रांचीः झारखंड में आयुष्मान भारत योजना के तहत शामिल बीमारियों की सूची में से झारखंड सरकार ने मलेरिया, डायरिया के साथ बार-बार होने वाली उल्टी, डिसेंट्री, सामान्य डायरिया और हाइड्रोसील का इलाज अब सिर्फ सरकारी अस्पताल में किया जाएगा. इससे पहले 11 दिसंबर 2020 को सरकार ने तीव्र ज्वर की बीमारी, पीयूओ, एक्यूट गैस्ट्रोएन्टेराइटिस, यूटीआई और आंतों का फीवर, प्रसव को निजी अस्पतालों में इलाज की जगह सिर्फ सरकारी अस्पतालों में इलाज का आदेश निर्गत किया था.
क्यों सरकार को लेना पड़ा ऐसा फैसला: झारखंड में मलेरिया सहित कई बीमारियों का इलाज सिर्फ सरकारी अस्पतालों के लिए आरक्षित करने की वजह यह बताई गई है कि 23 सितंबर से 20 दिसंबर 2022 तक आंकड़े का अध्ययन के बाद विभाग ने पाया कि मलेरिया, डायरिया के साथ बार-बार होने वाली उल्टी, डिसेंट्री, सामान्य डायरिया और हाइड्रोसील के इलाज का निजी अस्पताल और सरकारी अस्पतालों के अनुपात 82-18 है. वहीं सरकारी अस्पताल जितना दावा करते हैं उसकी दोगुनी राशि का दावा निजी अस्पताल संचालक करते हैं.
किस बीमारी में कितना क्लेम जानें स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े: मलेरियाः 23 सितंबर से 20 दिसंबर 2022 तक आंकड़े के अनुसार निजी अस्पतालों ने 21237 मलेरिया के मामले क्लेम किया. जिसके तहत उन्होंने आयुष्मान भारत मुख्यमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत 15 करोड़, 10 लाख 47 लाख 744 रुपए का दावा किया. वहीं इस दौरान सरकारी अस्पतालों ने मलेरिया के 2562 रोगियों के इलाज के लिए एक करोड़ 71 लाख 03 हजार 886 रुपए का दावा किया.
बार-बार उल्टी होना: इस बीमारी को भी आयुष्मान भारत मुख्यमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत सिर्फ सरकारी अस्पतालों के लिए आरक्षित किया या है. इसकी वजह यह है कि 23 सितंबर से 20 दिसंबर 2022 तक आंकड़े के अनुसार निजी अस्पतालों ने 16282 लाभुकों का इलाज के लिए नौ करोड़ 92 लाख 73 हजार 337 रुपए का दावा किया. जबकि सरकारी अस्पताल ने इस दौरान 8134 रोगियों के इलाज के लिए दो करोड़ 66 लाख 71 हजार 559 रुपए का दावा किया है.
डिसेंट्री: 23 सितंबर से 20 दिसंबर 2022 तक आंकड़े के अनुसार निजी अस्पतालों ने 10963 आयुष्मान लाभुकों के डिसेंट्री के इलाज के लिए छह करोड़ 62 लाख 11 हजार 527 रुपए का दावा किया है. जबकि इसी समयावधि में सरकारी अस्पतालों ने सिर्फ 4853 लाभुकों के डिसेंट्री के इलाज में एक करोड़ 97 लाख 68 हजार 378 रुपए का दावा किया है.
डायरिया: 23 सितंबर से 20 दिसंबर 2022 तक आंकड़े के अनुसार निजी अस्पतालों ने डायरिया के 711 मरीजों के इलाज के लिए 47 लाख 45 हजार 384 रुपए का दावा किया है. वहीं सरकारी अस्पतालों में 608 लाभुकों के इलाज के लिए 20 लाख 05 हजार 746 रुपए का दावा किया है.
हाइड्रोसील का इलाजः स्वास्थ्य विभाग के विश्लेषण के अनुसार हाइड्रोसील के इलाज के लिए निजी अस्पतालों ने 32918 रोगियों के इलाज के दावे के रूप में 38 करोड़ 98 लाख सात हजार 94 रुपए का क्लेम किया. वहीं सरकारी अस्पतालों ने सिर्फ 2465 लाभुकों के इलाज के दावे के रूप में दो करोड़ 59 लाख 27 हजार 277 रुपए का दावा किया.
अनावश्यक रूप से रोगियों को रखा जाता है निजी अस्पतालों मेंः निजी असपतालों और सरकारी अस्पतालों में इन उपर्युक्त बीमारियों के खर्च में अंतर देख कर स्वास्थ्य विभाग को यह लगता है कि राज्य में निजी अस्पतालों के द्वारा अनावश्यक रूप से आयुष्मान भारत के रोगियों को अस्पताल में रखा जाता है और इन बीमारियों से प्रभावित मरीजों को परेशान किया जा रहा है. इन बीमारियों से ग्रस्त बच्चों का इलाज आयुष्मान के तहत सरकारी के साथ-साथ निजी अस्पतालों में जारी रहेगा.
क्या होगा इसका नुकसान: जिन पांच बीमारियों को निजी अस्पतालों की जगह आयुष्मान भारत योजना के लिए सिर्फ सरकारी अस्पतालों के लिए किया गया है उसका नुकसान यह होगा कि सरकारी अस्पतालों में जिला मुख्यालय छोड़ अन्य दूरस्थ जगहों पर सर्जन की कमी है तो संसाधनों का भी घोर अभाव है. ऐसे में मलेरिया, हाइड्रोसील जैसी बीमारियों के लिए भी इलाज के लिए आयुष्मान के लाभुकों को उन सरकारी अस्पतालों पर निर्भरता होगी, जहां सभी तरह की सुविधा उपलब्ध हो.