रांची: कोरोना फ्रंटलाइन वर्कर्स और दिहाड़ी मजदूरों से जुड़ी समस्याओं के समाधान की मांग को लेकर ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन (एक्टू यानी aicctu) ने सोमवार को राज्यव्यापी मांग दिवस मनाया. कोरोना गाइडलाइन के नियमों का पालन करते हुए एक्टू कार्यालय में महेंद्र सिंह भवन में एक दिवसीय धरना दिया गया.
ये भी पढ़े- 20 मई से यूजी सेमेस्टर थ्री की परीक्षा, मारवाड़ी कॉलेज में ऑनलाइन एग्जाम देंगे छात्र
मजदूरों की मांग को लेकर एक्टू ने दिया धरना
राज्य के 16 जिलों के औद्योगिक इकाइयों, कार्यस्थल, मजदूर मोहल्लों और घरों में धरना प्रदर्शन और उपवास कार्यक्रम अयोजित किए गए. कार्यक्रम को संबोधित करते हुए एक्टू के प्रदेश महासचिव शुभेंदु सेन ने कहा कि झारखंड में स्वास्थ्य सुरक्षा सप्ताह में लॉकडाउन की तरह ही सख्ती से राज्य के मजदूरों के समक्ष जीविका का संकट गहराने लगा है. लॉकडाउन की सख्ती से निर्माण कार्य के बंद होने, मनरेगा में बिचौलियों की मनमानी और मजदूरी का बकाया होने से ग्रामीण, गरीबों और मजदूरों के सामने भुखमरी के हालात पैदा हो गए हैं. अगर समय रहते सरकार ने मजदूरों से जुड़े सवालों का समाधान नहीं किया तो कोरोना से अधिक भूख से मौत होंगी.
कर्मचारियों की मौत के लिए सरकार जिम्मेदार : भुवनेश्वर केवट
मजदूर यूनियन और माले नेता भुवनेश्वर केवट ने कहा कि देश में कोरोना से हुई मौत प्राकृतिक से कहीं ज्यादा आपराधिक किस्म की लापरवाही की देन हैं. कोरोना फ्रंटलाइन वर्कर को बीमा विशेष भत्ता और सुरक्षा के समुचित व्यवस्था के अभाव में फ्रंटलाइन कर्मियों की मौत के लिए केंद्र और राज्यों की सरकारें जिम्मेदार हैं.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भेजा मांग पत्र
1. कोरोना महामारी के दुष्प्रभाव से राहत के लिए सभी गरीब और मजदूर परिवारों को प्रति व्यक्ति 10 किलो राशन और दाल, चीनी आदि सामग्री आपूर्ति करने, मजदूरों के बैंक खाते में 10 हजार रुपए कोरोना राहत राशि का भुगतान करें.
2. सभी ग्रामीण और शहरी मजदूरों को मनरेगा के तहत 200 दिन काम और 500 रुपये मजदूरी भुगतान की गारंटी करने. कोरोना फ्रंटलाइन वर्कर को बीमा, विशेष भत्ता और सुरक्षा की गारंटी आदी मुख्य मांगें शमिल हैं.
3. श्रमिक इलाके में रहने वाले लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा बहाल कराने के लिये मोबाइल हेल्थ फैसिलिटी का इंतजाम कराया जाए.
बता दें कि जिस तरह से लॉकडाउन और स्वास्थ्य सुरक्षा सप्ताह लागू किया गया है. ऐसे में रोज कमाने और खाने वाले लोगों के लिए संकट पैदा हो गया है. ऐसे में अब हेमंत सोरेन के अपने घटक दल ही उनके कार्य शैली पर सवाल खड़े कर रहे हैं.