रांची: राज्य सरकार ने इस वर्ष को भलें ही नियुक्ति वर्ष घोषित कर रखा हो मगर हकीकत यह है कि 06 महिना बीतने के बाद भी नियुक्ति प्रक्रिया में तेजी नहीं आई है. हालत यह है कि जेपीएससी और जेएसएससी जैसी संस्थान जो नियुक्ति प्रक्रिया संचालित करती है वह खुद सदस्यों और कर्मियों की भारी कमी झेल रहा है. ऐसे में सरकार की घोषणा पर सवाल उठने लगे हैं.
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सदस्यविहीन जेपीएससी कैसे संचालित करेगा प्रतियोगी परीक्षा
झारखंड लोक सेवा आयोग (Jharkhand Public Service Commission) में एक अध्यक्ष और 4 सदस्यों का प्रावधान है. लेकिन फिलहाल जेपीएससी में सदस्यों की भारी कमी है. वर्तमान में जेपीएससी में कुल 4 सदस्यों में सिर्फ एक सदस्य हैं जो 09 जुलाई तक मूल सेवा रांची विश्वविद्यालय में देने के लिए वापस हो जायेंगे. हालांकि उनका कार्यकाल 26 जुलाई तक है. इससे पहले एक सदस्य आईएएस भगवान दास का कार्यकाल 26 अप्रैल को समाप्त हो गया तो दूसरे सदस्य डॉ. एके चट्टोराज का कार्यकाल भी 26 जुलाई को समाप्त होगा. एक सदस्य श्रवण साय का कार्यकाल दिसंबर में ही समाप्त हो गया है, जबकि एक और सदस्य टीए साहू ने जनवरी में इस्तीफा देकर वापस रांची विश्वविद्यालय में योगदान दिया है.
सदस्य के न रहने से यहां सिर्फ जेपीएससी अध्यक्ष अमिताभ चौधरी (JPSC Chairman Amitabh Chaudhary) वन मैन शो के रुप में रह जाएंगे. जेपीएससी की नियमावली के अनुसार किसी भी नीतिगत निर्णय लेने के लिए कम से कम एक सदस्य का होना आवश्यक है.
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ऐसे होती है जेपीएससी में सदस्यों का मनोनयन
प्रावधान के अनुसार आयोग में किसी भी सदस्य का कार्यकाल 5 साल या फिर अधिकतम उम्र सीमा 62 साल का है. विश्वविद्यालय के एक शिक्षक की सेवानिवृत्ति उम्र सीमा 65 साल निर्धारित है. ऐसे में डॉक्टर चट्टोराज रांची विश्वविद्यालय में योगदान करने की तैयारी में हैं. जिसके लिए नौ जुलाई तक रिलीव करने का आग्रह विश्वविद्यालय ने आयोग से किया है. आयोग में सदस्य की नियुक्ति राज्य सरकार की तरफ से की जाती है. इसके लिए कैबिनेट से स्वीकृति लेने के बाद अंतिम स्वीकृति राज्यपाल से ली जाती है.
सरकार के उदासीनता पर उठ रहे हैं सवाल
नियुक्ति वर्ष में नियुक्ति प्रक्रिया संचालित करनेवाली संस्थाओं में सदस्य नहीं होने पर छात्र संगठन से लेकर विपक्षी दल बीजेपी ने सरकार पर निशाना साधा है. राज्य सरकार की उदासीन रवैया पर नाराजगी जताते हुए छात्र नेता एस अली ने कहा है कि सदस्यविहीन जेपीएससी में अब वन मैन शो अध्यक्ष होंगे जो कहीं से भी उचित नहीं है. इधर विपक्षी दल बीजेपी ने सरकार की आलोचना करते हुए कहा है कि जेपीएससी जैसी संवैधानिक संस्था की स्थिति को देखने से पता चलता है कि सरकार कितनी गंभीर है. बीजेपी के प्रदेश मीडिया प्रभारी शिवपूजन पाठक ने सरकार की उदासीन रवैया की आलोचना करते हुए कहा है कि सत्तारूढ़ दल को सिर्फ और सिर्फ अपनी कुर्सी से मतलब है ना कि बेरोजगार युवाओं की समस्या से.
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बचाव में उतरी सरकार
इधर जेपीएससी पर उठ रहे सवाल को देखते हुए सत्तारूढ़ दल के मंत्री, सांसद बचाव के मूड में हैं. श्रम नियोजन एवं प्रशिक्षण मंत्री सत्यानंद भोक्ता और झामुमो सांसद विजय हांसदा ने नियुक्ति प्रक्रिया में तेजी लाने से पहले जेपीएससी और जेएसएससी को दुरुस्त करने की बात कही है. उन्होंने कहा कि कोरोना के कारण विकास कार्य प्रभावित हुआ है मगर अब परिस्थितियां सामान्य हो रही हैं तो सरकार भी सजग हुई है.
रोजगार वर्ष में सरकारी नौकरी पाने की आस लगाये युवाओं को अब तक निराशा हाथ लगी है. जेपीएससी और जेएसएससी के माध्यम से पूर्व में विज्ञापित तमाम परीक्षाएं फिलहाल कोरोना के कारण लटकी हुई है. सरकार नियुक्ति प्रक्रिया में तेजी नहीं आने के पीछे कोरोना को मान रही है. वहीं छात्र संगठन और विपक्षी दल सरकार पर बहाना बनाने का आरोप लगा रही है. इन सबके बीच अन्य आयोग की तरह जेपीएससी भी सदस्यविहीन हो रहा है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि आखिर कैसे होगी नियुक्ति.