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ऑनलाइन पढ़ाई जारी रखना सरकारी स्कूलों में है मुश्किल, शिक्षा विभाग के लिए कठिन है डगर - रांची के सरकारी स्कूलोें में ऑनलाइन शिक्षा की स्थिति दयनीय

कोरोना महामारी के बाद हुए लॉकडाउन ने स्कूलों और कॉलेजों को भी ठप कर दिया. बच्चों की शिक्षा का एकमात्र रास्ता ऑनलाइन क्लास हो गए. लेकिन भारत के सरकारी स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई कितना संभव है. इसे जानने के लिए पढ़ें ये रिपोर्ट.

bad condition of online eduction in ranchi
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Published : Sep 22, 2020, 7:54 PM IST

रांची: अनलॉक- 4 के तहत कुछ हद तक सीनियर विद्यार्थियों के लिए स्कूल खोले जाने की कवायद शुरू की जा रही है. लेकिन अभी भी 90 फीसदी बच्चों को अगले सेशन तक ऑनलाइन ही पठन-पाठन पर निर्भर रहना होगा. क्योंकि कोरोना महामारी की रोकथाम को लेकर फिलहाल कोई वैकल्पिक रास्ता नहीं दिख रहा है.

देखें स्पेशल स्टोरी

80 फीसदी अभिभावक स्कूल खोलने के पक्ष में नहीं

सुरक्षात्मक कदम उठाते हुए ही धीरे धीरे सभी क्षेत्रों में छूट दी जा सकती है. हालांकि, पठन-पाठन और स्कूल खोले जाने को लेकर अभिभावकों ने अपनी राय दी है. 80 फीसदी अभिभावक फिलहाल स्कूल खोले जाने के पक्ष में नहीं हैं. कोरोना से पूरी तरह सुरक्षित होने के बाद ही अपने छोटे बच्चों को स्कूल भेजने के फेवर में अधिकतर अभिभावक हैं. लेकिन क्या सरकारी स्कूलों के बच्चों तक ऑनलाइन पठन-पाठन की सामग्री पहुंच रही है. तो इसका जवाब न ही मिलेगा, क्योंकि लक्ष्य के अनुपात में राज्य सरकार सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों तक ऑनलाइन तरीके से पहुंच ही नहीं पा रही है.

ये भी पढ़ें- हेमंत सरकार को नहीं है झारखंडी जनता की चिंता, महाधिवक्ता हाई कोर्ट में नहीं रख पाए अपना पक्ष: बाबूलाल मरांडी

गरीब तबके के छात्रों के अभिभावकों के पास नहीं है स्मार्टफोन

सरकारी स्कूल में पढ़ाई करने वाले छात्र गरीब तबके के हैं. ऐसे में शिक्षा के ऑनलाइन या डिजिटल मोड का अगले चरण तक उपयोग करना विद्यार्थियों के लिए लाभदायक साबित नहीं हो रहा है. स्कूल प्रणाली डिजिटल तैयार नहीं दिख रही है. डिजिटल तरीके से सरकारी स्कूलों के बच्चों को पढ़ाना राज्य सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रही है. इंटरनेट, टेलीविजन, स्मार्टफोन की सुविधा ऐसे छात्रों के पास है ही नहीं, तो उन तक ऑनलाइन तरीके से पठन-पाठन सामग्री कैसे पहुंचाई जा सकती है. यह एक बड़ा सवाल है.

कई उपाय किए गए लेकिन सब असफल

हालांकि, शिक्षा विभाग की ओर से सरकारी स्कूलों के बच्चों तक पठन-पाठन सामग्री पहुंचाने को लेकर कई उपाय किए जा रहे हैं. लेकिन इसमें सफलता नहीं मिल पा रही है. एक बार फिर शिक्षकों को विषयवार व्हाट्सएप ग्रुप बनाने को लेकर निर्देश दिया गया है और इसके तहत कई विषयों के शिक्षकों ने व्हाट्सएप ग्रुप बनाकर बच्चों को जोड़ा भी है. डीजी साथ के जरिए भेजे जाने वाले कंटेंट या फिर पाठ्यपुस्तक में हो रही समस्या से संबंधित प्रश्न के जरिए इस ग्रुप में शिक्षकों से रूबरू किया जा सकता है. लेकिन सवाल फिर वही है कि कितने बच्चों के पास स्मार्टफोन है और कितने बच्चों को इस व्हाट्सएप ग्रुप और ऑनलाइन पठन-पाठन का लाभ मिल पायेगा.

