रांचीः देश का इतिहास ठीक से नहीं लिखा गया, अंग्रेजों के साथ मिलकर अपने ही कुछ लोगों ने तथ्यों को छिपाया. इस देश का इतिहास, स्वर्णिम रहा है लेकिन कई पीढ़ियों को इस देश के स्वर्णिम इतिहास के बारे में पता ही नहीं चल पाया क्योंकि देश के कुछ चुनिंदा लोगों ने देश को गुमराह किया. यह बातें बुधवार को झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने कहीं. वे राजधानी रांची के डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र और संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से आजादी का अमृत महोत्सव के तहत आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे.
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आजादी का अमृत महोत्सव कार्यक्रम में राज्यपाल रमेश बैस ने कहा कि अतीत की घटनाओं से अवगत होकर स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों से सबको प्रेरणा लेने की जरूरत है. इतिहास में वास्तविकता आनी चाहिए. शोधकर्ता अपने शोध में इस दिशा में ध्यान दें.
आजादी की रणभेरी प्रदर्शनीः बता दें कि आजादी के 75वें साल को लेकर आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है. इसको लेकर देश भर में कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. देश के शिक्षण संस्थानों से लेकर तमाम सरकारी विभाग इसको लेकर आयोजन कर रहे हैं. इसी कड़ी में राजधानी रांची के डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय में कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस दौरान मुंडारी भाषा की प्राचीनता और प्रासंगिकता विषय पर परिचर्चा का भी आयोजन हुआ. डीएसपीएमयू परिसर में आजादी की रणभेरी प्रदर्शनी भी लगाई गई.
मुंडारी भाषा की उत्पत्ति पर व्याख्यानः आजादी की रणभेरी प्रदर्शनी में 1757 से 18 57 की क्रांति का वर्णन किया गया है. जिसका लाभ शोधार्थियों और विद्यार्थियों को मिल रहा है. इस कार्यक्रम के दौरान मुंडारी भाषा की उत्पत्ति देश और राज्य में इसकी स्थिति और विभिन्न प्रासंगिकता पर वक्ताओं ने चर्चा की. जिसमें डॉक्टर आनंदवर्धन ने आजादी के मायने, आजादी के बाद देश में भाषाओं की हालत और विभिन्न विषय वस्तुओं को लेकर विद्यार्थी और शिक्षकों से अनुभव साझा किए.
यह है कार्यक्रम का मकसदः बताते चलें कि आजादी का अमृत महोत्सव का अर्थ नए विचारों का अमृत है .यह उत्सव है जिसका अर्थ स्वतंत्रता की ऊर्जा का संचार सभी लोगों में करना है. इसका उद्देश्य देशभर में एक अभियान चलाकर देश की आजादी के लिए स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों द्वारा दिए गए बलिदान और उनके योगदान से सब को अवगत कराना है. देशभक्ति की भावना जागृत करने के साथ-साथ गुमनाम शहीदों की गाथाएं जन-जन तक पहुंचे, इसके लिए प्रयास करना है.