रांची/खूंटी: जहां कभी बंदूक की गोलियां गरजती थीं, वहां अब लाह की लहठी और चूड़ियां खनक रही हैं. कल तक जो महिलाएं मजदूरी करती थीं, बोलने से हिचकती थीं, अब मुनाफे और बेहतर भविष्य की बातें कर रही हैं. बदलाव के इस बयार को देखना है तो आपको नक्सल प्रभावित खूंटी के सिलादोन गांव में जाना होगा. जब हमारी टीम यहां के वन धन विकास केंद्र पर पहुंची तो यहां का नजारा देखने लायक था. अभी 300 महिलाएं इस समिति से जुड़कर काम कर रही हैं. एक बैच में तीस महिलाओं को 40 दिन की ट्रेनिंग मिलती है. बदले में हर दिन 300 रुपए भी मिलते हैं. 12 हजार रुपए जमा होने पर यही महिलाएं खुद लाह के प्रोडक्ट बनाकर सिलादोन सेंटर पर बेचती हैं. (Women becoming self reliant in Khunti)
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लाह से चूड़ियां बनाने की ट्रेनिंग ले रहीं आलोंदी गांव की रीता होरो ने बताया कि वह अपने परिवार के लिए कुछ करना चाहती हैं. गांव में काम का साधन नहीं है. गांव-घर में मजदूरी का काम करते थे. अब एक दिन की ट्रेनिंग के बदले 300 रुपए मिल रहे हैं. ट्रेनिंग लेकर अपना कारोबार शुरू करना चाहती हैं. सिलादोन गांव की अगनी देवी ने बताया कि वह आगे बढ़ना चाहती हैं. खेती बाड़ी करती थी. उन्होंने कहा कि अब ट्रेनिंग लेकर चूड़ी बनाना सीखेंगे और आगे बढ़ेंगे.
तेलम गांव की बसंती देवी ट्रेनिंग लेने आई हैं. अपना बिजनेस करना चाहती हैं. उन्होंने कहा कि घर में कुछ नहीं कर पाते थे. पहले बोल भी नहीं पाते थे. अब समिति से जुड़कर बोलना सीख गये हैं. हुंड्रा गांव की रोजीनी खातून भी चूड़ी बनाना सीख रही हैं. सिलादोन में उनका मायका है. जब समिति के बारे में जानकारी मिली तो यहां आ पहुंचीं. उन्होंने कहा कि लाह को पहले आग में पिघलाते हैं. फिर बेलते हैं. गरम करके रिंग डालते हैं. उन्होंने कहा कि बच्चों के लिए कुछ करना है. आगे बढ़ना है.
सिलादोन वन धन विकास केंद्र (Siladon Van Dhan Vikas Kendra) का संचालन कर रहीं रीणा कुजूर ने बताया कि लागत के हिसाब से रेट तय करते हैं. चूड़ियों का सेट डेढ़ सौ रुपए से लेकर एक हजार रुपए तक का तैयार होता है. अभी दिल्ली हाट की तैयारी हो रही है. दिल्ली, जयपुर, इंदौर, ऊटी, राउरकेला, भुवनेश्वर जैसे शहरों में स्टॉल लगा चुकी हैं. जो कमाई होती है उससे दूसरी महिलाओं द्वारा बनाई गई चूड़ियां खरीदती हैं. दूसरे शहरों में लाह की चूड़ियां सबसे ज्यादा बिकती है. उन्होंने कहा कि हमारे यहां बनी चूड़ियों को लोग पसंद कर रहे हैं.
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बदलाव की ओर पहला कदम बढ़ाने की हिम्मत गांव के महावीर उरांव ने दिखायी. महावीर को मालूम था कि पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा लाह का उत्पादन झारखंड में होता है. ऊपर से खूंटी का उसमिला लाह क्वालिटी में सबसे अव्वल है. यहां के लाह की सबसे ज्यादा डिमांड राजस्थान के जयपुर में है. वहां घर-घर लाह की लहठी और चूडियां बनती हैं. राजस्थान में लाह की चूड़ियों का कारोबार करीब दो हजार करोड़ का है. उन्होंने कहा कि हमारे राज्य के लाह से चूड़ियां बनाकर राजस्थान आगे बढ़ रहा है तो फिर हम क्यों नहीं. उनके मुताबिक अगर झारखंड के किसान लाह की खेती करेंगे तो पारंपरिक खेती की तुलना में लाखों कमा सकते हैं. उनके इस पहल को केंद्र सरकार के ट्राइबल डिपार्टमेंट का साथ मिला. केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने 3 जनवरी 2021 को सिलादोन वन धन विकास केंद्र की स्थापना की थी. एक छोटी सी अवधि में ही यह सेंटर करीब 2 करोड़ से ज्यादा का ट्राजेक्शन कर चुका है. लाह उत्पादन करने वाले किसानों को बाजार के चक्कर लगाने नहीं पड़ते हैं. यहां ट्रेनिंग लेने वाली महिलाएं राज्य के अलग-अलग हिस्सों में जाकर दूसरी महिलाओं को ट्रेनिंग देती हैं. इसके बदले उन्हें पैसे मिलते हैं.
इस ट्रेनिंग सेंटर की शुरुआत साल 2011-12 में ही हुई थी. तब ट्राईफेड यानी ट्राइबल कोऑपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड ने राज्य सरकार के जनजातीय विभाग के साथ मिलकर ट्रेनिंग दिया करती थी. अब केंद्र सरकार के टेक्सटाइल मंत्रालय के डेवलपमेंट कमिशनर हैंडीक्राफ्ट की तरफ से समर्थ योजना के तहत ट्रेनिंग दी जा रही है. यहां से बने उत्पाद की मार्केटिंग झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसायटी करती है. अबतक यहां से 1200 से ज्यादा महिलाएं ट्रेनिंग ले चुकी हैं. यहां की महिलाओं ने बदलाव की तरफ कदम बढ़ा दिया है. अगर जयपुर की तहत झारखंड के हर गांव, हर घर की महिलाएं इसकी अहमियत समझ जाएंगी तो सोचिए कि झारखंड कहां पहुंच जाएगा.