रांचीः झारखंड में 32 साल बाद एक बार नया इतिहास लिखा गया है. नए झारखंड में पहली बार कृषि संवर्ग सेवा में 129 अधिकारियों की नियुक्ति की गई, जिन्हें नियुक्ति पत्र बांटने मुख्यमंत्री पहुंच आए. इससे पहले संयुक्त बिहार में ही इस सेेवा में अधिकारियों की नियुक्ति की गई थी. मौका खास था तो मंच से बार-बार इस बात का ऐलान किया गया कि झारखंड के लिए 32 साल बाद कृषि सेवा संवर्ग में पदाधिकारियों की बहाली हो रही है. इसका निशाना राजनीतिक फसल उगाने की तैयारी भी थी, क्योंकि सरकारें तो पहले भी रहीं जिसमें हेमंत सोरेन भी मुख्यमंत्री रहे, लेकिन नियुक्ति के काम को अंजाम अब दिया गया और युवाओं को रोजगार सरकार का वादा भी है.
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कार्यक्रम आयोजित किया गया था 129 कृषि सेवा के अधिकारियों को नियुक्ति पत्र बांटने का, लेकिन 32 साल बाद जिस काम को सरकार द्वारा किया गया और करने का जो अंदाज था, उससे राजनीतिक फसल की खेती का संदेश साफ था. 32 साल बाद कृषि सेवा के अधिकारियों की नियुक्ति सरकार भरे मंच से कह रही है तो मामला साफ है कि 32 सालों तक सरकार के नुमाइंदों ने इस दिशा में कुछ नहीं किया. साथ ही उन्हें इसकी परवाह नहीं रही कि झारखंड की खेती किसानी चल कैसे रही है. भले ही सवाल उन पर भी हों, क्योंकि बीते दिनों की सरकार में उनकी भी हिस्सेदारी थी. बहरहाल झारखंड में वर्तमान मुख्यमंत्री ने 'बाजे गाजे' के साथ लोगों को याद दिलाया कि किसानों और युवाओं के हितैषी वही हैं, तभी तो किसानों के हित में और युवाओं के हित में 129 कृषि पदाधिकारियों की नियुक्ति की. पूरी सरकार ने लोगों के जहन में यह बसाने की पूरी कोशिश की, उन्होंने जो 1 जून को यह काम किया है, वह 32 सालों बाद झारखंड में हो रहा है.
प्रधान सचिव ने कहा उसके क्या हैं निहितार्थः नियुक्त पत्र बांटते समय कृषि विभाग के प्रधान सचिव अबू बकर ने सरल शब्दों में जो बात कही. उसके गहरे निहितार्थ भी हैं और वो व्यवस्था की अनचाहे ही पोल खोलते नजर आ रहे हैं. नियुक्ति पत्र बांटते समय कृषि विभाग के प्रधान सचिव अबू बकर ने भरे मंच से कह दिया कि पूरे झारखंड में काम करने की अपार संभावना है और इसको लेकर सरकार कृत संकल्पित भी है. खनिज संपदा झारखंड में अकूत है और अब आप लोग झारखंड की खेती किसानी को आगे बढ़ाएंगे, जिससे झारखंड और आगे जाएगा. 6 जून से सभी अधिकारियों की ट्रेनिंग शुरू होगी और उसके बाद सभी लोगों को जिले आवंटित कर दिए जाएंगे.
लेकिन सबसे बड़ा सवाल जो कृषि विभाग के सचिव ने चुने गए नए पदाधिकारियों के सामने रखा और सारे के सरकारी कामकाज के सच कहे जाने वाले बातों का ऐसा मजमून निकला, जिसे सुनने के बाद मुख्यमंत्री बगल में देखने लगे और पूरे मंच पर ठहाका गूंज उठा. कृषि सचिव ने कहा कि पूरे झारखंड में काम करने की अपार संभावना है जब आप लोगों की ट्रेनिंग शुरू होगी उसी समय आपको जिले भी आवंटित किए जाएंगे. बस एक बात आप लोग मान लीजिए ईमानदारी से काम करना है इसलिए अच्छे जिले के लिए पैरवी मत करवाइएगा.
