने कहा है कि जून के अंत तक सभी पौधे लगा लें. इससे पौधों को जड़ जमाने के लिए सितंबर-अक्टूबर तक पर्याप्त बारिश और नमी मिलेगी और उनका विकास तेजी से होगा.

बीएयू के वानिकी संकाय के डीन डॉ एम एच सिद्दीकी ने बताया कि टिंबर (काष्ठ), ट्री आयल, औषधि, फल एवं सजावट के उद्देश्य से लगाए जाने वाले बड़े पेड़ और उनके प्रजातियों के पौधों की उम्र कम से कम 6 महीने और लंबाई कम से कम 9 इंच होनी चाहिए और इन्हें किसी विश्वसनीय नर्सरी से पौधे लेनी चाहिए ताकि गुणवत्तायुक्त पौधे मिल सकें. इन्हें लगाने के लिए डेढ़ फीट गहरा, डेढ़ फीट चौड़ा, और डेढ़ फीट लंबा गड्ढा बना लेना चाहिए और दीमक के प्रकोप वाले क्षेत्रों में दीमक नियंत्रित करने वाले रसायन का भी इस्तेमाल गड्ढों में करना चाहिए. मानसून में 50 मिलीमीटर बारिश हो जाने के बाद मिट्टी की नमी पौधा लगाने के लिए अनुकूल हो जाती है. झारखंड की मिट्टी एवं आबोहवा में काष्ठ वृक्षों में सागवान, शीशम, गम्हार, बीजा साल (पेसार), यूकेलिप्टस, काला शिरीष, सफेद शिरीष का प्रदर्शन बहुत अच्छा पाया गया है. इसी प्रकार प्राकृतिक खूबसूरती प्रदान करने वाली प्रजातियों में गुलमोहर, अमलतास, जकरंडा, पेल्टोफार्म, मौलश्री, कचनार आदि लगाया जा सकता है. तेल प्राप्ति के लिए नीम, महुआ, कुसुम, करंज उपयुक्त है. औषधीय प्रजातियों में हर्रे, बहेड़ा तथा फल के साथ-साथ टिंबर भी प्रदान करने वाली प्रजातियों में कटहल, जामुन आदि लगाया जा सकता है.

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डॉक्टर एमएच सिद्दीकी ने बताया कि टिंबर वाले पौधों को लगाते वक्त पौधा से पौधा और कतार से कतार के बीच की दूरी दो मीटर रखनी चाहिए. ताकि वह आपस में प्रतिस्पर्धा कर लंबाई में सीधे बढें. यदि किसान कृषि वानिकी के तहत अपने खेतों में या मेढ़ पर ये प्रजातियां लगा रहे हैं तो पौधों के बीच 4 मीटर की दूरी रखनी चाहिए ताकि आवश्यक कृषि कार्य करने या ट्रैक्टर के संचालन में कठिनाई नहीं हो. करंज और महुआ के बीच 10 मीटर की दूरी अनुशंसित है. सखुआ के वृक्षों के नीचे अभी काफी बीज गिरे हुए हैं, यदि उस बीज को भी सीधे जमीन में लगा देंगे तो पौधा उगकर बढ़ने लगेगा.

बीएयू के वानिकी संकाय की नर्सरी में शीशम, सागवान, सखुआ, गम्हार, महोगनी, गुलमोहर, जकरंडा, पेल्टोफार्म, अमलतास, मौलश्री, नीम, महुआ, कुसुम, कटहल, जामुन, पपीता, अमरूद, करंज, हर्रे बहेड़ा सहित 50 से अधिक प्रजातियों के पौधे उपलब्ध है, जिनकी कीमत 10 से 20 रुपये के बीच है. सफेद चंदन का पौधा 40 रुपये में उपलब्ध है.

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