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आंकड़ों के मुताबिक राज्य सरकार 46 लाख छात्र-छात्राओं में से करीब 12 लाख छात्र-छात्राओं को ही डिजिटल कंटेंट उपलब्ध करा रही है. इनमें से करीब 6 लाख छात्र- छात्रा भी भेजे जा रहे कंटेंट और वीडियो को भी पूरा नहीं देख पा रहे हैं. कहीं नेटवर्क की कमी है, तो कहीं अभिभावकों के पास स्मार्टफोन है ही नहीं.

दूरदर्शन के जरिए पठन-पाठन का प्रयास भी असफल

इसके अलावे दूरदर्शन के जरिए भी विद्यार्थियों तक ऑनलाइन कंटेंट पहुंचाने की कोशिश की जारी है. फिलहाल वह भी नाकाफी साबित हो रहा है. कुल मिलाकर कहें तो सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों के लिए ऑनलाइन पठन-पाठन की व्यवस्था पूरी तरह असफल ही साबित हो रही है. सरकार की ओर से संचालित डीजी-साथ ऑनलाइन व्हाट्सएप ग्रुप भी नाम मात्र है. इसकी समीक्षा लगातार की जा रही है. लेकिन अब तक इस दिशा में कोई हल नहीं निकाला जा सका है. विभाग के अधिकारियों की माने तो बच्चों और शिक्षकों को कनेक्ट करने के लिए कई प्रक्रियाएं अपनाई जा रही है. डीजी-साथ के जरिए कंटेंट उपलब्ध कराए जा रहे हैं. लेकिन शत प्रतिशत छात्रों तक इसका लाभ नहीं मिल रहा है. इसलिए कोई वैकल्पिक रास्ता निकालने की कोशिश हो रही है.

रांची में 28 फीसदी बच्चे ऑनलाइन पठन-पाठन का लाभ ले रहे हैं

अन्य जिलों के साथ-साथ झारखंड की राजधानी रांची में भी ऑनलाइन पठन-पाठन की हालत सरकारी स्कूलों में बेहतर नहीं है. डीईओ रांची ने आंकड़ों के आधार पर जानकारी दी है कि विद्यालय में बच्चों और अभिभावकों के साथ स्मार्टफोन कनेक्टिविटी आधारित व्हाट्सएप ग्रुप फॉर्मेशन में रांची का स्थान औसत है. जबकि रांची राजधानी है. शहरी क्षेत्र में ही अधिकतर सरकारी स्कूल है. इसके बावजूद मात्र 28 फीसदी बच्चे ही व्हाट्सएप ग्रुप में जुड़ पाए हैं. दूरदर्शन पर प्रसारित शैक्षणिक प्रसारण में भी जिले के बच्चों का रुझान और दिलचस्पी नहीं दिख रही है. dg-7 पठन-पाठन पद्धति को भी गंभीरता से नहीं लिया गया रहा है और यह बात अभिभावक शिक्षक और खुद अधिकारियों ने भी कहा है.

रांची: अनलॉक- 4 के तहत कुछ हद तक सीनियर विद्यार्थियों के लिए स्कूल खोले जाने की कवायद शुरू की जा रही है. लेकिन अभी भी 90 फीसदी बच्चों को अगले सेशन तक ऑनलाइन ही पठन-पाठन पर निर्भर रहना होगा. क्योंकि कोरोना महामारी की रोकथाम को लेकर फिलहाल कोई वैकल्पिक रास्ता नहीं दिख रहा है.

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80 फीसदी अभिभावक स्कूल खोलने के पक्ष में नहीं

सुरक्षात्मक कदम उठाते हुए ही धीरे धीरे सभी क्षेत्रों में छूट दी जा सकती है. हालांकि, पठन-पाठन और स्कूल खोले जाने को लेकर अभिभावकों ने अपनी राय दी है. 80 फीसदी अभिभावक फिलहाल स्कूल खोले जाने के पक्ष में नहीं हैं. कोरोना से पूरी तरह सुरक्षित होने के बाद ही अपने छोटे बच्चों को स्कूल भेजने के फेवर में अधिकतर अभिभावक हैं. लेकिन क्या सरकारी स्कूलों के बच्चों तक ऑनलाइन पठन-पाठन की सामग्री पहुंच रही है. तो इसका जवाब न ही मिलेगा, क्योंकि लक्ष्य के अनुपात में राज्य सरकार सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों तक ऑनलाइन तरीके से पहुंच ही नहीं पा रही है.

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गरीब तबके के छात्रों के अभिभावकों के पास नहीं है स्मार्टफोन

सरकारी स्कूल में पढ़ाई करने वाले छात्र गरीब तबके के हैं. ऐसे में शिक्षा के ऑनलाइन या डिजिटल मोड का अगले चरण तक उपयोग करना विद्यार्थियों के लिए लाभदायक साबित नहीं हो रहा है. स्कूल प्रणाली डिजिटल तैयार नहीं दिख रही है. डिजिटल तरीके से सरकारी स्कूलों के बच्चों को पढ़ाना राज्य सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रही है. इंटरनेट, टेलीविजन, स्मार्टफोन की सुविधा ऐसे छात्रों के पास है ही नहीं, तो उन तक ऑनलाइन तरीके से पठन-पाठन सामग्री कैसे पहुंचाई जा सकती है. यह एक बड़ा सवाल है.