अच्छे जिले की बात की कहानीः कृषि सचिव की यह बातें जिन भी लोगों ने सुनी सभी लोग मुस्कुरा कर रह गए मंच पर राज्य के मुख्यमंत्री थे राज्य के मुख्य सचिव थे कई प्रधान सचिव थे कहीं और पदाधिकारी थे उन सभी लोगों ने यह बात सुनी के अच्छे जिले के लिए पैरवी मत करवाइएगा तो सवाल उठ गया कि झारखंड में यह बातें इस तरह के मंच से पदाधिकारी क्यों कह रहे हैं. सवाल यह भी उठ रहा है कि कर्नाटक या बेंगलुरू के रहने वाले अबू बकर इस बात को भरे मंच से कह दिए कि मैं दूसरे राज्य से आकर कृषि विभाग में काम कर रहा हूं तो आप लोग भी यह समझ लीजिए अच्छे जिले की पैरवी मत कराइएगा. अब सवाल यह उठ रहा है कि जब पूरा झारखंड अच्छा है तो अच्छे जिले का अभिप्राय क्या है और इसकी सरकारी भाषा क्या है और सरकार के लोग इसे समझते कैसे हैं यह आम जनता तो नहीं जानती. बस चर्चा जरूर करती है झारखंड में कुछ चीजें हैं जो अधिकारियों को बहुत पसंद आते हैं क्यों यह बड़ा सवाल है.
दरअसल झारखंड की राजनीति 32 की सियासत को अपने में समेटे हुए है. झारखंड के खेत खलिहान तक अपनी पकड़ बनाने के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा पूरे दमखम से लगी हुई है. हेमंत सोरेन थोड़ी राह भी अलग किए तो झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता ही 1932 के खतियान को लागू करने के लिए विरोध का सुर अलापने लगे. बात यहीं नहीं रूकी, हेमंत के विरोध में यहां तक कह दिया गया कि गुरुजी ने आशीर्वाद दे दिया है कि तुम आगे बढ़ो और बढ़ते रहो. बहरहाल सियासत के बहुत सारे ऐसे मजमून हैं जो 32 की राजनीति में इस समय मुंह बाए खड़े हैं. लेकिन सही है कि तीन दो के साथ पांच वाली राजनीति 35 के ऐसे चक्कर में फंसी है कि जहां हर कोई झारखंड में कुछ ऐसा कह रहा है जो झारखंड की वर्तमान की राजनीति के संदेश को समझने का प्रयास कर रहा है.
बयान ने बता दिया हालः चलिए एक कदम ही सही लेकिन 32 साल बाद झारखंड ने राजनीति के दरख्त पर एक मजमून लिख दिया है लेकिन सवाल यह भी खड़ा कर दिया कि अच्छे जिले कौन हैं खराब जिले कौन हैं पकड़ वाले लोग कौन हैं जिनकी पैरवी होगी और भी लोग कौन हैं जो बिना पैरवी के होंगे. क्योंकि जिनकी पैरवी होगी उन्हें अच्छा जिला मिलेगा और जिनकी पैर भी नहीं होगी. उन्हें अच्छा जिले नहीं मिलेंगे अब देखने वाली बात यह होगी कि अच्छे जिले और दूसरे जिले की परिभाषा नए चुने गए कृषि पदाधिकारी किस तरीके से देखते हैं और किस तरीके से झारखंड के हर जिले को बेहतर बनाकर आगे ले जाते हैं सब नए पथ पर हैं लेकिन झारखंड में एक बात तो साफ है कि पैरवी वाली राजनीति अच्छे जिले वाली राजनीति धन संपदा के जिले वाली राजनीति खनिज संपदा के जिले वाली राजनीति की चर्चा हर मंच से हर कोई कर जाता है चाहे. वह बात दिल की टीस हो या फिर खीझ. वह तो वही लोग समझें लेकिन पैरवी से कुछ होता है यह तो आज के मंच ने भी बता दिया.