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पनसारी की दया पर चल रहै हैं आंगनबाड़ी केंद्र, गर्भवती और बच्चों के पोषाहार को लेकर जद्दोजहद कर रही सेविका-सहायिका

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Published : Jan 6, 2023, 2:29 PM IST

झारखंड में आंगनबाड़ी केंद्र (Anganwadi Center in Jharkhand) पर नियमित रूप से अनाज नहीं पहुंच रहा है. इससे सेविका और सहायिकाओं को दुकानदारों से उधार लेकर काम चलाना पड़ता है. यह स्थिति एक दो आंगनबाड़ी केंद्र की नहीं हैं, बल्कि अधिकतर केंद्रों की है.

GROCERY SHOPS in Jharkhand
पनसारी की दया पर चल रहै हैं आंगनबाड़ी केंद्र

रांचीः झारखंड को न सिर्फ खनिज संपदा और प्राकृतिक खूबसूरती बल्कि कुपोषण की वजह से भी जाना जाता है. इस राज्य को कुपोषण मुक्त करने के लिए कई योजनाओं चल रही हैं. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि कुपोषण को दूर करने में अहम भूमिका निभाने वाले आंगनबाड़ी केंद्रों की स्थिति खुद कुपोषित जैसी हो गई है. तमाम आंगनबाड़ी केंद्र (Anganwadi Center in Jharkhand) पनसारी यानी किराना दुकानदारों की दया पर चल रहा हैं. सेविका और सहायिकाओं को अनाज के लिए मिन्नतें करनी पड़ती है. सभी आंगनबाड़ी केंद्रों का बिना लिखित वाला उधारी खाता चल रहा है. जब दुकानदार हाथ खड़े कर देता है तो सेविकाओं को अपने घर से पैसे लगाने पड़ते हैं.

यह भी पढ़ेंः यहां नए कलेवर में दिखेंगे आंगनबाड़ी स्कूल, 'स्मार्ट' बनेंगे बच्चे

राज्य में 38 हजार 432 आंगनबाड़ी केंद्र हैं. इनमें करीब 3 हजार लघु आंगनबाड़ी केंद्रों में सहायिका के अलावा अन्य सभी केंद्रों में सेविका और सहायिका सेवारत हैं. इन केंद्रों की बदौलत करीब 7 लाख गर्भवती महिलाएं और 17 लाख बच्चों को पोषाहार मिलता है. लेकिन आश्चर्य की बात है कि पोषाहार मद में पिछले साल अगस्त से केंद्रांश मिला ही नहीं है. समाज कल्याण विभाग के निदेशक छवि रंजन ने बताया कि इसको लेकर केंद्र को प्रस्ताव भेजा गया है. उन्होंने उम्मीद जतायी है कि जल्द ही पैसे मिल जाएंगे. उन्होंने कहा कि केंद्र द्वारा सिंगल नोडल अकाउंट सिस्टम पर काम चल रहा था. इसकी वजह से केंद्रांश जारी होने में विलंब हुआ है. उन्होंने उम्मीद जतायी है कि आने वाले समय में यह समस्या पूरी तरह खत्म हो जाएगी.

झारखंड प्रदेश आंगनबाड़ी वर्कर्स यूनियन के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष बालमुकुंद के मुताबिक सेविका और सहायिकाओं का जीना मुहाल हो गया है. उन्हें गर्भवती, धात्रा माताओं और बच्चों को नाश्ता के अलावा दो टाइम भोजन की व्यवस्था करनी पड़ती है. पूरा सिस्टम उधार पर चल रहा है. सहायिकाओं को अक्टूबर माह से मानदेय नहीं मिला है. सबसे चौकाने वाली बात यह है कि पिछले दो वर्षों से महिला, बाल विकास एवं सामाजिक सुरक्षा विभाग बजटीय प्रावधान में अंडा या समतुल्य पोषक तत्व के वितरण का जिक्र कर रहा है. लेकिन किसी भी केंद्र पर अंडा नहीं मिल रहा है.

राज्य सरकार ने बढ़ाया है मानदेयः दूसरी तरफ हेमंत सरकार ने सेविका और सहायिका राज्य सरकार द्वारा चयन एवं मानदेय (अन्य शर्तों सहित ) नियमावली - 2022 को मंजूरी देकर आंगनबाड़ी व्यवस्था को और भी सशक्त बना दिया है. इसके तहत 1 अक्टूबर 2022 से सेविका का मानदेय प्रतिमाह 9,500 रू हो गया. इससे पहले सेविका को केंद्राश के रूप में 4,500 और राज्यांश के रूप में 1,900 रू. मिलते थे. लेकिन राज्य सरकार ने इसमें 3,100 रू का इजाफा कर दिया. इसी तरह सहायिका को 2,250 केंद्रांश और 850 रू. का राज्यांश मिलता था, जिसमें राज्य ने 1,500 रू. अतिरिक्त जोड़ दिया. अब सहायिकाओं को भी 4,600 रू. मिलते हैं. लेकिन हैरानी की बात है कि सेविका और सहायिकाओं को समय पर पेमेंट नहीं मिल रहा है.

विभाग के दावे का सचः सभी आंगनबाड़ी केंद्रों में 6 माह से 3 वर्ष के बच्चों, छह माह से 6 वर्ष तक के कुपोषित बच्चों, गर्भवती महिलाओं और धात्री माताओं को टेक होम राश के रूप में माइक्रो न्यूट्रिएंट्स फोर्टिफाईड एंड/ऑर एनर्जी डेन्स फूड, स्कूल पूर्व शिक्षा प्राप्त कर रहे 3 से 6 वर्ष के बच्चों को गर्म ताजा पोषाहार मुहैया कराया जाता है. लेकिन पोषाहार कैसे मिल रहा है, यह पूछने पर अधिकारी चुप्पी साध लेते हैं. इसकी गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक बार सदन में स्पीकर को खुद कहना पड़ा था कि जब केंद्रांश में विलंब हो रहा है तो राज्य कोष से वैकल्पिक व्यवस्था की जानी चाहिए. इसके बावजूद राज्य सरकार केंद्र को भरोसे बैठी हुई है.