कई उपाय किए गए लेकिन सब असफल

हालांकि, शिक्षा विभाग की ओर से सरकारी स्कूलों के बच्चों तक पठन-पाठन सामग्री पहुंचाने को लेकर कई उपाय किए जा रहे हैं. लेकिन इसमें सफलता नहीं मिल पा रही है. एक बार फिर शिक्षकों को विषयवार व्हाट्सएप ग्रुप बनाने को लेकर निर्देश दिया गया है और इसके तहत कई विषयों के शिक्षकों ने व्हाट्सएप ग्रुप बनाकर बच्चों को जोड़ा भी है. डीजी साथ के जरिए भेजे जाने वाले कंटेंट या फिर पाठ्यपुस्तक में हो रही समस्या से संबंधित प्रश्न के जरिए इस ग्रुप में शिक्षकों से रूबरू किया जा सकता है. लेकिन सवाल फिर वही है कि कितने बच्चों के पास स्मार्टफोन है और कितने बच्चों को इस व्हाट्सएप ग्रुप और ऑनलाइन पठन-पाठन का लाभ मिल पायेगा.

ये भी पढ़ें- हेमंत सरकार को नहीं है झारखंडी जनता की चिंता, महाधिवक्ता हाई कोर्ट में नहीं रख पाए अपना पक्ष: बाबूलाल मरांडी

आंकड़ों के मुताबिक राज्य सरकार 46 लाख छात्र-छात्राओं में से करीब 12 लाख छात्र-छात्राओं को ही डिजिटल कंटेंट उपलब्ध करा रही है. इनमें से करीब 6 लाख छात्र- छात्रा भी भेजे जा रहे कंटेंट और वीडियो को भी पूरा नहीं देख पा रहे हैं. कहीं नेटवर्क की कमी है, तो कहीं अभिभावकों के पास स्मार्टफोन है ही नहीं.

दूरदर्शन के जरिए पठन-पाठन का प्रयास भी असफल

इसके अलावे दूरदर्शन के जरिए भी विद्यार्थियों तक ऑनलाइन कंटेंट पहुंचाने की कोशिश की जारी है. फिलहाल वह भी नाकाफी साबित हो रहा है. कुल मिलाकर कहें तो सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों के लिए ऑनलाइन पठन-पाठन की व्यवस्था पूरी तरह असफल ही साबित हो रही है. सरकार की ओर से संचालित डीजी-साथ ऑनलाइन व्हाट्सएप ग्रुप भी नाम मात्र है. इसकी समीक्षा लगातार की जा रही है. लेकिन अब तक इस दिशा में कोई हल नहीं निकाला जा सका है. विभाग के अधिकारियों की माने तो बच्चों और शिक्षकों को कनेक्ट करने के लिए कई प्रक्रियाएं अपनाई जा रही है. डीजी-साथ के जरिए कंटेंट उपलब्ध कराए जा रहे हैं. लेकिन शत प्रतिशत छात्रों तक इसका लाभ नहीं मिल रहा है. इसलिए कोई वैकल्पिक रास्ता निकालने की कोशिश हो रही है.

रांची में 28 फीसदी बच्चे ऑनलाइन पठन-पाठन का लाभ ले रहे हैं

अन्य जिलों के साथ-साथ झारखंड की राजधानी रांची में भी ऑनलाइन पठन-पाठन की हालत सरकारी स्कूलों में बेहतर नहीं है. डीईओ रांची ने आंकड़ों के आधार पर जानकारी दी है कि विद्यालय में बच्चों और अभिभावकों के साथ स्मार्टफोन कनेक्टिविटी आधारित व्हाट्सएप ग्रुप फॉर्मेशन में रांची का स्थान औसत है. जबकि रांची राजधानी है. शहरी क्षेत्र में ही अधिकतर सरकारी स्कूल है. इसके बावजूद मात्र 28 फीसदी बच्चे ही व्हाट्सएप ग्रुप में जुड़ पाए हैं. दूरदर्शन पर प्रसारित शैक्षणिक प्रसारण में भी जिले के बच्चों का रुझान और दिलचस्पी नहीं दिख रही है. dg-7 पठन-पाठन पद्धति को भी गंभीरता से नहीं लिया गया रहा है और यह बात अभिभावक शिक्षक और खुद अधिकारियों ने भी कहा है.

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