रांची: आज विश्व आदिवासी दिवस है. इसको लेकर आदिवासी समाज में बेहद खुशी का माहौल है. इसी कड़ी में राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुदेश कुमार महतो ने झारखंड के आदिवासी समुदायों को विश्व आदिवासी दिवस पर बधाई दी. इस मौके पर उन्होंने कहा कि आदिवासियों को अपने हक, अधिकार, सम्मान लेने और प्रकृति, अस्मिता से और करीब लाने का संदेश लेकर आने वाला यह दिवस झारखंड के लिए बेहद अहम है.
गौरव बोध से भरता है दिन
उन्होंने कहा कि झारखंड में आदिवासियों की अद्भुत संस्कृति, समृद्ध भाषा, जीवन दर्शन और संघर्ष का इतिहास इस दिवस के तानाबना को और मजबूत करता है. आज का दिन आदिवासी समाज के लिए उनकी सभ्यता, संस्कृति, स्वशासन और मूल्यों को लेकर उनमें गौरव का बोध भरता है.
सौभाग्यशाली हैं हम
उन्होंने कहा कि हम सभी सौभाग्यशाली है. जो उलगुलान के महानायक बिरसा मुंडा, हूल विद्रोह के क्रांतिकारी योद्धा सिदो- कान्हू, चांद-भैरव झारखंड की धरती में जन्म लिया है. महान व्यक्तित्व जयपाल सिंह मुंडा ने संविधान में आदिवासियों को अधिकार दिलाने का संघर्ष किया. शिक्षा, संस्कृति, राजनीति, आंदोलन और सृजन के रचनाधर्मी पद्यमश्री डॉ रामदयाल मुंडा की महान छवि और अमूल्य योगदान भी हमारे सामने है.
आदिवासी दिवस के महत्व को समझना जरूरी
वहीं पार्टी के केंद्रीय प्रवक्ता डॉ. देवशरण भगत ने ऑनलाइन माध्यम से जनता को संबोधित किया और सभी को विश्व आदिवासी दिवस की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि हमें इस दिवस के महत्व को समझना चाहिए. यह दिवस मुल्यांकन करने का है. चिंतन और मनन करने का है. आज आदिवासी समाज की स्थिति राज्य और देश में क्या है. आज का आदिवासी समाज के मूल समस्याओं और उन समस्याओं का निदान कर, इस समाज के उत्थान के लिए निरंतर कार्यरत रहने का प्रण लेने का दिन है. जल, जंगल, जमीन आदिवासियों के जीवन का आधार है. प्रकृति ही इनके देवी, देवता है और इसका संरक्षण करना ही इनका धर्म है.
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अपने हक लिए बलिदान देते हैं आदिवासी
उन्होंने कहा कि आदिवासी अपने हक और अधिकार के लिए ही बलिदान देते हैं. किसी दूसरे का हक छीनने के लिए नहीं. जब हम पूरे देश में आदिवासियों की जनसंख्या का आंकलन करते हैं. तो पता चलता है कि देश में आदिवासियों की जनसंख्या में वृद्धि हुई, लेकिन इसके विपरीत झारखंड राज्य में इनकी जनसंख्या घटी है.
घट रही है आदिवासियों की आबादी
1961 में भारत में आदिवासियों की आबादी 6.9% थी और 2011 में यह बढ़कर 8.6% हो गयी. इसके विपरीत झारखंड में 1931 में आदिवासियों की आबादी 38.06% थी और 2011 में यह घटकर 26.02% हो गयी. झारखंड में आदिवासी समाज की घटती आबादी बेहद ही गंभीर और चिंतनीय विषय है. इसपर तत्काल पहल करने की जरुरत है.