रांचीः झारखंड को न सिर्फ खनिज संपदा और प्राकृतिक खूबसूरती बल्कि कुपोषण की वजह से भी जाना जाता है. इस राज्य को कुपोषण मुक्त करने के लिए कई योजनाओं चल रही हैं. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि कुपोषण को दूर करने में अहम भूमिका निभाने वाले आंगनबाड़ी केंद्रों की स्थिति खुद कुपोषित जैसी हो गई है. तमाम आंगनबाड़ी केंद्र (Anganwadi Center in Jharkhand) पनसारी यानी किराना दुकानदारों की दया पर चल रहा हैं. सेविका और सहायिकाओं को अनाज के लिए मिन्नतें करनी पड़ती है. सभी आंगनबाड़ी केंद्रों का बिना लिखित वाला उधारी खाता चल रहा है. जब दुकानदार हाथ खड़े कर देता है तो सेविकाओं को अपने घर से पैसे लगाने पड़ते हैं.

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राज्य में 38 हजार 432 आंगनबाड़ी केंद्र हैं. इनमें करीब 3 हजार लघु आंगनबाड़ी केंद्रों में सहायिका के अलावा अन्य सभी केंद्रों में सेविका और सहायिका सेवारत हैं. इन केंद्रों की बदौलत करीब 7 लाख गर्भवती महिलाएं और 17 लाख बच्चों को पोषाहार मिलता है. लेकिन आश्चर्य की बात है कि पोषाहार मद में पिछले साल अगस्त से केंद्रांश मिला ही नहीं है. समाज कल्याण विभाग के निदेशक छवि रंजन ने बताया कि इसको लेकर केंद्र को प्रस्ताव भेजा गया है. उन्होंने उम्मीद जतायी है कि जल्द ही पैसे मिल जाएंगे. उन्होंने कहा कि केंद्र द्वारा सिंगल नोडल अकाउंट सिस्टम पर काम चल रहा था. इसकी वजह से केंद्रांश जारी होने में विलंब हुआ है. उन्होंने उम्मीद जतायी है कि आने वाले समय में यह समस्या पूरी तरह खत्म हो जाएगी.

झारखंड प्रदेश आंगनबाड़ी वर्कर्स यूनियन के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष बालमुकुंद के मुताबिक सेविका और सहायिकाओं का जीना मुहाल हो गया है. उन्हें गर्भवती, धात्रा माताओं और बच्चों को नाश्ता के अलावा दो टाइम भोजन की व्यवस्था करनी पड़ती है. पूरा सिस्टम उधार पर चल रहा है. सहायिकाओं को अक्टूबर माह से मानदेय नहीं मिला है. सबसे चौकाने वाली बात यह है कि पिछले दो वर्षों से महिला, बाल विकास एवं सामाजिक सुरक्षा विभाग बजटीय प्रावधान में अंडा या समतुल्य पोषक तत्व के वितरण का जिक्र कर रहा है. लेकिन किसी भी केंद्र पर अंडा नहीं मिल रहा है.

राज्य सरकार ने बढ़ाया है मानदेयः दूसरी तरफ हेमंत सरकार ने सेविका और सहायिका राज्य सरकार द्वारा चयन एवं मानदेय (अन्य शर्तों सहित ) नियमावली - 2022 को मंजूरी देकर आंगनबाड़ी व्यवस्था को और भी सशक्त बना दिया है. इसके तहत 1 अक्टूबर 2022 से सेविका का मानदेय प्रतिमाह 9,500 रू हो गया. इससे पहले सेविका को केंद्राश के रूप में 4,500 और राज्यांश के रूप में 1,900 रू. मिलते थे. लेकिन राज्य सरकार ने इसमें 3,100 रू का इजाफा कर दिया. इसी तरह सहायिका को 2,250 केंद्रांश और 850 रू. का राज्यांश मिलता था, जिसमें राज्य ने 1,500 रू. अतिरिक्त जोड़ दिया. अब सहायिकाओं को भी 4,600 रू. मिलते हैं. लेकिन हैरानी की बात है कि सेविका और सहायिकाओं को समय पर पेमेंट नहीं मिल रहा है.

विभाग के दावे का सचः सभी आंगनबाड़ी केंद्रों में 6 माह से 3 वर्ष के बच्चों, छह माह से 6 वर्ष तक के कुपोषित बच्चों, गर्भवती महिलाओं और धात्री माताओं को टेक होम राश के रूप में माइक्रो न्यूट्रिएंट्स फोर्टिफाईड एंड/ऑर एनर्जी डेन्स फूड, स्कूल पूर्व शिक्षा प्राप्त कर रहे 3 से 6 वर्ष के बच्चों को गर्म ताजा पोषाहार मुहैया कराया जाता है. लेकिन पोषाहार कैसे मिल रहा है, यह पूछने पर अधिकारी चुप्पी साध लेते हैं. इसकी गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक बार सदन में स्पीकर को खुद कहना पड़ा था कि जब केंद्रांश में विलंब हो रहा है तो राज्य कोष से वैकल्पिक व्यवस्था की जानी चाहिए. इसके बावजूद राज्य सरकार केंद्र को भरोसे बैठी हुई है.

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