रांची: झारखंड में पशु चिकित्सकों की घोर कमी है. राज्य में पहले से पशुओं की संख्या के अनुपात में पशु चिकित्सकों के सृजित पद काफी कम है. उसमें से भी कुल सृजित 778 पदों में करीब 378 पद खाली पड़े हैं. राज्य में पशुओं और कुक्कुटों की संख्या के हिसाब से कम से कम 2800 पशु चिकित्सक की जरूरत है. पशु चिकित्सकों की घोर कमी की वजह से राज्य के अर्द्धशहरी और ग्रामीण इलाकों में पशुओं का इलाज झोलाछाप वेटनरी डॉक्टरों के भरोसे है. जिसके चक्कर में पड़कर पशुपालकों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है. बीमार पशुओं के स्वास्थ्य और खराब होने और जान जाने का खतरा अलग से रहता है. जानकारों के मुताबिक झारखंड में करीब 3,000 से ज्यादा झोलाछाप डॉक्टर हैं.
रांची के एक पशुपालक मोहनदास कहते हैं कि पिछले दिनों उनकी एक गाय बीमार हो गयी, उन्होंने जिस जानवर के डॉक्टर को बुलाया उसके इलाज से गाय और बीमार हो गयी और अंत में उसकी जान चली गई. इलाज में पैसा खर्च हुआ वह अलग. उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा कोई व्यवस्था नहीं होने की वजह से ज्यादातर पशुपालक निजी डॉक्टरों से पशुओं का इलाज कराते हैं. अब वह कैसा डॉक्टर होता है, यह हमें नहीं पता होता है.
2800 वेटनरी डॉक्टर्स की है जरूरत: राज्य में दुधारू पशुओं, भेड़-बकरियों और कुक्कुटों के स्वास्थ्य की रक्षा करने वाले पशुपालन विभाग की स्थिति ठीक नहीं है. 20वीं पशु गणना के अनुसार, झारखंड में 01 करोड़ 40 लाख 01 हजार 42 कैटल यूनिट हैं. नेशनल एग्रीकल्चर कमीशन(NAC) 1976 के अनुसार, हर 5,000 कैटल यूनिट पर एक पशु चिकित्सक जरूर होना चाहिए. इस तरह राज्य में लगभग 28,00 पशु चिकित्सकों की जरूरत है.
झारखंड में पशुओं की संख्या: 2017 की पशु गणना के अनुसार राज्य में दुधारू गौवंशीय पशु (कैटल) की संख्या 111.88 लाख है. इसी तरह राज्य में भैंस की संख्या 13.50 लाख, भेड़ की संख्या 6.41 लाख, बकरियों की संख्या 91.21 लाख, सुकर की संख्या 12.76 लाख, कुक्कुटों की कुल संख्या 230.32 लाख और बत्तख और अन्य की संख्या 16.93 लाख है.
3000 से अधिक झोलाछाप पशु चिकित्सक-डॉ शिवा काशी: झारखंड राज्य पशु चिकित्सक संघ के महासचिव डॉ शिवा काशी ने कहा कि राज्य में प्रारंभिक आंकड़े के अनुसार, तीन हजार से अधिक झोलाछाप डॉक्टर्स इलाज के नाम पर पशुओं के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे हैं. शेड्यूल H की दवाओं का धड़ल्ले से उपयोग और कई प्रतिबंधित दवाओं के उपयोग से पशुओं में MDR यानी मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट बढ़ रहा है. इसके कारण जरूरत के समय इनपर दवाओं खासकर एंटीबायोटिक्स का असर नहीं होता है. डॉ शिवा काशी कहते हैं कि ऐसे डॉक्टरों पर कार्रवाई के लिए विभागीय सचिव तक को पत्र लिखा गया है.
पशु चिकित्सा परिषद खुद है लाचार: झारखंड में झोलाछाप पशु चिकित्सकों पर लगाम लगाने की जिम्मेवारी झारखंड राज्य पशु चिकित्सा परिषद की है. हाल के दिनों में रांची के पेट सेंटर प्रभारी द्वारा एक झोलाछाप डॉक्टर की शिकायत करने की बात स्वीकारते हुए झारखंड पशु चिकित्सा परिषद के रजिस्ट्रार डॉक्टर बृजेश कुमार अपनी समस्या भी मीडिया के सामने सार्वजनिक करते हैं. डॉक्टर बृजेश कुमार कहते हैं कि झारखंड वेटरनरी काउंसिल के लिए 14 पद सृजित हैं. लेकिन यहां रजिस्टार के रूप में सिर्फ वे अकेले ही हैं. उनके अलावा एक लेखापाल और एक फोर्थ ग्रेड स्टाफ है. ऐसे में 14 लोगों का काम ये 3 लोग कैसे कर सकते हैं.